नयी दिल्ली, आठ अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम या जांच एजेंसी की नियमावली के तहत सीबीआई द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है और आरोपी इस पर अपने अधिकार के रूप में जोर नहीं दे सकता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई नियमावली के तहत शिकायत या ‘‘स्रोत सूचना’’ के माध्यम से ऐसी सूचना मिलने पर जिसमें संज्ञेय अपराध होने का खुलासा किया गया हो तो केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) प्रारंभिक जांच करने की जगह सीधे प्राथमिकी दर्ज कर सकता है।
न्यायालय ने 64 पृष्ठ के अपने निर्णय में कहा कि यदि सीबीआई प्रारंभिक जांच न करना चाहे तो आरोपी अधिकार के मामले के रूप में इसकी मांग नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के 11 फरवरी 2020 के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें 1992 बैच की आईआरएस अधिकारी विजयलक्ष्मी और उनके पति औदिमुलापु सुरेश (जो वर्तमान में आंध्र प्रदेश के शिक्षा मंत्री हैं) के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी को निरस्त कर दिया गया था।
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