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व्यापक विरोध के दौरान भड़काऊ भाषण, सड़क अवरुद्ध करना असामान्य नहीं : अदालत

By भाषा | Updated: June 15, 2021 20:36 IST

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नयी दिल्ली, 15 जून दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सरकार या संसदीय कार्रवाई के बड़े पैमाने पर होने वाले विरोध के दौरान भड़काऊ भाषण देना, चक्का जाम करना या ऐसे ही अन्य कृत्य असामान्य नहीं हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि सरकारी या संसदीय कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन वैध हैं और यद्यपि प्रदर्शनों के शांतिपूर्ण और अहिंसक होने की उम्मीद की जाती है, लेकिन प्रदर्शनकारियों द्वारा कानूनी तौर पर स्वीकृत सीमा से आगे बढ़ जाना असामान्य नहीं है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जे भंभानी की पीठ ने कहा, “अगर हम कोई राय व्यक्त किये बिना दलील के लिये यह मान भी लें कि मौजूदा मामले में भड़काऊ भाषण, चक्का जाम, महिला प्रदर्शनकारियों को उकसाना और अन्य कृत्य, जिसमें याचिकाकर्ता के शामिल होने का आरोप है, संविधान के तहत मिली शांतिपूर्ण प्रदर्शन की सीमा को लांघते हैं, तो भी यह गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत ‘आतंकवादी कृत्य’, ‘साजिश’ या आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने के लिये “साजिश की तैयारी” करने जैसा नहीं है।”

उच्च न्यायालय ने जेएनयू छात्रा और ‘पिंजरा तोड़’ कार्यकर्ता देवांगना कलिता को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की जिसे संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के मामले में व्यापक साजिश के सिलसिले में बीती मई में सख्त कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था।

पीठ ने कहा, “मौजूदा आरोप-पत्र और उसमें शामिल सामग्री को पढ़ने पर भी प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप हमें उस सामग्री में भी नजर नहीं आते जिस पर वह वे आधारित हैं। ”

पीठ ने कहा, “अनावश्यक शब्दावलियों, अतिश्योक्ति और अभियोजन एजेंसी द्वारा उनसे निकाले गए विस्तृत अनुमान, हमें डर है कि हमारी राय में याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया लगाए गए तथ्यात्मक आरोप यूएपीए की धारा 15, 17 और-या 18 के तहत अपराध होने का खुलासा नहीं करते हैं।”

पीठ ने कहा कि मौजूदा आरोप-पत्र के एक अंश के अध्ययन पर उसने पाया कि याचिकाकर्ता का नाम कई अन्य कथित सह-साजिशकर्ताओं के साथ आया है और यहां तक कि मुख्य साजिशकर्ताओं ने जो निर्देश कथित तौर पर जारी किये, वे भी याचिकाकर्ता को निर्देशित नहीं थे।

उच्च न्यायाय ने उस “गलतफहमी” को भी खारिज किया कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र प्राधिकार द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों को यूएपीए की धारा 45 के तहत स्वतंत्र समीक्षा की आवश्यकता है और यह कानूनी अनिवार्यता अदालत को स्वतंत्र रूप से इस पर विचार करने की आवश्यकता से मुक्त नहीं करती है।

अदालत ने कहा कि इस मामले में अभी अभियोग निर्धारित होने हैं और इसमें करीब 740 गवाह हैं जिनसे मुकदमे की सुनवाई के दौरान पूछताछ करनी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस प्रक्रिया में लंबा समय लगेगा क्योंकि अभी तक एक भी गवाह से पूछताछ नहीं हुयी है। अदालत ने कहा कि महामारी के दौर और अदालतों के संख्या में काम करने की वजह से इसमें और विलंब होगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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