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सियासी दलों को अब रोजगार, भ्रष्टाचार, बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे केंद्र में रखने होंगे : दिवाकर

By भाषा | Updated: November 15, 2020 11:12 IST

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पटना, 15 नवंबर कोरोना वायरस संक्रमण के बीच बिहार विधानसभा चुनाव में बेहद कड़े मुकाबले में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बहुमत का आंकड़ हासिल करने में सफल रहा और विपक्षी महागठबंध सत्ता से मामूली अंतर से दूर रह गया । चुनाव परिणाम को लेकर पटना के ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस के प्रोफ़सर डीएम दिवाकर का कहना है कि वामदलों एवं राजद के उठाये मुद्दे पर जनता की प्रतिक्रिया और बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम ने यह संदेश दिया है कि अब राजनीतिक दलों को रोजगार, भ्रष्टाचार, आम लोगों के जीवन से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं को केंद्र में रखना पड़ेगा।

पेश है प्रोफेसर डी एम दिवाकर से ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब :-

सवाल : हाल ही में सम्पन्न बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को आप कैसे देखते हैं ?

जवाब : चुनाव में जनता के बीच एक बात साफ दिखी कि राजनीतिक दल अपने अपने ढंग से जिन मुद्दों को लेकर गए उनमें से बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, श्रमिकों से जुड़ा विषय प्रभावी नहीं रह पाया । राजद ने 10 लाख नौकरी देने की बात की और इसके बाद भाजपा ने 19 लाख रोजगार देने की वादा किया लेकिन चुनाव प्रचार आगे बढ़ने के साथ युवाओं में यह मुद्दा टिक नहीं पाया अन्यथा युवाओं का वोट बंटता नहीं । दूसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस चुनाव में कुछ अपवादों को छोड़कर जाति का घेरा नहीं टूट पाया । जाति के आधार पर वोट का ध्रुवीकरण देखने को मिला ।

सवाल : इस चुनाव में जदयू के मुकाबले भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा जबकि जदयू के सहयोग से ही भाजपा का आधार बढ़ा है । इसे आप कैसे देखते हैं ?

जवाब : जिन मान्यताओं के आधार पर भाजपा चलती है, वह जदयू से भिन्न हैं। भाजपा की विचारधारा हिन्दुत्व पर आधारित है जबकि जदयू की मान्यता समाजवादी प्रकृति की है। चुनाव में सीमांचल क्षेत्र को ही देखें तब भाजपा का अलग मुद्दा था और जदयू का अलग विचार था। भाजपा नेता नित्यानंद राय और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आतंकवाद और एनआरसी को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां की और बाद में नीतीश कुमार सहित जदयू ने अलग राय जाहिर की। इससे भाजपा कई क्षेत्रों में ध्रुवीकरण करने में सफल रही लेकिन जदयू को इसका नुकसान उठाना पड़ा जो पहले से ही सरकार विरोधी कारकों का सामना कर रही थी। चुनाव में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के कारण भी जदयू को नुकसान उठाना पड़ा है क्योंकि चिराग का कोर वोटर वही है जो राजग का भी मतदाता है ।

सवाल : तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद और महागठबंधन की चुनौती बिहार की आगे की राजनीति के लिये क्या संदेश देते हैं ?

जवाब : कल तक तेजस्वी यादव जो कुछ करते थे, वह उनके पिता लालू प्रसाद के खाते में चला जाता था लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के प्रदर्शन के बाद तेजस्वी राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में तेजस्वी को लेकर ‘जंगलराज का युवराज’ विशेषण का उपयोग किया था। अनेक केंद्रीय मंत्रियों ने भी प्रचार के दौरान अपने निशाने के केंद्र में तेजस्वी को ही रखा। वहीं, नीतीश कुमार कोई हल्की समझ वाले नेता नहीं हैं। वो जो शब्द बोलते हैं बेहद सोच-समझकर बोलते हैं लेकिन इस चुनाव में उन्होंने ऐसा बहुत कुछ बोला है जिस पर यक़ीन नहीं किया जा सकता कि ये सब नीतीश कुमार ने कहा है।

सवाल : चुनाव में एमआईएमआईएम, वामदलों सहित कुछ छोटे दल भी प्रभाव छोड़ने में सफल रहे। आने वाले समय में बिहार एवं अन्य स्थानों पर इनकी भूमिका को आप कैसे देखते है ?

जवाब : नोटबंदी, जीएसटी के कारण निचला तबका एवं मध्यम वर्ग प्रभावित हुए, लोगों को रोजगार का नुकसान हुआ ...ऐसे में वामदल सड़कों पर उतरे और ऐसे लोगों के मुद्दे को उठाया जो उनके समर्थक माने जाते रहे हैं । इसका स्पष्ट लाभ वामदलों को देखने को मिला। सीमांचल क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी एआईएमआईएम को राजद और कांग्रेस के विकल्प के रूप में पेश करने के लिये काफी मेहनत की। एक वर्ष पहले उपचुनाव में एआईएमआईएम को एक सीट मिली और इस चुनाव में पार्टी को पांच सीट हासिल हुई। इस चुनाव में सीमांचल में एनआरसी और सीएए का मुद्दा हावी हो गया।

सवाल : बिहार चुनाव परिणाम का आने वाले दिनों में कुछ राज्य में होने वाले चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

जवाब : बिहार चुनाव का सबसे बड़ा प्रभाव यह पड़ेगा कि अब राजनीतिक दलों को रोजगार, भ्रष्टाचार, आम लोगों के जीवन से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं को केंद्र में रखना पड़ेगा ।

आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जहां ममता बनर्जी का अपना जनाधार है, माकपा भी कैडर आधारित पार्टी है। इसके बीच लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा और उसका जमीनी कार्यकर्ता काफी सक्रिय है । अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह परिणाम को यह चुनाव काफी प्रभावित करेगा लेकिन इसके प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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