पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद से पूरे देश में दुख और गुस्से का माहौल पैदा हो चुका है। अब लोगों की मांग उठ रही है कि कश्मीर से धारा 370 हटा दी जाए ताकि पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके।
सोशल मीडिया पर लोग #RemoveArticle370 लिखकर सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि कश्मीर से जल्द से जल्द धारा 370 हटाई जाए। लोगों का कहना है कि यही शहीद जवानों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
भाजपा विधायक ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर अनुच्छेद 370 रद्द करने की मांग की
महाराष्ट्र के भाजपा विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा ने रविवार को संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने की मांग की, जो जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देता है। लोढ़ा ने जम्मू कश्मीर के लिए एक विशेष पैकेज की भी मांग की ,ताकि वहां के युवाओं को व्यापार और उद्योगों में अवसर मिल सके। मलाबार हिल से विधायक लोढ़ा ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख कर कहा है कि जम्मू कश्मीर के लोगों को अलगाव का एहसास नहीं होना चाहिए।
अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई के अनुरोध पर होगा विचार
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने और राज्य के लिये कानून बनाने के संसद के अधिकार को सीमित करने वाले अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई के अनुरोध पर विचार किया जायेगा।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय के अनुरोध का संज्ञान लिया कि उनकी याचिका अत्यधिक राष्ट्रीय महत्व की है और इसे शीघ्र सूचीबद्ध करने की आवश्यकता है।
पीठ ने उपाध्याय से कहा, ‘‘अपना उल्लेख संबंधी मेमो रजिस्ट्रार को दे दीजिये। हम इस पर गौर करेंगे।’’
उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी है कि संविधान तैयार करते समय यह विशेष प्रावधान ‘अस्थाई’ स्वरूप का था और 26 जनवरी, 1957 को जम्मू कश्मीर संविद सभा के भंग होने के साथ ही अनुच्छेद 370(3) समाप्त हो गया है।
पिछले साल सितंबर में दायर की गयी इस याचिका में शीर्ष अदालत से जम्मू कश्मीर के लिये अलग संविधान को विभिन्न आधारों पर ‘‘मनमाना’’ और ‘‘असंवैधानिक’’ घोषित करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि यह एक राष्ट्र-एक विधान, एक राष्ट्रगान और एक ध्वज के सिद्धांत के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 का अधिकतम कार्यकाल संविद सभा के अस्तित्व में रहने तक अर्थात 26 जनवरी, 1950 तक था, जब संविधान को अपनाया गया।