नीतीश कुमार के विपक्षी एकता की मुहिम पर उठने लगे हैं सवाल, क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षाएं आ सकती हैं आड़े
By एस पी सिन्हा | Published: May 12, 2023 04:30 PM2023-05-12T16:30:10+5:302023-05-12T16:32:40+5:30
नीतीश कुमार 9 मई को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिलने पहुंचे थे। मुलाकात के दौरान पटनायक नीतीश से करीबी दिखा रहे थे, लेकिन ठीक 2 दिन बाद यानी 11 मई को पटनायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंच गए। उन्होंने कहा मुझे नहीं लगता, फिलहाल तीसरे मोर्चे की कोई संभावना है।
पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विपक्षी एकता की मुहिम की सफलता पर अब सवाल उठाये जाने लगे हैं। नीतीश कुमार का प्रयास संदेह के घेरे में है। इसका कारण यह है कि नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम को लेकर अबतक 6 राज्यों में घूम चुके हैं, लेकिन 3 राज्यों को छोड़ दें तो कहीं और से उन्हें खुला समर्थन नही मिल पाया है। दरअसल, क्षेत्रीय दलों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। ऐसे में उनका साथ आना एक चुनौती से कम नही है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 9 मई को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिलने पहुंचे थे। मुलाकात के दौरान पटनायक नीतीश से करीबी दिखा रहे थे, लेकिन ठीक 2 दिन बाद यानी 11 मई को पटनायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंच गए। उन्होंने कहा मुझे नहीं लगता, फिलहाल तीसरे मोर्चे की कोई संभावना है।
इसके पहले नीतीश कुमार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिले थे। नीतीश से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने कहा था कि एक दिन के मुलाकात से सारी रणनीति नहीं बन जाती है। उसके लिए बार-बार मिलना होता है। जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अभी तक खुलकर कुछ नही कहा है। वहीं तेलांगना के मुख्यमंत्री केसीआर का साथ आना लगभग नामुमकिन ही लग रहा है। जबकि आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी का भी नीतीश के साथ आना लगभग असंभव ही प्रतित हो रहा है। ऐसे में नीतीश के विपक्षी एकता धरातल पर उतरती दिखाई नही दे रही है।
हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी ओर से हरसंभव प्रयास में जुटे हुए हैं। उनका मानना है कि विपक्ष देश में भाजपा का मुकाबला तभी कर सकती है, जब कांग्रेस उनके साथ रहे। यही वजह है कि उन्होंने विपक्षी एकता की मुहिम की शुरुआत दिल्ली में कांग्रेस नेताओं के साथ मिलकर की। नीतीश कुमार दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले थे और विपक्षी एकता बनाने पर सहमति ली थी। लेकिन क्षेत्रीय दलों में कौन-कौन लोग कांग्रेस के साथ आएंगे, एक अहम सवाल बना हुआ है। इसका कारण है कि क्षेत्रीय दलों को अपने-अपने राजनीति रसूख को भी बचाए रखने की चुनौती है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी उन राज्यों में अपनी स्थिति को कभी भी जमींदोज होते देखना नही चाहेगी। ऐसे में क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस का एकसाथ आना थोड़ा मुश्किल प्रतित हो रहा है। बता दें कि 2019 के आम चुनाव में एनडीए को 352 सीटें मिली थी। इनमें से अकेले भाजपा ने 303 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि, 2022 में जदयू एक बार फिर एनडीए से अलग हो गई। जदयू को पिछले चुनाव में 16 लोकसभा सीट जीत मिली थी। वहीं, पूरा विपक्ष महज 92 सीटों पर सिमट गया, जिसमें कांग्रेस पूरे देश में सिर्फ 52 सीट ही जीत पाई। ऐसे में नीतीश के लिए विपक्षी एकता की राह असान नही लग रहा है।