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नहीं रहीं शीला दीक्षित: सुबह 8 बजे से पहले सभी को स्वयं करती थीं फोन, गलत खबरों पर भी नहीं होती थीं नाराज

By संतोष ठाकुर | Updated: July 21, 2019 08:27 IST

शीला दीक्षित का कहना था कि दिल्ली की मुख्यमंत्री यह उनका दायित्व है कि वह सभी तक पहुंचे और सभी पक्षों की बात सुने. इसकी वजह यह है कि जब तक वह सभी आवाज को नहीं सुनेंगी उस समय तक उन्हें यह नहीं पता चल पाएगा कि क्या कहीं कुछ गड़बड़ी है. इसी तरह से वह अपने कार्य को लेकर भी ईमानदार थीं. कोई उनके कितने भी नजदीक हो लेकिन यह गारंटी नहीं ले सकता था कि वह उनसे सभी काम करा सकता है.

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ठळक मुद्देकई बार वह समय पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाने को लेकर क्षमा भी मांगती थीं.उनका कहना था कि बतौर दिल्ली की मुख्यमंत्री यह उनका दायित्व है कि वह सभी तक पहुंचे और सभी पक्षों की बात सुने.

दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित संभवत: यह जानती थी कि संवाद से किसी की भी नाराजगी दूर की जा सकती है. दूसरे के साथ अपने मतभेद को कम किया जा सकता है. यही वजह है कि वह उन सभी लोगों को स्वयं सुबह कॉल करती थीं, जिन्हें लेकर उन्हें लगता था कि वह नाराज हैं या फिर जिनके साथ किसी तरह के संवाद की जरूरत है.

शीला दीक्षित की यह खासियत थी कि अगर आपने उनके घर पर उनसे बात करने के लिए संवाद छोड़ा है तो वह आपसे बात जरूर करेंगी. जिन लोगों को वह व्यक्तिगत रूप से जानती थीं या फिर किसी पत्रकार ने किसी समाचार पर उनकी प्रतिक्रि या लेने के लिए उनके घर पर संपर्क किया और वह उस समय नहीं मिल पाईं हो तो वह उन्हें सुबह 8 बजे अपने घर के लैंडलाइन से स्वयं कॉल करके बात करती थीं.

इतना ही नहीं, कई बार वह समय पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाने को लेकर क्षमा भी मांगती थीं. यह उनका ऐसा स्वभाव था जिसके सभी कायल थे. शीला दीक्षित की एक अन्य खासियत यह भी थी कि अगर किसी पत्रकार ने दिल्ली सरकार या उनके नेतृत्व को लेकर कोई नकारात्मक समाचार लिखा या दिखाया हो तो वह उससे दूरी बनाने या फिर उसके प्रति किसी तरह की घृणा-नाराजगी रखने की जगह उससे मिलती थीं और पूछती थी कि आज क्या खबर है.

उनका कहना था कि बतौर दिल्ली की मुख्यमंत्री यह उनका दायित्व है कि वह सभी तक पहुंचे और सभी पक्षों की बात सुने. इसकी वजह यह है कि जब तक वह सभी आवाज को नहीं सुनेंगी उस समय तक उन्हें यह नहीं पता चल पाएगा कि क्या कहीं कुछ गड़बड़ी है. इसी तरह से वह अपने कार्य को लेकर भी ईमानदार थीं. कोई उनके कितने भी नजदीक हो लेकिन यह गारंटी नहीं ले सकता था कि वह उनसे सभी काम करा सकता है. वह अपने स्तर पर समीक्षा के बाद ही किसी भी कार्य को करने का आदेश देती थीं.

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