अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार से ‘रावण’ भी बच नहीं पाया, कद और छोटा हुआ, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों के कद्रदान कम

By भाषा | Updated: October 3, 2019 14:13 IST2019-10-03T14:13:34+5:302019-10-03T14:13:34+5:30

पुतला बनाने वालों में दिल्ली के अलावा हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तक के कारीगर शामिल हैं। पिछले 25 साल से पुतला बना रहे महेंद्र कहते हैं, ‘‘अर्थव्यवस्था में सुस्ती है। अन्य क्षेत्रों की तरह इसका असर पुतलों के कारोबार पर भी पड़ा है।

Ravana was also unable to survive due to sluggishness in the economy, it became shorter and shorter, the effigies of Kumbhakarna and Meghnad's effigies decreased. | अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार से ‘रावण’ भी बच नहीं पाया, कद और छोटा हुआ, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों के कद्रदान कम

दाम चढ़ने और जगह की कमी की वजह से आयोजक छोटे पुतलों की मांग करने लगे हैं।

Highlightsराजा गार्डन फ्लाईओवर से लेकर सुभाष नगर, राजौरी गार्डन और रघुबीर नगर इलाकों में कारीगर दिन रात पुतलों की साज-सज्जा में जुटे हैं। दशहरा से करीब 45 दिन पहले आसपास के राज्यों के कारीगर पुतला बनाने वाले बड़े ‘दुकानदारों’ के पास आ जाते हैं।

अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार से ‘रावण’ भी बच नहीं पाया है। इस बार पुतलों के बाजार में ‘रावण’ का कद और छोटा हो गया है। राजधानी के पश्चिम दिल्ली के तातारपुर गांव के पुतला बनाने वाले कारीगरों को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है।

इन कारीगरों का कहना है, ‘‘अर्थव्यवस्था सुस्त है, साथ ही पुतला बनाने वाली सामग्रियों के दाम काफी चढ़ चुके हैं। ऐसे में हमें पुतलों का आकार काफी छोटा करना पड़ा है।’’ तातारपुर पुतलों का प्रमुख बाजार है, लेकिन इस साल यहां कुछ ही स्थानों पर पुतले बनाए जा रहे हैं। यहां के कारीगरों को सुभाष नगर के बेरी वाला बाग में जगह दी गई है। इसके अलावा राजा गार्डन फ्लाईओवर से लेकर सुभाष नगर, राजौरी गार्डन और रघुबीर नगर इलाकों में कारीगर दिन रात पुतलों की साज-सज्जा में जुटे हैं।

दशहरा से करीब 45 दिन पहले आसपास के राज्यों के कारीगर पुतला बनाने वाले बड़े ‘दुकानदारों’ के पास आ जाते हैं। पुतला बनाने वालों में दिल्ली के अलावा हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तक के कारीगर शामिल हैं। पिछले 25 साल से पुतला बना रहे महेंद्र कहते हैं, ‘‘अर्थव्यवस्था में सुस्ती है। अन्य क्षेत्रों की तरह इसका असर पुतलों के कारोबार पर भी पड़ा है। इस वजह से हमें पुतलों का आकार कम करना पड़ा है क्योंकि पुतला जितना बड़ा होगा, लागत भी उतनी ही अधिक होगी और दाम भी उसी हिसाब से बढ़ जाएगा।’’

महेंद्र ने कहा, ‘‘पुतला बनाने की सामग्री भी काफी महंगी हो चुकी है। 20 बांस की कौड़ी का दाम 1,200-1,300 रुपये हो गया है जो पिछले साल तक 1,000 रुपये था। पुतला बांधने में काम आने वाली तार भी 50 रुपये किलो के बजाय 150 रुपये में मिल रही है।

कागज का दाम तो लगभग दोगुना हो गया है।’’ तीस साल से अधिक समय से पुतला बनाने के कारोबार से जुड़े सुभाष ने कहा, ‘‘कभी तातारपुर का रावण विदेश भी भेजा जाता था। यहां से रावण के पुतले विशेष रूप से आस्ट्रेलिया तक भेजे जाते थे, लेकिन अब विदेशों से मांग नहीं आती है।’’

हरियाणा के करनाल से यहां आकर पुतला बनाने वाले संजय ने कहा कि कभी तातारपुर और आसपास के इलाकों में 60-70 फुट तक के भी पुतले बनाए जाते थे, लेकिन अब दाम चढ़ने और जगह की कमी की वजह से आयोजक छोटे पुतलों की मांग करने लगे हैं।

संजय कहते हैं कि आज रावण के पुतलों की तो मांग है, लेकिन कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों के कद्रदान कम ही हैं। ग्राहक द्वारा कुंभकर्ण या मेघनाद का पुतला मांगने पर पुतले का रंग बदल दिया जाता है या मूंछें छोटी कर दी जाती हैं। टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन के नीचे पुतले बनाने में जुटे राजू ने कहा कि तातारपुर और आसपास 40 फुट तक के ही पुतले बनाए जा रहे हैं। इस बार 40 फुट के पुतले का दाम 17,000 से 20,000 रुपये तक पहुंच गया है। पिछले साल तक यह 12,000-13,000 रुपये था।

हालांकि, राजू ने कहा कि पुतलों का दाम ग्राहक देखकर तय किया जाता है। मध्य प्रदेश के एक कारीगर गोकुल ने कहा, ‘‘इस बार बच्चों के लिए विशेष रूप से पांच से दस फुट के पुतले बनाए जा रहे हैं।’’ गोकुल ने बताया कि बच्चों के लिए बनाए जा रहे पांच से दस फुट के ‘छोटे रावण’ का दाम 1,500 से 4,000 रुपये तक है।

पुतले बनाने वाले बड़े हर बड़े दुकानदार के पास 20 से 30 लोग काम करते हैं। तातारपुर और आसपास के इलाकों से पुतले हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब तक भेजे जाते हैं। इस समय तातारपुर और आसपास के इलाकों में 500 से अधिक पुतले बनाए जा रहे हैं, जबकि कभी अकेले तातारपुर में ही 1,000 से अधिक पुतले बनाए जाते थे। इनकी मांग हर साल लगातार घट रही है और आकार भी छोटा हो जा रहा है। 

Web Title: Ravana was also unable to survive due to sluggishness in the economy, it became shorter and shorter, the effigies of Kumbhakarna and Meghnad's effigies decreased.

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