राज्यपाल और उप-राज्यपाल के फैसलों पर क्यों मचता है बवाल? जानें इनकी शक्तियां और अधिकार
By आदित्य द्विवेदी | Published: June 28, 2018 08:10 AM2018-06-28T08:10:56+5:302018-06-28T08:10:56+5:30
राज्यपाल और उप-राज्यपाल प्रदेश में स्थायी सरकार और उसका कामकाज सुनिश्चित करते हैं।
नई दिल्ली, 28 मईः तमिलनाडु में विपक्ष राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित पर सवाल उठा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने कैबिनेट के साथ उप-राज्यपाल अनिल बैजल के आवास पर 9 दिन धरने पर रहे। पुडुचेरी में राज्यपाल किरण बेदी की सरकार में दखल की खबरें आती रहती हैं। कई प्रदेशों में राज्यपाल और उप-राज्यपाल की वजह से सरकारों में फाफाकूटन मचा हुआ है। क्या एक चुनी हुई सरकार में राज्यपाल की दखलंदाजी सही है? आइए, राज्यपाल और उप-राज्यपाल की शक्तियों पर एक नजर डालते हैं।
राज्यपाल के पास है कितनी शक्तियां?
- देश में राष्ट्रपति की जितनी शक्तियां होती हैं वही ओहदा प्रदेश में एक राज्यपाल का होता है।
- वो मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्य चुनाव आयुक्त और जिला न्यायालयों के जज नियुक्त कर सकते हैं।
- राज्यपाल सूबे के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति होते हैं।
- जरूरत पड़ने पर राज्यपाल सभी राज्य विधानसभाओं को भंग कर सकते हैं।
- चुनाव आयोग की सिफारिश पर किसी विधायक की सदस्यता भी खत्म कर सकते हैं।
- अगर प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी बहुमत खो देती है तो वहां राज्यपाल शासन करता है। जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती का बहुमत जाने के बाद राज्यपाल एन एन वोहरा शासन कर रहे हैं।
क्या उप-राज्यपाल के पास भी हैं इतनी शक्तियां?
उप-राज्यपाल के पास भी ये सभी शक्तियां होती हैं। भारत में सिर्फ तीन केंद्रशासित प्रदेशों में उप-राज्यपाल हैं- अंडमान और निकोबार, दिल्ली और पुडुचेरी। उप-राज्यपाल का काम राज्य सरकार और उसके काम-काज का सुचारू संचालन सुनिश्चित करना होता है।
लेकिन फिर ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य सरकारों से राज्यपाल और उप-राज्यपाल के विवाद क्यों होते हैं?
दरअसल, राज्यपाल के पास एक ऐसी शक्ति होती है जो उसे राष्ट्रपति से अलग बनाती है। राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर फैसले ले सकता है। उनके फैसले को चुनौती भी नहीं दी जा सकती। संविधान में राज्यपाल के विवेकाधीन शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल करके प्रदेश में किसी को भी मुख्यमंत्री बना सकता है। हाल ही में कर्नाटक में वजुभाई वाला ने कांग्रेस-जेडीएस के पास बहुमत होने के बावजूद बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता दे दिया। वहीं, गोवा और मणिपुर में राज्यपाल ने अपने विवेकाधिकार से गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया था। राज्यपाल प्रदेश में संवैधानिक संकट की सूचना राष्ट्रपति को देता है। राज्यपाल किसी विधानसभा में पास विधेयक को वापस लौटाने या हस्ताक्षर करने से इनकार करने का अधिकार रखता है।
क्या दिल्ली के उप-राज्यपाल के पास हैं अधिक शक्तियां?
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2017 में कहा कि दिल्ली के उप-राज्यपाल के पास किसी भी राज्य के गवर्नर से ज्यादा शक्तियां हैं। वो मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य नहीं हैं। दरअसल, दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां पुलिस, कानून व्यवस्था और जमीन केंद्र सरकार के अधीन आती है जिसके मुखिया उप-राज्यपाल होते हैं। जाहिर है उनके पास सरकार से ज्यादा शक्तियां होती हैं।
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