पुण्यतिथि: शिवमंगल सिंह सुमन की 7 प्रसिद्ध कविताओं के अंश, अटल बिहारी वाजपेयी को बेहद पसंद थी ये कविता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 27, 2018 01:16 PM2018-11-27T13:16:36+5:302018-11-27T13:16:36+5:30

शिवमंगल सिंह सुमन को साहित्य में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

Shivmangal Singh Suman 7 best poems poetry kavita read atal bihari vajpayee favorite poem | पुण्यतिथि: शिवमंगल सिंह सुमन की 7 प्रसिद्ध कविताओं के अंश, अटल बिहारी वाजपेयी को बेहद पसंद थी ये कविता

पुण्यतिथि: शिवमंगल सिंह सुमन की 7 प्रसिद्ध कविताओं के अंश, अटल बिहारी वाजपेयी को बेहद पसंद थी ये कविता

हिन्दी के प्रमुख गीतकार शिवमंगल सिंह सुमन की आज पुण्यतिथि है। शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म पाँच अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) के उन्नाव जिले में हुआ था। सुमन ने काशी हिन्दी विश्वविद्यालय (बीएचयू) से हिन्दी साहित्य में एमए और पीएचडी की। बीएचयू ने शिवमंगल सुमन को 1950 में डीलीट की भी उपाधि दी थी।

साहित्य में सुमन के योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया था। उन्हें देश का सबसे बड़ा साहित्यिक पुरस्कार साहित्य अकादमी भी मिला था। सुमन कवि और लेखक होने के साथ शिक्षाविद् भी थे। वो उज्जैन स्थित विक्रम यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर रहे थे। 27 नवंबर 2002 को उनका निधन हो गया। 

शिवमंगल सिंह सुमन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पसंदीदा कवियों में थे। अटल जी ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर सुमन की "क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं" का पाठ किया था। आगे पढ़िए शिवमंगल सिंह सुमन की 7 प्रसिद्ध कविताओं के अंश। 

1- क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान मांगूंगा नहीं।।
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

2- गति मिली मैं चल पड़ा
पथ पर कहीं रुकना मना था,
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था।
चांद सूरज की तरह चलता
न जाना रात दिन है,
किस तरह हम तुम गए मिल
आज भी कहना कठिन है,
तन न आया मांगने अभिसार
मन ही जुड़ गया था।

3- कितनी बार तुम्हें देखा 
पर आँखें नहीं भरीं।

सीमित उर में चिर-असीम 
सौंदर्य समा न सका 
बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग 
मन रोके नहीं रुका 
यों तो कई बार पी-पीकर 
जी भर गया छका 
एक बूँद थी, किंतु, 
कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी। 
कितनी बार तुम्हें देखा 
पर आँखें नहीं भरीं।


4- चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती,
गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का,
ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का।


5- चाहता तो था कि रुक लूँ पार्श्व में क्षण-भर तुम्हारे
किन्तु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाँहे पसारे,
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवंचन कापुरुषता
मुँह दिखाने योग्य रक्खेगी ना मुझको स्वार्थपरता।
इसलिए ही आज युग की देहली को लाँघ कर मैं-
पथ नया अपना रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ।


6- जीवन अस्थिर अनजाने ही
हो जाता पथ पर मेल कहीं
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल
तय कर लेना कुछ खेल नहीं
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।


7- लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार। 

Web Title: Shivmangal Singh Suman 7 best poems poetry kavita read atal bihari vajpayee favorite poem

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