अरुणाचल के लोग अब चकमा और हजोंग शरणार्थियों को स्वीकार नहीं करेंगे : आपसू
By भाषा | Published: August 25, 2021 10:00 PM2021-08-25T22:00:49+5:302021-08-25T22:00:49+5:30
द ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टुडेंट्स यूनियन (आपसू) ने बुधवार को कहा कि राज्य के लोग अब चकमा और हजोंग शरणार्थियों को स्वीकार नहीं करेंगे, जो 1960 के दशक में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए थे। आपसू ने कहा कि अब उन्हें एक इंच जमीन नहीं दी जाएगी। चकमा संगठन ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था जिसमें उन्हें अरुणाचल प्रदेश से दूसरे राज्यों में बसाने की बात की गई थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आपसू नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार राज्य के मूल निवासियों के अधिकारों के खिलाफ फैसला नहीं कर सकती है।राज्य विधानसभा में सरकार द्वारा पिछले साल दी गई जानकारी में कहा गया कि वर्ष 2015-16 में किए गए विशेष सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में चकमा और हजोंग समुदाय के लोगों की संख्या 65,875 है। दोनों जनजातियों के लोग मुख्य रूप से चांगलांग, नामसई और पापुम पारे जिले में रह रहे हैं। आपसू के महासचिव तबोम दाई ने कहा, ‘‘यूनियन चकमा और हजोंग को बसाने के खिलाफ है क्योंकि इससे इन जिलों में खतरनाक तरीके से जनसंख्यिकी बदलाव होगा।’’ उन्होंने दावा किया कि इन दोनों जनजातियों का मूल जनजातियों के प्रति आक्रामक रवैया है। उन्होंने कहा, ‘‘शरणार्थी दशकों पुरानी समस्या का सर्वमान्य समाधान चाहते थे। अब कह रहे हैं कि वे अरुणाचल प्रदेश से नहीं जाएंगे जिसे लोग कभी स्वीकार नहीं करेंगे।’’ आपसू ने दावा किया कि चकमा और हजोंग समुदाय के दिल्ली में रह नेताओं को अरुणाचल प्रदेश की जमीनी हालात की जानकारी नहीं है। साथ ही कहा कि उन्हें शरणार्थियों का समर्थन करने से बचना चाहिए।
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