रामजन्मभूमि-बाबरी विवादः न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े ने कहा- हिंदू-मुसलमान के पास पुख्ता सबूत नहीं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 27, 2019 13:29 IST2019-09-27T13:28:46+5:302019-09-27T13:29:40+5:30

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वे एएसआई की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति के मुद्दे पर सवाल नहीं करना चाहते हैं।

Ramjanmabhoomi-Babri Masjid: Justice SA Bobde said - Hindu-Muslims have no strong evidence | रामजन्मभूमि-बाबरी विवादः न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े ने कहा- हिंदू-मुसलमान के पास पुख्ता सबूत नहीं

गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि 18 अक्टूबर तक मामले की सुनवाई पूरी होनी चाहिए।

Highlightsसंविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति को लेकर सवाल उठाये जाने के बाद बृहस्पतिवार को पलटी मारी।

उच्चतम न्यायालय में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद पर सुनवाई जारी है। आज इस सुनवाई का 33वां दिन है। गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि 18 अक्टूबर तक मामले की सुनवाई पूरी होनी चाहिए। वरना फैसला आने की संभावना कम हो सकता है।

 राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद प्रकरण में मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति को लेकर सवाल उठाये जाने के बाद बृहस्पतिवार को पलटी मारी और इस मामले में उच्चतम न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उससे माफी मांगी।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। इस बीच, न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े ने कहा कि हिंदू-मुसलमान के पास पुख्ता सबूत नहीं है। दोनों पक्ष इस मुद्दे पर कुछ खास नहीं कर रहे हैं।

 सुनवाई के दौरान मोहम्मद फारुख की ओर से हाईकोर्ट के जजमेंट पर बहस कर रहे वरिष्ठ वकील शेखर नफाडे ने कहा कि हिंदुओं के पास उस स्थान का सीमित अधिकार है। उनके पास चबूतरे का अधिकार तो है, वो स्वामित्व हासिल करने की कोशिश कर रहे थे जिसे नकार दिया गया। हिंदुओं की ओर से लगातार अतिक्रमण की कोशिश की गई। मुस्लिम पक्ष की ओर से ASI की रिपोर्ट पर बहस कर रहीं मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में कहीं पर भी राम मंदिर का स्थान नहीं बताया गया है, जबकि राम चबूतरे को वाटर टैंक बताया गया है।

मीनाक्षी अरोड़ा की तरफ से उठाए गए सवालों पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हमें पता है कि पुरातत्व विभाग की तरफ से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यहां असली सबूत कौन दे सकता है? हम यहां इसी आधार पर निर्णय ले रहे हैं कि किसका अनुमान सटीक है और क्या विकल्प हैं..? जस्टिस बोबड़े ने कहा कि ये काफी प्राचीन दौर की बात है, इसलिए कोई राय बनाना कठिन है। दोनों पक्षों के तर्क अनुमानों पर आधारित हैं। हमें इन अनुमानों की पुष्ट‍ि करने की जरूरत है। आपने कहा कि पुरातत्वविदों के अनुमान के मुताबिक यह स्थान राम मंदिर है।

एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद के पहले वहां विशाल ढांचा मौजूद था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वे एएसआई की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति के मुद्दे पर सवाल नहीं करना चाहते हैं।

एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार वहां मिली कलाकृतियों, मूर्तियों, स्तंभ और दूसरे अवशेषों से यही संकत मिलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे विशेष ढांचा मौजूद था। मुस्लिम पक्षकारों का यह कथन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शीर्ष अदालत ने बुधवार को उनसे सवाल किया था कि इस समय एएसआई की रिपोर्ट के बारे में उनकी आपत्तियों पर कैसे विचार किया जा सकता है जबकि वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानून के तहत उपलब्ध उपाय का सहारा लेने में विफल रहे।

इससे हो रहे नुकसान को कम करने के प्रयास में धवन ने इस बारे में बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों की वजह से काफी समय बर्बाद होने पर माफी मांगी। धवन ने कहा , ‘‘यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर करना जरूरी हो। रिपोर्ट और इसका सारांश लिखने वाले व्यक्ति पर सवाल उठाने की आवश्यकता नहीं है। यदि हमने न्यायाधीशों का समय बर्बाद किया है तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जिस रिपोर्ट की बात की जा रही है, उसका एक लेखक है और हम लेखन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं।’’ संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू होते ही हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों से कहा कि वे दलीलें पूरी होने की समयसीमा बताएं।

पीठ ने कहा कि उन्हें 18 अक्टूबर के बाद एक भी अतिरिक्त दिन नहीं दिया जाएगा। न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘18 अक्टूबर के बाद कोई अतिरिक्त दिन नहीं दिया जाएगा। यदि हम इस मामले में चार सप्ताह में फैसला सुना देते हैं तो यह अद्भुत होगा।’’ मीनाक्षी अरोड़ा ने बुधवार को एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुये कहा था कि इसमें सत्यापन करने जैसा कोई निष्कर्ष नहीं है और यह अधिकतर अनुमानों पर ही आधारित है। उन्होंने कहा था कि रिपोर्ट में 10 अध्याय हैं और उनका एक लेखक है जबकि सारांश का श्रेय किसी को नहीं दिया गया है।

पीठ ने कहा कि धवन ने अपनी शुरुआती टिप्पणी में ही कहा था कि उन्होंने रिपोर्ट पर सवाल करने का अपना अधिकार छोड़ा नहीं है लेकिन न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद सबूतों पर संदेह नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि इसके तीन पहलू हैं-क्या न्यायालय द्वारा नियुक्त आयुक्त ऐसा कोई निर्णय कर सकते हैं जिसके लिये उनसे नहीं कहा गया था, क्या आयुक्त वह निर्णय करने में असफल रहे जो उनसे कहा गया था या क्या रिपोर्ट में कोई विरोधाभास है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय में इन पहलुओं पर निश्चित ही बहस की जा सकती है। हमें इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आती लेकिन रिपोर्ट, जिसे न्यायालय ने साक्ष्य के रूप में लिया है, उसे इस समय दरकिनार नहीं किया जा सकता।’’ धवन ने कानूनी स्थिति पर बहस करते हुये कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय में भी इस रिपोर्ट पर आपत्ति उठाने का प्रयास किया था लेकिन न्यायाधीशों ने कहा कि अंतिम चरण में इस पर निर्णय किया जायेगा, जो दुर्भाग्यवश नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के नियम 10 के उपनियम दो के आदेश 26 के तहत आयुक्त की रिपोर्ट और उनके द्वारा एकत्र साक्ष्य रिकार्ड का हिस्सा हैं और अगर संविधान पीठ यह निर्णय करती है कि रिपोर्ट पर सवाल नहीं उठाये जा सकते तो इसका व्यापक असर होगा। संविधान पीठ इस प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है। उच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था। 

Web Title: Ramjanmabhoomi-Babri Masjid: Justice SA Bobde said - Hindu-Muslims have no strong evidence

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