सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मुद्दे पर दिया मध्यस्थता का फैसला, तीन लोगों का पैनल आठ हफ्ते में सौंपेगा रिपोर्ट
By आदित्य द्विवेदी | Published: March 8, 2019 10:54 AM2019-03-08T10:54:26+5:302019-03-08T11:10:54+5:30
सरकार ने मध्यस्थता करने के लिए तीन लोगों का पैनल भी बनाया है जिसमें श्री श्री रविशंकर, जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला और सीनियर एडवोकेट श्री राम पंचू शामिल हैं। ये पैनल सुप्रीम कोर्ट में आठ हफ्तों में रिपोर्ट सौंपेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के लिए मध्यस्थता से समाधान निकालने का आदेश दिया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों को सुना था। पीठ ने कहा कि आठ हफ्ते में मध्यस्थों की अपनी पूरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी होगी। सरकार ने मध्यस्थता करने के लिए तीन लोगों का पैनल भी बनाया है जिसमें धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर, जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला और सीनियर एडवोकेट श्री राम पंचू शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगा दी है। पीठ ने कहा कि मध्यस्थता की सारी प्रक्रिया कैमरे में रिकॉर्ड होगी। इसे फैजाबाद में आयोजित किया जाएगा। इस प्रक्रिया को पीठ ने गुप्त रखने पर जोर दिया है। इस प्रकरण में निर्मोही अखाड़ा के अलावा अन्य हिन्दू संगठनों ने इस विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजने के शीर्ष अदालत के सुझाव का विरोध किया था, जबकि मुस्लिम संगठनों ने इस विचार का समर्थन किया था।
Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: Supreme Court says mediation proceedings should be held on-camera. Mediation process will be held in Faizabad. It will be headed by Justice FM Kaliifullah and also comprise Sri Sri Ravi Shankar and senior advocate Sriram Panchu. pic.twitter.com/6gx9FSogG2
— ANI (@ANI) March 8, 2019
शीर्ष अदालत ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
निर्मोही अखाड़ा जैसे हिंदू संगठनों ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों - न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी के नाम मध्यस्थ के तौर पर सुझाए जबकि स्वामी चक्रपाणी धड़े के हिंदू महासभा ने पूर्व प्रधान न्यायाधीशों - न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए के पटनायक का नाम प्रस्तावित किया।
न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजा जाए या नहीं इस पर आदेश देगा। साथ ही इस बात को रेखांकित किया कि मुगल शासक बाबर ने जो किया उसपर उसका कोई नियंत्रण नहीं और उसका सरोकार सिर्फ मौजूदा स्थिति को सुलझाने से है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका मानना है कि मामला मूल रूप से तकरीबन 1,500 वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है।
उप्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि न्यायालय को यह मामला उसी स्थिति में मध्यस्थता के लिये भेजना चाहिए जब इसके समाधान की कोई संभावना हो। उन्होंने कहा कि इस विवाद के स्वरूप को देखते हुये मध्यस्थता का मार्ग चुनना उचित नहीं होगा।
इससे पहले, फरवरी महीने में शीर्ष अदालत ने सभी पक्षकारों को दशकों पुराने इस विवाद को मैत्रीपूर्ण तरीके से मध्यस्थता के जरिये निपटाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। न्यायालय ने कहा था कि इससे ‘‘संबंधों को बेहतर’’ बनाने में मदद मिल सकती है।
शीर्ष अदालत में अयोध्या प्रकरण में चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाये।
समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से इनपुट्स लेकर