आरक्षण पर बोले अधीर रंजन चौधरी, 'सरकार राष्ट्रवाद की बात करती है', मोदी के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने दिया ये जवाब
By पल्लवी कुमारी | Published: February 10, 2020 01:04 PM2020-02-10T13:04:38+5:302020-02-10T13:04:38+5:30
नौ फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मूल अधिकार नहीं है।
संसद के बजट सत्र के दौरान लोकसभ में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हंगामा जारी है। लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया। जिसपर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि हम इसका जवाब दोपरह दो बजे के बाद देंगे। जिसपर हंगामा हो गया। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार राष्ट्रवाद की बात करती है, मतलब मनुवाद की बात करती है। अधीर के इस बयान पर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, मोदी सरकार ने कुछ नहीं किया, ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला है।
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, आरक्षण पर ये फैसला सुप्रीम कोर्ट का है। भारती की सरकार ने इसपर कुछ नहीं किया है। इस पर समाज कल्याण मंत्री आज दोपहर 2:15 बजे अपना बयान देंगे
Parliamentary Affairs Minister Pralhad Joshi on SC judgement that reservations for jobs, promotions, is not a fundamental right: This is SC's decision. Govt of India has nothing to do with it. The Social Welfare Minister will make a statement at 2:15pm today pic.twitter.com/RysQfUVpfP
— ANI (@ANI) February 10, 2020
जानें नियुक्तियों में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया फैसला
नौ फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मूल अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, ‘‘इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे।’’ पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘न्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्देश देने के लिए कोई परमादेश नहीं जारी कर सकता है।’’
उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण उपलब्ध कराये बगैर सार्वजनिक सेवाओं में सभी पदों को भरे जाने का फैसला लिया गया था। सरकार के फैसले को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसने इसे खारिज कर दिया था।