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Coronavirus Lockdown: जनता को सता रही चिंता, जब आटा चक्की चालू नहीं तो 'मुफ्त गेहूं' कैसे पिसेगा ?

By भाषा | Updated: March 31, 2020 18:44 IST

सोमवार को देश में कोरोना बीमारी से पीड़ित मरीजों की पुष्टि के मामले 1,071 तक बढ़ गये हैं। राष्ट्रीय राजधानी के सराय काले खां इलाके में उचित मूल्य की दुकान से राशन की आपूर्ति मिलने के बाद फैक्ट्री के एक कर्मचारी मुस्तफा ने बताया...

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सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के कई गरीब लाभार्थी, जो कोविद-19 की रोकथाम के उपायों और पाबंदियों के बीच सहायता पैकेज के तहत मुफ्त और रियायती राशन की आपूर्ति गेंहू तो गेहूं दिया गया है लेकिन यह अनाज ऐसे समय मिला है जबकि आटा मिलें बंद हैं। 

देश के अधिकांश हिस्सों में, स्थानीय आटा मिलों एवं चक्कियों को बंद कर दिया गया है। कुछ तो पुलिस द्वारा कार्रवाई के डर से काम नहीं खुल रही हैं। पुलिस इस संक्रामक बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन नियमों को सख्ती से लागू करा रही है। 

सोमवार को देश में कोरोना बीमारी से पीड़ित मरीजों की पुष्टि के मामले 1,071 तक बढ़ गये हैं। राष्ट्रीय राजधानी के सराय काले खां इलाके में उचित मूल्य की दुकान से राशन की आपूर्ति मिलने के बाद फैक्ट्री के एक कर्मचारी मुस्तफा (25) ने बताया, ‘‘मैं गेहूं लेकर क्या करूं? आस-पास की चक्कियां (आटा मिलें) बंद हैं। मैं गेहूं से आटा कैसे पिसाऊं? जब हम गेहूं खा नहीं सकते तो गेहूं खरीदने का क्या मतलब है?’’ 

मुस्तफा को सोमवार को प्रति व्यक्ति 6 ​​किलोग्राम गेहूं और 1.5 किलोग्राम चावल मुफ्त में मिले और डिपो में स्टॉक के अभाव में उन्हें अपने खाद्यान्न का मासिक कोटा रियायती दर पर नहीं मिला। पीडीएस के तहत, सरकार गेहूं के लिए 2 रुपये और चावल के लिए 3 रुपये की रियायती दर पर मासिक 5 किलोग्राम खाद्यान्न दे रही है। 

लॉकडाउन के दौरान गरीबों को पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने के लिए, सरकार ने पिछले सप्ताह प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीवाईवाई) के तहत अगले तीन महीनों के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल या गेहूं और प्रति व्यक्ति 1 किलो दाल वितरित करने का फैसला किया गया है। 

मुस्तफा की तरह, कई राशन कार्ड धारकों को- जिनमें से कुछ पास के कारखानों में काम करते हैं, कुछ नौकरों का काम करते हैं, या सुरक्षा गार्ड हैं या रिक्शा चालक हैं, 24 मार्च को रोक थाम की घोषणा से पहले राशन की दुकान से गेहूं मिला था। उत्तर भारत के गेहूं की खपत करने वाले राज्यों में यह स्थिति थी, भले ही केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अनुमति दी हो कि वे अपने खर्च पर चाहें तो गेहूं के आटे ’की आपूर्ति कर सकते हैं। 

खाद्य सचिव रविकांत ने कहा, ‘‘पीडीएस के तहत, हम मूल रूप से गेहूं वितरित करते हैं। लॉजिस्टिक के स्तर पर भारत सरकार द्वारा स्थानीय स्तर पर हस्तक्षेप करना संभव नहीं है। हालांकि, इस मामले पर गौर करने के लिए राज्य सरकारों को आवश्यक सलाह जारी की जाएगी।’’ 

पंजाब, राजस्थान और हरियाणा को छोड़कर, अधिकांश राज्य पीडीएस के माध्यम से चावल और गेहूं दोनों ही अनाज को वितरित करते हैं। हालांकि, पीएमजीकेवाई के तहत, ज्यादातर चावल मुफ्त में वितरित किया जाएगा। कांत ने कहा, ‘‘अचानक ही गेहूं को आटे (गेहूं के आटे) में बदलना और पीडीएस के माध्यम से वितरित करना जरा मुश्किल है। अगर ऐसा किया जा सकता है और इसका प्रबंधन हो सकता है, तो यह राज्य स्तर पर किया जायेगा।’’ 

हालांकि, तेलंगाना जैसे राज्यों ने कुछ ऐसे राशन कार्ड धारकों को चावल और कुछ नकदी के साथ गेहूं के आटे वितरित करने का रास्ता अपनाया हैं, जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हो गए हैं। उत्तर प्रदेश रोलर आटा मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार वैश्य ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार दो रुपये प्रति किलो की सस्ती दर पर गेहूं वितरित कर रही है, जबकि इसे आटा बनाने और फिर उसकी पैकिंग करने की लागत 3 रुपये प्रति किलोग्राम बैठती है।’’ एसोसिएशन ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है कि वे पीडीएस उद्देश्य के लिए अपनी सेवा प्रदान करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, राज्य सरकार ने स्पष्ट केंद्रीय नीति के अभाव में राज्य के खजाने पर पड़ने वाले वित्तीय प्रभाव के कारण इस मामले में दिलचस्पी नहीं दिखाई है।’’ वैश्य ने कहा, ‘‘मौजूदा स्थिति में गेहूं के वितरण में समस्या है। गरीब लोग कैसे चक्कियों तक जाकर इसे पिसवा सकते हैं जब आटा मिलें बंद हों?’’ 

उन्होंने कहा कि एसोसिएशन इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता क्योंकि उसके सदस्य के रूप में बड़े आटा मिलर्स हैं और वे स्थानीय स्तर पर छोटी चाकियां नहीं चलाते हैं। अब एक ही रास्ता है कि प्रत्येक मोहल्ले में एक या दो स्थानीय चक्कियों को लॉकडाउन के दौरान काम करने की या राशन डिपो के पास कम से कम एक पोर्टेबल चक्की को गेहूं को आटा में बदलने के लिए स्थापित करने की अनुमति दिया जाये। यह ध्यान देने योग्य बात है कि पीडीएस के तहत 81 करोड़ से अधिक गरीब लोग पंजीकृत हैं, जो देश की दो-तिहाई आबादी है।

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