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कोविड-19 को लेकर प्रयासों का सकारात्मक नतीजा ना पाकर अब थकने लगे हैं लोगः विशेषज्ञ

By भाषा | Updated: November 12, 2020 21:25 IST

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नयी दिल्ली, 12 नवंबर कोविड-19 के खतरे को लेकर लोगों में उदासीनता के संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि जिंदगी पटरी से उतरने की चिंता, बेचैनी और संक्रमित होने का डर महीनों से जारी है और ऐसे में अब लोग 'थकने' लगे हैं, सावधानियां को लेकर लापरवाही बरतने लगे हैं।

चेन्नई के आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी (एनआईई) की उप-निदेशक प्रदीप कौर ने कहा, ‘‘हां, लोग जरूर थकने लगे हैं लेकिन अफसोस की बात है कि वायरस नहीं (थक रहा है)।’’

उन्होंने चेताया कि भारत में हालांकि कोविड-19 के उपचाराधीन मामलों में कमी आ रही है और साथ ही संक्रमण के नए मामलों की दर भी कम हो रही है, लेकिन अभी भी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील है। अगर लोग मास्क लगाना, दो गज की दूरी बनाए रखना और मेल-जोल से दूर नहीं रहे तो संक्रमण के फिर से बढ़ने का खतरा है।

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बृहस्पतिवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, देश में कोविड-19 के 47,905 नए मामले सामने आए जिससे कुल संक्रमितों की संख्या बढ़करर 86,83,916 हो गई। इनमें से अब तक कुल 80,66,501 लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं। लेकिन, दिल्ली में संक्रमण के नए मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है और बुधवार को शहर में रिकॉर्ड 8,593 नए मामले सामने आए।

महामारी विशेषज्ञ ने बताया, ‘‘वायरस अभी रहेगा और हमें अपनी जीवन शैली में लंबे समय के लिए कुछ बदलाव करने होंगे। अगर हम मौजूदा स्थिति से संतुष्ट हो गए तो वायरस संक्रमण फैलता रहेगा और हमें शायद मामलों में वृद्धि देखने को भी मिले।’’

जब मार्च में पहली बार राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा हुई थी तो लोगों में ऊर्जा और कोविड-19 को हराने के लिए सक्रियता से काम करने का उत्साह था। लेकिन, महीनों गुजरने के बाद भी संक्रमण के खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं, ऐसे में बेचैनी और डर से लोगों का उत्साह कम होने लगा है।

उत्साह कम होने के बाद लोग दो गज की दूरी के दिशा-निर्देश को लेकर लापरवाह होते जा रहे हैं और ऐसा करके वह ना सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचाने का खतरा उठा रहे हैं। ऐसे में जबकि दिवाली सिर्फ दो दिन बाद है और स्पष्ट दिख रहा है कि पूरे देश में लोग बड़ी संख्या में एक-दूसरे से मिल रहे हैं, भीड़ बढ़ रही है और लोग सामाजिक तथा धार्मिक कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं।

मनावैज्ञानिक श्वेता शर्मा ने बताया कि महामारी के दौरान लोगों में डर और बेचैनी अपने चरम पर है और यही वजह है कि उनके व्यवहार में खतरे को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति आ गयी है।

गुड़गांव के कोलंबिया एशिया अस्पताल में क्लिनिकल साइकोलॉजी की कंसलटेंट शर्मा का कहना है कि समय के साथ-साथ लोगों में आलस होना प्राकृतिक है क्योंकि उन्हें लगा रहा है कि तमाम प्रयासों के बावजूद कोई सकारात्मक परिणाम नहीं है।

उन्होंने कहा कि लोगों को यकीन नहीं है कि उनके प्रयासों से कोई लाभ हो रहा है या नहीं। ऐसे में लोगों में लापरवाही बढ़ गई है और अब उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं रह गई है कि उनके प्रयासों से फर्क पड़ रहा है या नहीं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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