शहीद दिवस स्पेशल: 'जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं', पढ़ें भगत सिंह का वो आखिरी खत
By पल्लवी कुमारी | Published: March 18, 2020 02:15 PM2020-03-18T14:15:58+5:302020-03-18T14:15:58+5:30
Martyrs' Day 2020 (Shaheed Diwas): 23 मार्च 1931 को लाहौर के जेल में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया गया था। फांसी पर चढ़ने के पहले तीनों देशभक्तों ने एक-दूसरे को लगे लगाकर इंक़लाब ज़िन्दाबाद के नारे लगाए थे।
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भगत सिंह (फाइल फोटो)
Martyrs' Day 2020: भारत में शहीद दिवस (Martyrs' Day (in India) 23 मार्च को मनाया जाता है। 23 मार्च 1931 को आधी रात में अंग्रेजी हुकूमतों ने भारत के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया था। देश के इन तीन सपूतों को श्रद्धांजलि देने के लिए 23 मार्च को भारत शहीद दिवस (Shaheed Diwas) के रूप में मनाता है। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भी याद में शहीद दिवस मनाया जाता है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लेने के लिए दिया गया था। भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका था। असेंबली में बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं और जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी। फांसी से पहले भगत सिंह ने एक खत लिखा था। भगत सिंह ने यह खत उर्दू में लिखा था। फांसी दिए जाने के बाद ये खत भारत के युवाओं में काफी मशहूर हुआ। आइए शहीद दिवस पर पढ़ते हैं भगत सिंह के आखिरी खत के कुछ अल्फाज...
''कॉमरेड्स,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना भी नहीं चाहता हूं, लेकिन आज मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दलों के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं। लेकिन अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धम पड़ जाएगा। ऐसा भी हो सकता है कि मिट ही जाए। लेकिन मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी। इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा।
हां, एक विचार लेकिन आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका 1000वां भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें जरूर पूरी करता। इसके अलावा मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा, आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। मुझे अब पूरी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है, कामना है कि ये और जल्दी आ जाए।
तुम्हारा कॉमरेड,
भगत सिंह''
फांसी के फंदे को हंसते-हंसते भगत, राजगुरु और सुखदेव ने लगाया था गले
भगत सिंह के साथ उनके साथी राजगुरु और सुखदेव ने फांसी के फंदे को आगे बढ़कर चूमा था। फांसी वाले दिन तीन वीर मुस्कुरा रहे थे। फांसी पर चढ़ने से पहले तीनों देशभक्तों ने गले लगाया था। लाहौर के जेल में जिस दिन तीनों वीरों को फांसी दी जा रही थी, सारे कैदियों की आंखे नम हो गईं थी। यहां तक कि कहा जाता है कि जेल के कर्मचारियों के फांसी देते वक्त हाथ कांप रहे थे। फांसी से पहले भगत सिंह का वजन काफी बढ़ गया था।