SC ने IPC की धारा 497 को बताया असंवैधानिक, कहा-पत्नी का स्वामी नहीं है पति
By रामदीप मिश्रा | Published: September 27, 2018 11:04 AM2018-09-27T11:04:45+5:302018-09-27T16:14:52+5:30
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आठ अगस्त को अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद के जिरह पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
नई दिल्ली, 27 सितंबरः व्यभिचार पर आपराधिक कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने आईपीसी की धारा 497 (अडल्टरी) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि समानता सिस्टम का मुख्य सिद्धांत है और पति पत्नी का स्वामी नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक है। जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वह असंवैधानिक है और जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप को आमंत्रित करती है। व्यभिचार-रोधी कानून एकपक्षीय, मनमाना है।
Equality is the governing principle of a system. Husband is not the master of the wife: CJI Dipak Misra reading out the verdict on the petition challenging the validity of Section 497 (Adultery) of IPC pic.twitter.com/FO1Yk4A7ET
— ANI (@ANI) September 27, 2018
न्यायमूर्ति मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति डी. वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि व्यभिचार के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम विवाह के खिलाफ अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं।’’
अलग से अपना फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने धारा 497 को पुरातनपंथी कानून बताते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर के फैसले के साथ सहमति जतायी। उन्होंने कहा कि धारा 497 समानता का अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एडल्टरी अपराध नहीं, संविधान पीठ ने एकमत से फैसला किया है। हालांकि इसे तलाक का आधार माना जा सकता है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडल्टरी लॉ को रद्द कर देने के फैसले के बाद याचिकाकर्ता के वकील राज कल्लिशवरम ने कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला है। मैं इस फैसले से बेहद खुश हूं। भारत की जनता को भी इससे खुश होना चाहिए।
It is a monumental judgement. I am extremely happy with the judgement. The people of India should also be happy: Petitioner's lawyer Raj Kallishwaram to ANI on SC decriminalises adultery in a unanimous judgement
— ANI (@ANI) September 27, 2018
आपको बता दें, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आठ अगस्त को अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद के जिरह पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में पीठ ने एक अगस्त से छह दिनों तक सुनवाई की थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड और इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने व्यभिचार पर आपराधिक कानून को बरकरार रखने का पक्ष लेते हुए कहा था कि यह एक गलत चीज है जिससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार पर असर पड़ता है।