सावित्री बाई फुलेः भारत की पहली महिला शिक्षक की जिंदगी से जुड़ी कुछ प्रेरणादायक बातें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 3, 2020 10:05 AM2020-01-03T10:05:07+5:302020-01-03T12:25:31+5:30

भारत में पहली महिला शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। सावित्री बाई फुले को भारत की पहली शिक्षिका होने का श्रेय जाता है। उन्होंने यह उपलब्धि ऐसे समय में पाई थी जब महिलाओं को पर्दे में रखा जाता था।

Savitribai Phule: Intersting facts about India’s first feminist icon and female teacher | सावित्री बाई फुलेः भारत की पहली महिला शिक्षक की जिंदगी से जुड़ी कुछ प्रेरणादायक बातें

सावित्री बाई फुलेः भारत की पहली महिला शिक्षक की जिंदगी से जुड़ी कुछ प्रेरणादायक बातें

Highlightsसावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव में हुआ था। सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले

भारत में पहली महिला शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। सावित्री बाई फुले को भारत की पहली शिक्षिका होने का श्रेय जाता है। उन्होंने यह उपलब्धि ऐसे समय में पाई थी जब महिलाओं को पर्दे में रखा जाता था। लेकिन उनके पति ज्योतिराव फुले के सहयोग के कारण उन्होंने न सिर्फ पढ़ाई की बल्कि देश की महिलाओं को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

विवाह के समय अनपढ़ थीं सावित्री बाई

सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव में हुआ था। उनकी शादी महज 9 साल की उम्र में ज्योतिबा फुले के साथ हो गई थी। विवाह के समय सावित्री बाई फुले अनपढ़ थीं। लेकिन उन्होंने अपनी लगन और पति के सहयोग से पढ़ाई पूरी की और देश की पहली महिली शिक्षक होने का गौरव प्राप्त किया।

देश के पहले बालिका स्कूल की स्थापना

सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले। साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी। वहीं, अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था। लड़की की शिक्षा के लिए सावित्री बाई फुले का योगदान अतुलनीय है।

स्कूल जाने पर पत्थर मारते थे लोग

19वीं सदी में पिछड़ी जाति की महिलाओं का पढ़ना और समाज कार्य में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना बहुत मुश्किल था। बताया जाता है कि जब सावित्री बाई स्कूल जाती थीं तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे। लेकिन तमाम मुश्किलों का उन्होंने डंटकर सामना किया। उन्‍होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीड़ितों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की। जो उस समय के लिए बहुत साहसी और दूरदृष्टि भरा काम था। 

कविताएं भी लिखी

सावित्री बाई फुले मराठी में जनजागरण की कविताएं भी लिखती थी। उनकी एक कविता का हिंदी अनुवाद इस प्रकार हैः-
जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती

काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है,
 ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं

इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो
दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, 
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है

इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, 
ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो।

पति की मौत के बाद संभाली सारी जिम्मेदारी

सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को कराया गया। 28 नवंबर 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी। ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई। जिसका उन्होंने बखूबी निर्वहन किया। उनकी मृत्यु 10 मार्च 1897 में पुणे में हुई।

Web Title: Savitribai Phule: Intersting facts about India’s first feminist icon and female teacher

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