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राजस्थानः राजेश पायलट का सपना साकार करने की ओर बढ़े सचिन,  सियासी इम्तिहान हुआ शुरू!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 28, 2018 18:24 IST

सचिन ने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री बन कर भविष्य में सीएम की अपनी दावेदारी सबसे मजबूत कर ली है, हालांकि आगे की राह मुश्किल नहीं तो इतनी आसान भी नहीं है.

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कभी राजेश पायलट के समर्थक चाहते थे कि वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल 55 वर्ष की उम्र में एक सड़क दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया. उस समय गाड़ी को वे खुद ड्राइव कर रहे थे. समर्थकों का यह सपना, सपना ही रह गया, लेकिन उनके बेटे राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट यह सपना साकार कर सकते हैं. 

सचिन ने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री बन कर भविष्य में सीएम की अपनी दावेदारी सबसे मजबूत कर ली है, हालांकि आगे की राह मुश्किल नहीं तो इतनी आसान भी नहीं है.

राजनीतिक राह तो उनके पिता पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजेश पायलट की भी आसान नहीं थी. राजेश पायलट तो पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़ना चाहते थे, परन्तु उनकी राजनीतिक पारी राजस्थान के भरतपुर से शुरू हुई, जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर संजय गांधी ने उन्हें भरतपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा. राजस्थान से राजनीतिक सफर शुरू हुआ तो वे सपरिवार राजस्थान के हो कर रह गए. इसके बाद तो उनका सियासी कद लगातार बढ़ता ही चला गया.

राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट की सियासी पारी 26 साल की उम्र में शुरू हुई, जब वे राजस्थान में राजेश पायलट की परंपरागत- दौसा सीट से 14 वीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गए. वे 2009 में फिर सांसद चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री बने. बतौर दूरसंचार मंत्रालय में राज्यमंत्री, उनका काम उनका राजनीतिक कद बढ़ाने वाला रहा. 

बतौर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट शुरुआत से ही राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार की जनविरोधी नीतियों का लगातार विरोध करते रहे. इस दौरान उन्होंने संपूर्ण राजस्थान में यात्राएं तो की ही, कांग्रेस के लिए जनसमर्थन जुटाने का भी काम किया. परिणाम यह रहा कि वे सीएम पद के सशक्त दावेदार बन गए. 

चुनाव हुए, कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अनुभव, सचिन पायलट के जोश और सक्रियता पर भारी पड़ा. सचिन सीएम नहीं बन पाए, लेकिन उपमुख्यमंत्री बन कर उन्होंने सियासी समझदारी का परिचय दिया. आज वे भविष्य में कांग्रेसी सीएम के दावेदारों में सबसे आगे खड़े हैं और यदि पांच साल बाद फिर से कांग्रेस की सरकार बनती है तो वे सीएम बन सकते हैं.लेकिन, इन पांच सालों में सचिन पायलट को कड़े सियासी इम्तिहान से गुजरना होगा.

सबसे पहली परीक्षा अगले आम चुनाव 2019 के दौरान है, जब कांग्रेस को राजस्थान से अधिक-से-अधिक लोस सीटें जीतने की जरूरत है. राजस्थान में 25 लोकसभा सीटें हैं और पिछले लोस चुनाव के दौरान भाजपा ने सारी 25 सीटें जीत लीं थी. विस चुनाव में कांग्रेस को मिले वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो इस वक्त मामला बराबरी का है, इसलिए किसी भी दल को अधिकतम 13 सीटें मिल सकती हैं. 

अगले चुनाव में कांग्रेस को 13 से जितनी भी ज्यादा सीटें मिलेंगी, वे कांग्रेस की बढ़ती क्षमता को प्रदर्शित करेंगी. इस वक्त नए मंत्रिमंडल के गठन के बाद कई वरिष्ठ, अनुभवी और प्रभावी नेताओं को जगह नहीं मिलीं हैं, जिसके कारण कांग्रेस में ही असंतोष बढ़ रहा है. इस असंतोष को कैसे खत्म किया जाता है, यह बेहद महत्वपूर्ण है.

यही नहीं, कांग्रेस में गुटबाजी पुरानी सियासी बीमारी है. गुटबाजी को खत्म करके कांग्रेस की मजबूती के लिए क्या प्रयास किए जाते हैं, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर है.

सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि- सचिन पायलट, कांग्रेस के घोषणा पत्र के वादे किस तरह से हकीकत में बदल सकते हैं? खासकर, बेरोजगार युवाओं के लिए वे क्या चमत्कारी कदम उठा सकते हैं? यह देखना दिलचस्प होगा। यदि, पांच साल तक राजस्थान की कांग्रेस सरकार, जनता की भावना और जरूरत पर खरी नहीं उतरती है तो हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा बनी रहेगी, मतलब... ऐसी स्थिति में सचिन पायलट के लिए सीएम पद का सपना साकार करना आसान नहीं रहेगा.

टॅग्स :सचिन पायलटकांग्रेसराजस्थान
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