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राजस्थानी सियासी सोच का असर नजर आएगा हरियाणा विधानसभा चुनाव में?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: August 31, 2019 17:54 IST

राजस्थान के हनुमानगढ़, शेखावाटी, अलवर के क्षेत्र हरियाणा से जुड़े हैं, तो हरियाणा के हिसार, सिरसा, फतेहाबाद, चरखी दादरी, रेवाड़ी, नारनौल आदि का जुड़ाव राजस्थान से है. यहां सामाजिक रिश्ते तो होते ही हैं, सियासी तौर पर भी एक-दूजे की सोच अपना प्रभाव दिखाती है.

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भौगोलिक आधार पर भले ही राज्यों को बांट दिया गया हो, लेकिन विभिन्न प्रदेशों की सीमाओं पर जनता की सियासी सोच का असर जरूर नजर आता है. जहां हरियाणा की सियासी सोच का असर उत्तर-पूर्वी राजस्थान पर नजर आता है, वहीं दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा पर राजस्थान की राजनीतिक हवाएं अपना प्रभाव दिखाती रही हैं.

राजस्थान के हनुमानगढ़, शेखावाटी, अलवर के क्षेत्र हरियाणा से जुड़े हैं, तो हरियाणा के हिसार, सिरसा, फतेहाबाद, चरखी दादरी, रेवाड़ी, नारनौल आदि का जुड़ाव राजस्थान से है. यहां सामाजिक रिश्ते तो होते ही हैं, सियासी तौर पर भी एक-दूजे की सोच अपना प्रभाव दिखाती है.

यही नहीं, हरियाणा के कई क्षेत्र यूपी, दिल्ली, पंजाब आदि की सीमाओं पर भी हैं. जाहिर है, इस छोटे से राज्य में कई सियासी सोचों का संगम होता रहा है. इसी कारण से एक चुनाव होने के बाद दूसरे चुनाव के बारे में कोई स्पष्ट धारणा बनाना राजनीतिक विश्लेषण के नजरिए से सही नहीं करार दिया जा सकता है. यही वजह भी है कि हरियाणा का सियासी समीकरण बहुत तेजी से बदल जाता है.

लोकसभा चुनाव 2014 में जहां बीजेपी ने हरियाणा में 7 सीटें जीती थी, वहीं 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा के प्रमुख सियासी परिवारों के गढ़ों को ढेर कर दिया और सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की.

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2014 में 47 सीटें हासिल करके भाजपा ने पहली बार स्पष्ट बहुमत पाया था. कुल 90 विधान सभा सीटों में से इनेलो को 19 और कांग्रेस को मात्र 15 सीटें ही मिली थीं. 

विस चुनाव में इस बड़े बदलाव का सबसे बड़ा कारण था कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बहुत ज्यादा गिर गया. जहां 2009 में कांग्रेस ने 35.08 प्रतिशत वोट के साथ 40 सीटें जीती थी, वहीं, 2014 में 20.6 प्रतिशत मत के साथ उसे केवल 15 सीटें ही मिली.

जबकि, 2009 में 9.04 प्रतिशत वोट के साथ 4 सीटें पाने वाली बीजेपी को 2014 में 33.2 प्रतिशत मत के साथ 47 सीटें मिलीं.

वर्ष 2014 के विस चुनाव में सीटों का बड़ा नुकसान तो इनेलों को भी हुआ, लेकिन वोट प्रतिशत में बहुत ज्यादा कमी नहीं आई. इंडियन नेशनल लोकदल को 2014 में 19 सीटें (24.1 प्रतिशत मत) मिली जबकि 2009 में 31 सीटें (25.79 प्रतिशत मत) मिली थीं.

देखना दिलचस्प होगा कि इस बार विधानसभा चुनाव में किसका सियासी समीकरण गड़बड़ाता है और कामयाबी किसके हिस्से में आती है?

टॅग्स :राजस्थानजयपुरहरियाणाहरियाणा विधानसभा चुनाव 2019भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसइंडियन नेशनल लोक दल
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