कोरोना की जांच मुफ्त: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निजी लैब चिंता में, मालिकों ने कहा- महंगी जांच फ्री में करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 11, 2020 07:34 AM2020-04-11T07:34:26+5:302020-04-11T07:34:26+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए कहा था कि मान्यता प्राप्त सरकारी लैब या प्राइवेट लैब में कोरोना की जांच मुफ्त होनी चाहिए। कोर्ट के इस आदेश के बाद केंद्र सरकार इस विषय में जरुरी दिशा-निद्रेश जारी करेगी।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना वायरस की जांच मुफ्त में करने का निर्देश दिये जाने के बाद कई प्रयोगशालाओं ने उम्मीद जताई है कि सरकार 'तौर-तरीके बताएगी' जिससे वे देश में बढ़ती मांग के बीच जांच का काम जारी रख सकें. कुछ निजी प्रयोगशालाओं के मालिकों ने यह भी कहा है कि उनके पास मुफ्त में यह महंगी जांच करने के लिये 'साधन नहीं' हैं. डॉ. डैंग्स लैब के सीईओ डॉक्टर अर्जुन डैंग ने कहा, ''हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हैं जिसका उद्देश्य कोविड-19 जांच की पहुंच बढ़ाने और इसे आम आदमी के लिए वहनीय बनाना है.''उन्होंने दलील दी हालांकि निजी प्रयोगशालाओं के लिए कई चीजों की लागत तय है जिनमें अभिकर्मकों (रीएजेंट्स), उपभोग की वस्तुओं, कुशल कामगारों और उपकरणों के रखरखाव शामिल है.
सरकारी दर 4500 रु. में बमुश्किल लागत निकाल पाती है: डॉ. डैंग
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस की जांच में भी संक्रमण नियंत्रण के कई उपाय करने पड़ते हैं, जैसे व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, संक्रामक परिवहन तंत्र और साफ-सफाई की जरूरत. साथ ही हर वक्त कर्मचारियों की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं. सरकारी दर 4500 रु. में बमुश्किल लागत निकाल पाती है. डॉ. डैंग ने कहा, ''सरकार द्वारा तय 4500 रुपए की दर में निजी प्रयोगशालाएं बमुश्किल लागत निकाल पाती हैं. इसे ध्यान में रखते हुए हमें उम्मीद है कि सरकार कुछ तौर-तरीके लेकर आएगी जिससे निजी प्रयोगशालाओं में जांच का काम चलता रहे.''
डैंग ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले का पालन करते हुए हम अभी जांच मुफ्त कर रहे हैं और इस बारे में सरकार की तरफ से चीजों को और स्पष्ट किए जाने का इंतजार है. सरकार लागत का भुगतान करे, हम बिना लाभ के काम करेंगे. डॉ. वेलुमनी डैंग की बातों से सहमति व्यक्त करते हुए थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ. ए. वेलुमनी ने कहा, ''निजी प्रयोगशालाओं के पास यह महंगी जांच मुफ्त करने का साधन नहीं है.''
उन्होंने कहा, ''यह सरकार का कर्तव्य है कि वह लागत का भुगतान करे, हम बिना लाभ के काम करेंगे.'' वेलुमनी ने कहा कि अदालत ने अपने आदेश में संकेत दिया था, ''सरकार को कोई रास्ता तलाशना चाहिए और हम निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं.''
बायोकॉन लिमिटेड की अध्यक्ष किरण मजूमदार ने कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना 'अव्यावहारिक' है
उन्होंने कहा, ''सरकार अगर मदद नहीं करती है तो यह कोविड-19 से निपटने की दिशा में बड़ा झटका होगा.'' गरीबों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में निजी प्रयोगशालाओं को निर्देश दिया था कि उन्हें मुफ्त में कोरोना वायरस की जांच करनी चाहिए और मुश्किल की इस घड़ी में परोपकारी रुख अपनाना चाहिए.सरकार ने कोरोना वायरस की जांच और पुष्टि परीक्षण के लिए 4500 रुपए कीमत तय की थी.
अदालत ने केंद्र की इस दलील को भी ध्यान में रखा था कि सरकारी प्रयोगशालाओं में यह जांच मुफ्त की जा रही है. फैसले के एक दिन बाद बायोकॉन लिमिटेड की अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ ने गुरुवार को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना 'अव्यावहारिक' है और चिंता व्यक्त की थी कि इससे जांच बंद हो जाएगी, क्योंकि निजी प्रयोगशालाएं उधार पर अपना कारोबार नहीं कर सकतीं. मजूमदार-शॉ ने हालांकि अपने बाद के ट्वीट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर विरोधाभासी रुख व्यक्त किया था. उन्होंने ट्वीट किया, ''उद्देश्य मानवीय लेकिन लागू करने में अव्यावहारिक-मुझे डर है कि जांच कम हो जाएगी.''