राष्ट्रपति ने किए रामलला के दर्शन, बोले- राम के बिना अयोध्या की कल्पना भी असंभव
By भाषा | Published: August 29, 2021 08:47 PM2021-08-29T20:47:39+5:302021-08-29T20:47:39+5:30
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को यहां श्री राम जन्म भूमि परिसर में रामलला के दर्शन किए और कहा कि भगवान राम के बिना अयोध्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राम नगरी पहुंचे राष्ट्रपति ने निर्माणाधीन राम मंदिर का दौरा कर वहां रामलला के दर्शन करने से पहले रामायण कॉन्क्लेव का उद्घाटन किया और कहा, ‘‘राम के बिना अयोध्या, अयोध्या नहीं है। अयोध्या तो वहीं है जहां राम हैं। अयोध्या भूमि राम की लीला भूमि और जन्मभूमि तो है ही, राम के बिना अयोध्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।'' कोविंद ने विश्वास व्यक्त किया कि अयोध्या नगरी भविष्य में मानव सेवा का उत्कृष्ट केंद्र बनेगी और सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करने के साथ ही शिक्षा एवं शोध का प्रमुख वैश्विक केंद्र भी बनेगी। उन्होंने कहा, ''रामायण संगोष्ठी की सार्थकता सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि राम कथा के आदर्शों को सभी लोग अपने आचरण में ढालें। सभी मानव एक ईश्वर की संतान हैं, यह भावना सभी में निहित हो, यही इस आयोजन का उद्देश्य है।'' इस अवसर पर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रेल राज्य मंत्री दर्शन विक्रम तथा प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा भी मौजूद थे। कोविंद ने अपने परिवार के साथ श्री राम जन्म भूमि परिसर में रामलला के दर्शन भी किए। इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद पुजारियों से संक्षिप्त बातचीत की और एक पौधा लगाया। इस दौरान उन्हें शाल तथा राम मंदिर की एक छोटी प्रतिकृति भी भेंट की गई। इस बीच, रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, "राष्ट्रपति का सपरिवार दर्शन-पूजन कार्यक्रम बहुत अच्छा रहा। उन्होंने प्रभु श्री राम के दर्शन किए, पुष्प अर्पित किए और आरती भी की। राष्ट्रपति करीब पांच मिनट तक मंदिर में रहे। वह देश के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने रामलला की झलक देखी है।" वर्ष 2019 में मंदिर निर्माण के उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद पहली बार अयोध्या पहुंचे राष्ट्रपति ने हनुमान गढ़ी मंदिर में भी पूजा-अर्चना की। इस दौरान राष्ट्रपति को गुलाबी रंग की पगड़ी भेंट की गई। इसके पूर्व, राष्ट्रपति विशेष रेलगाड़ी के जरिए लखनऊ से अयोध्या पहुंचे। राष्ट्रपति ने रामायण कॉन्क्लेव के दौरान संबोधन में अपने नाम का जिक्र करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि जब मेरे परिवार में मेरे माता-पिता और बुजुर्गों ने मेरा नामकरण (रामनाथ) किया होगा तो उन सबमें भी संभवतः राम कथा और राम के प्रति वही श्रद्धा और अनुराग का भाव रहा होगा जो सामान्य लोक मानस में देखा जाता है।'' राष्ट्रपति ने कहा, "अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है-जिसके साथ युद्ध करना असंभव है। रघुवंशी राजाओं रघु, दिलीप, अज, दशरथ और राम जैसे रघुवंशी राजाओं के पराक्रम और शक्ति के कारण उनकी राजधानी को अपराजेय माना जाता था। इसलिए इस नगरी का 'अयोध्या' नाम सर्वथा सार्थक रहेगा।'' उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि रामायण एक विलक्षण ग्रंथ है जो राम कथा के माध्यम से मर्यादाओं और आदर्शों को प्रस्तुत करता है। मुझे विश्वास है कि रामायण के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का संबंधित प्रयास भारतीय संस्कृति तथा पूरी मानवता के हित में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।’’ कोविंद ने कहा, ''रामायण में दर्शन के साथ-साथ आदर्श आचार संहिता भी उपलब्ध है जो जीवन के प्रत्येक पक्ष में हमारा मार्गदर्शन करती है। संतान का माता-पिता के साथ, भाई का भाई के साथ, पति का पत्नी के साथ, गुरु का शिष्य के साथ, मित्र का मित्र के साथ और शासक का जनता के साथ तथा मानव का पशु और पक्षियों के साथ कैसा संबंध होना चाहिए, इन सभी पर रामायण में उपलब्ध आचार संहिता हमें सही मार्ग पर ले जाती है।'' उन्होंने कहा कि रामायण का प्रचार-प्रचार इसलिए आवश्यक है कि उसमें निहित मूल्य मानवता के लिए सदैव बने रहेंगे और रामायण में आप ईश्वर के मानवीकरण या मानव के ईश्वरीकरण की गाथा देख सकते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि श्रीराम चरित मानस में एक आदर्श व्यक्ति और एक आदर्श समाज दोनों का सामूहिक वर्णन मिलता है। राम चरित मानस की पंक्तियां लोगों में आशा जगाती हैं, प्रेरणा का संचार करती हैं और ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं, आलस्य का त्याग करने की प्रेरणा अनेक चौपाइयों में मिलती हैं। आदिवासियों के प्रति भगवान राम के प्रेम पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अपने वनवास के दिनों में भगवान राम ने युद्ध लड़ने के लिए अयोध्या और मिथिला की सेनाओं को नहीं बुलाया, बल्कि कोल, भील, वानरों को इकट्ठा किया और अपनी सेना बनाई तथा उन्होंने अपने अभियान में जटायु (गिद्ध) से लेकर गिलहरी तक को शामिल किया। कोविंद ने कहा कि भगवान राम ने आदिवासियों के साथ प्यार और मैत्री को प्रगाढ़ बनाया। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक जीवन में राम के आदर्शों को महात्मा गांधी ने भी आत्मसात किया था और रामायण में वर्णित भगवान राम का मर्यादा पुरुषोत्तम का स्वरूप हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है। कोविंद ने कहा कि गांधी ने आदर्श भारत की अपनी कल्पना को राम राज्य का नाम दिया और बापू की दिनचर्या में राम नाम का बहुत महत्व था। राष्ट्रपति ने कहा, "हमें हर किसी में राम और सीता को देखने की कोशिश करनी चाहिए। राम सभी के हैं और राम सभी में हैं। इस स्नेहपूर्ण विचार के साथ अपने दायित्व का पालन करें। राम कथा ताली की ध्वनि है, जो संशय को दूर कर देती है।’’ कोविंद ने कहा कि जब तक पर्वत और नदियां विद्यमान रहेंगे तब तक राम कथा लोकप्रिय बनी रहेगी और राम कथा के साहित्यिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव को बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि राम और रामायण के प्रति प्रेम एवं सम्मान न केवल भारत में, बल्कि दुनिया की विभिन्न लोक भाषाओं और लोक संस्कृतियों में भी देखा जा सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व के अनेक देशों में राम कथा की प्रस्तुति रामलीला के आयोजन द्वारा की जाती है और इंडोनेशिया के बाली की रामलीला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मालदीव, मॉरीशस, त्रिनिदाद, टोबैगो, नेपाल और कंबोडिया व सूरीनाम समेत अनेक देशों में प्रवासी भारतीयों ने राम कथा को जीवंत बनाया है तथा इसके अलावा राम कथा पर चित्रकारी व अन्य कलाकृतियां भी विश्व के अनेक भागों में देखने को मिलती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मौके पर कहा कि भगवान राम सभी के हैं। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा "तथ्य यह है कि भगवान राम सभी के हैं। वह एक व्यापक आस्था का प्रतीक हैं।" योगी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की तरफ संकेत करते हुए कहा "आपके नाम के आगे भी राम ही जुड़ा हुआ है। मैं समझता हूं कि अगर किसी के नाम के आगे सबसे ज्यादा कोई नाम जुड़ा है तो वह भगवान राम का ही है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान राम हमारी आस्था हम सभी की आस्था और सांसों में बसे हैं।" उन्होंने कहा कि भगवान राम के प्रति इसी अगाध आस्था के कारण अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
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