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कृषि कानूनों की वापसी लोगों के संघर्ष की जीत, प्रधानमंत्री को माफी मांगनी चाहिए : वामपंथी दल

By भाषा | Updated: November 19, 2021 15:44 IST

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नयी दिल्ली, 19 नवंबर वामपंथी दलों ने शुक्रवार को कहा कि तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने का सरकार का निर्णय लोगों के संघर्ष की जीत है और कहा कि इस सरकार की कथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन की यह शुरुआत भर है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार की सुबह देश को संबोधित करते हुए घोषणा की कि वह तीनों कृषि कानूनों को वापस ले रहे हैं।

माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रदर्शन के दौरान किसानों की मौत पर मोदी से माफी मांगने के लिए कहा।

येचुरी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘अपनी जिद के कारण मोदी ने ‘अन्नदाताओं’ की मौत को लेकर कोई अफसोस नहीं जताया। मोदी अब भी इन कृषि कानूनों को उचित ठहरा रहे हैं। इस ऐतिहासिक, प्रेरणादायक और बहादुरी वाले संघर्ष से वह कुछ नहीं सीखना चाहते।’’

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘सरकार और इसकी एजेंसियों द्वारा ‘फर्जी’ मामलों के माध्यम से निशाना बनाए गए लोगों के लिए न्याय का संघर्ष जारी रहेगा। अपने ‘क्रोनी’ व्यवसायी सहयोगियों के फायदे के लिए कृषि कानूनों का ‘तानाशाही’ कदम उठाने के कारण हुई परेशानियां के लिए प्रधानमंत्री को माफी मांगनी चाहिए।’’

भाकपा के सांसद बिनय विस्वम ने एक वीडियो संदेश में कहा कि किसानों ने सरकार के खिलाफ लड़ाई जीती है और आरोप लगाया कि सरकार ‘‘कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट के हवाले कर रही थी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह भारत के लोगों के लिए जीत का क्षण है। भारतीय कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट लूट से बचाने के लिए किसान लड़े और जीते। उन्होंने उस सरकार को हरा दिया जो भारतीय कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट क्षेत्र को सौंपने जा रही थी... लोगों की जान जाने और कठिनाईयों का सामना करने के बावजूद उन्होंने भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए जंग की । अंतत: मोदी सरकार इसे वापस लेने के लिए बाध्य हुई क्योंकि उसके पास कोई और विकल्प नहीं था।’’

भाकपा- माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘किसानों ने ‘सत्ता के नशे में चूर घमंडी’ मोदी सरकार को अब तक का सबसे बड़ा झटका दिया है। जीत का जश्न मनाइए, आंदोलन को और आगे ले जाइए।’’

तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मोदी सरकार की घोषणा का स्वागत करते हुए आंदोलनरत किसान संगठनों के संघ संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा कि वह इंतजार करेगा कि घोषणा को संसदीय प्रक्रिया द्वारा प्रभावी किया जाए। साथ ही कहा कि उनकी अन्य मांगें अब भी लंबित हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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