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शांति व सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के मूल में बढ़ती कट्टरता, अफगानिस्तान के घटनाक्रमों ने भी यह स्पष्ट किया: प्रधानमंत्री

By भाषा | Updated: September 17, 2021 17:32 IST

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नयी दिल्ली, 17 सितंबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कट्टरता और अतिवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए शुक्रवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) से एक साझा खाका विकसित करने का आह्वान किया और शांति, सुरक्षा व विश्वास की कमी को इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि इन समस्याओं के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा ही है।

ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शुक्रवार को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की वार्षिक शिखर बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस कड़ी में अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रमों का उल्लेख किया और कहा कि संगठन के सदस्य देशों को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।

उन्होंने अपने संबोधन में बंदरगाह विहीन मध्य एशिया के देशों और भारत के बीच संपर्कों को बेहतर बनाने का आह्वान किया लेकिन साथ ही कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए संपर्क परियोजनाएं परामर्शी, पारदर्शी और सहभागी हो और इनका क्रियान्वयन करने के लिए सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संस्था के भविष्य के बारे में सोचने के लिए भी उपयुक्त अवसर है। मेरा मानना है कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित हैं और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ती हुई कट्टरता है। अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर एससीओ को पहल करके कार्य करना चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो यह पता चलेगा कि मध्य एशिया का क्षेत्र शांत और प्रगतिशील संस्कृति तथा मूल्यों का गढ़ रहा है और सूफीवाद जैसी परम्पराएं यहां सदियों से पनपीं और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं।

उन्होंने कहा कि इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरता और अतिवाद से लड़ने का एक साझा खाका विकसित करना चाहिए। भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में इस्लाम से जुड़ी शांत, सहिष्णु समावेशी संस्थाएं व परम्पराएं हैं। एससीओ को इनके बीच एक मजबूत नेटवर्क विकसित करने के लिए काम करना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि इस सन्दर्भ में एससीओ के रैट्स प्रक्रिया तंत्र की ओर से किए जा रहे काम की वह प्रशंसा करते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कट्टरपंथ से लड़ाई क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी विश्वास के लिए तो आवश्यक है ही युवा पीढ़ियों के उज्जवल भविष्य के लिए भी जरूरी है।

उन्होंने कहा, ‘‘विकसित विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे क्षेत्र को उभरती प्रौद्योगिकी में हितधारक बनना होगा। इसके लिए हमें अपने प्रतिभाशाली युवाओं को विज्ञान और विवेकपूर्ण सोच की ओर प्रोत्साहित करना होगा। हम अपने उद्यमियों और स्टार्टअप्स को एक दूसरे से जोड़कर इस तरह की सोच को बढ़ावा दे सकते हैं। इसी सोच से पिछले वर्ष भारत ने पहले एसएसीओ स्टार्ट-अप फोरम और युवा वैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन किया।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि एससीओ की सफलता का एक मुख्य कारण यह है कि इसके केंद्र में क्षेत्र की प्राथमिकताएं रही हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘कट्टरता, संपर्क और जनता के बीच संबंधों पर मेरे सुझाव एससीओ की इसी भूमिका को और सबल बनाएंगे।’’

मोदी ने कहा कि कट्टरता और असुरक्षा के कारण इस क्षेत्र की विशाल आर्थिक क्षमता का भी दोहन नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि खनिज संपदा हो या एससीओ देशों के बीच व्यापार, इनका पूर्ण लाभ उठाने के लिए आपसी संपर्क पर जोर देना होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत मध्य एशिया के साथ संपर्कों को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि उसका मानना ​​है कि मध्य एशियाई देश भारतीय बाजारों से जुड़कर लाभ उठा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारे में उसके प्रयास इसका समर्थन करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘संपर्क का कोई भी प्रयास एकतरफा नहीं हो सकता। इसे सुनिश्चित करने के लिए ऐसी परियोजनाओं को परामर्शी, पारदर्शी और सहभागी होने की जरूरत है और सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि इन सिद्धांतों के आधार पर एससीओ को क्षेत्र में संपर्क परियोजनाओं के लिए उपयुक्त नियम कायदे विकसित करने चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘इसी से हम इस क्षेत्र के पारंपरिक संपर्क को पुनः स्थापित कर पाएंगे और तभी संपर्क परियोजनाएं हमें जोड़ने का काम करेंगी न कि हमारे बीच दूरी बढ़ाने का।इस प्रयत्न के लिए भारत अपनी तरफ से हर प्रकार का योगदान देने के लिए तैयार है।’’

एससीओ परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों की 21वीं बैठक शुक्रवार को हाइब्रिड प्रारूप में दुशांबे में आरंभ हुई। इसकी अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने के लिये दुशांबे में हैं।

एससीओ की इस बैठक में अफगानिस्तान संकट, क्षेत्रीय सुरक्षा, सहयोग एवं सम्पर्क सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा होगी।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एससीओ के नए सदस्य देश ईरान का स्वागत किया और साथ ही वार्ता के सहयोगी देशों का भी आभार जताया। उन्होंने कहा कि नए सदस्य और ‘‘डायलॉग पार्टनर’’ से एससीओ और मजबूत तथा विश्वसनीय बनेगा।

पहली बार एससीओ की शिखर बैठक हाइब्रिड प्रारूप में आयोजित की जा रही है और यह चौथी शिखर बैठक है जिसमें भारत एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में हिस्सा ले रहा है। हाईब्रिड प्रारूप के तहत आयोजन के कुछ हिस्से को डिजिटल आधार पर और शेष हिस्से को आमंत्रित सदस्यों की प्रत्यक्ष उपस्थिति के माध्यम से संपन्न किया जाता है।

एससीओ को शांति, सुरक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन माना जाता है।

इस बैठक का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि संगठन इस वर्ष अपनी स्थापना की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है।

उल्लेखनीय है कि एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 को हुई थी और भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके पूर्णकालिक सदस्य बने। एससीओ में भारत और पाकिस्तान के अलावा रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान तथा उजबेकिस्तान शामिल हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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