सवर्ण आरक्षण: 'आरक्षण' पर लगा दाग तो मिट गया, क्या खत्म होगा दलितों और पिछड़ों के साथ होने वाला भेदभाव?
By विकास कुमार | Published: January 10, 2019 02:53 PM2019-01-10T14:53:05+5:302019-01-10T14:54:41+5:30
मोदी सरकार की इस पहल के बाद ऐसा माना जा रहा है कि अब सामाजिक स्तर पर चल रहे भेदभाव को खत्म करने में सफलता मिलेगी, क्योंकि कल तक जो आरक्षण के विरोध में थे आज वो खुद आरक्षण के दायरे में हैं. और इसके लिए बाकायदा सरकार के जयकारे भी लगा रहे हैं.
सवर्ण आरक्षण के पास होने के बाद पूरे देश में सामाजिक बराबरी की चर्चा शुरू हो गई है. मोदी सरकार ने आगामी चुनाव को मद्देनजर रखते हुए भले ही इस बिल को पास किया हो लेकिन इसने आज एक स्थिति को स्पष्ट कर दिया कि लोग आरक्षण का विरोध तब तक ही करते हैं जब तक वो खुद इस दायरे में नहीं आते हों. पहली बार सत्ता पक्ष और विपक्ष की पार्टियां एक मुद्दे पर इतने अरसे के बाद एकजुट नजर आयीं.
भारत में आरक्षण को हमेशा एक कल्ट के रूप में देखा गया. अनारक्षित जातियां जो किसी कारण से सरकारी नौकरियां पाने में सफल नहीं हो रही थी, उनके ये अन्दर ये विचार बहुत ही प्रबल रूप से उत्पन्न होता था कि आरक्षित जातियां उनका हिस्सा मार रही हैं. इस देश में उनके टैलेंट की कोई कद्र नहीं है. और इसके बाद शुरू होता था एससी-एसटी और ओबीसी जातियों के खिलाफ भेदभाव जो आम सामाजिक दिनचर्या से लेकर कार्यस्थलों तक देखने को मिलता है.
क्या खत्म होगा दलितों और पिछड़ों के साथ भेदभाव
दलित और पिछड़ी जातियों का उपहास उड़ाया जाता है कि आप लोग तो आरक्षण के दम पर यहां तक पहुंचे हैं, आपमें कोई योग्यता नहीं है. उन्हें इस बात के लिए कुंठा से भर दिया जाता था जिससे उबरना उनके लिए मुश्किल होता होगा. सामाजिक बराबरी केवल आरक्षण लागू होने से नहीं आ जाती बल्कि जब तक लोगों के विचार में बराबरी की भावना नहीं आ जाती तब तक इस समस्या से उबरना मुश्किल होगा.
मोदी सरकार की इस पहल के बाद ऐसा माना जा रहा है कि अब सामाजिक स्तर पर चल रहे भेदभाव को खत्म करने में सफलता मिलेगी, क्योंकि कल तक जो आरक्षण के विरोध में थे आज वो खुद आरक्षण के दायरे में हैं. और इसके लिए बाकायदा सरकार के जयकारे भी लगा रहे हैं.
सभी धर्मों के सवर्णों के लिए है आरक्षण
लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण पर होने वाली बहस को अगर गौड़ से देखा जाये तो एक ही चीज सामने आती है कि इस देश में सामाजिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ जाने की हिम्मत किसी भी राजनीतिक दल में नहीं है. बार-बार सवर्ण आरक्षण के नाम दिए जाने से इस बिल को लेकर एक गलतफहमी भी लोगों के दिमाग में घर कर रही है कि क्या ये फायदा हिन्दू समाज के सवर्ण जातियों को ही मिलेगा?
ऐसा नहीं है, इसका फायदा मुस्लिम, ईसाई या बौद्ध किसी भी धर्म का व्यक्ति जो अपने समुदाय के अन्दर जनरल केटेगरी में आता है और आर्थिक रूप से पिछड़ा है, उसे इस आरक्षण के तहत फायदा मिलेगा. हां एक बात है कि सरकार ने जो आर्थिक रूप से पिछड़ापन की परिभाषा सवर्ण आरक्षण के लिए तय की है, उसे लेकर सवाल जरूर उठ रहे हैं और उठाना भी चाहिए.
भारत जैसे विकासशील देश में कितने लोगों की आमदनी 1 लाख रुपये प्रति महीने हैं, क्योंकि इस बिल का लाभ लेने की न्यूनतम योग्यता 8 लाख रुपये वार्षिक आय है. जो टैक्स रिटर्न फाइल करते हुए अपनी आय को 8 लाख रुपये दिखायेगा उसे ही इस आरक्षण का लाभ मिलेगा. एक बड़ा सवाल और भी है क्या सरकार के पास कोई आंकड़ा है कि देश में कितने लोगों के पास 5 एकड़ से कम जमीन है? इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में सरकार को देना पड़ सकता है, या तो जनता की अदालत में या सुप्रीम कोर्ट में.