विचारधारा पर गर्व स्वाभाविक लेकिन वह राष्ट्रहित में होनी चाहिए ना कि राष्ट्र के खिलाफ: मोदी
By भाषा | Updated: November 12, 2020 20:25 IST2020-11-12T20:25:31+5:302020-11-12T20:25:31+5:30

विचारधारा पर गर्व स्वाभाविक लेकिन वह राष्ट्रहित में होनी चाहिए ना कि राष्ट्र के खिलाफ: मोदी
नयी दिल्ली, 12 नवंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि अपनी विचारधारा को राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता दिए जाने से देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि विचारधारा पर गर्व स्वाभाविक है लेकिन वह राष्ट्रहित में होनी चाहिए ना कि राष्ट्र के खिलाफ।
प्रधानमंत्री राजधानी दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के परिसर में स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा का अनावरण करने के बाद छात्रों को संबोधित कर रहे थे।
वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से आयोजित इस अनावरण समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी उपस्थित थे।
मोदी ने कहा, ‘‘किसी एक बात, जिसने हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है- वो है राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता अपनी विचारधारा को देना। क्योंकि मेरी विचारधारा ये कहती है, इसलिए देशहित के मामलों में भी मैं इसी सांचे में सोचूंगा, इसी दायरे में काम करूंगा, ये गलत है।’’
उन्होंने कहा कि आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है और ये स्वाभाविक भी है लेकिन फिर भी, ‘‘हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में, राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ नहीं’’।
प्रधानमंत्री ने आजादी के आंदोलन और आपातकाल के खिलाफ संघर्ष का उदाहरण देते हुए कहा कि जब-जब देश के सामने कोई कठिन समय आया है, हर विचार और हर विचारधारा के लोग राष्ट्रहित में एक साथ आए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के नेतृत्व में हर विचारधारा के लोग एक साथ आए थे। उन्होंने देश के लिए एक साथ संघर्ष किया था। आपातकाल के दौरान भी देश ने यही एकजुटता देखी थी। आपातकाल के खिलाफ उस आंदोलन में कांग्रेस के पूर्व नेता और कार्यकर्ता भी थे। आरएसएस के स्वयंसेवक और जनसंघ के लोग भी थे। समाजवादी लोग भी थे। कम्यूनिस्ट भी थे।’’
उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में भी किसी को अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करना पड़ा था क्योंकि सभी का उद्देश्य राष्ट्रहित था।
मोदी ने कहा, ‘‘जब राष्ट्र की एकता अखंडता और राष्ट्रहित का प्रश्न हो तो अपनी विचारधारा के बोझ तले दबकर फैसला लेने से, देश का नुकसान ही होता है।’’
छात्रों से स्वस्थ संवाद की परम्परा को जीवित रखने का आग्रह करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जेएनयू में देश के अलग-अलग हिस्सों से छात्र आते हैं और अलग-अलग विचारों से आते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘नए विचारों के प्रवाह को अविरल बनाए रखना है। हमारा देश वो भूमि है जहां अलग-अलग बौद्धिक विचारों के बीज अंकुरित होते रहे हैं और फलते फूलते भी हैं। इस परंपरा को मजबूत करना युवाओं के लिए आवश्यक है।’’
उन्होंने विश्वास जताया कि जेएनयू परिसर में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र जागरण के प्रति यहां आने वाले युवाओं को प्रेरित करेगी।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।