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सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए 30 से अधिक राज्य आईआईटी के मॉडल का उपयोग करेंगे

By भाषा | Updated: November 7, 2021 18:10 IST

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गुंजन शर्मा

नयी दिल्ली, सात नवंबर देश में 32 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास द्वारा विकसित ‘आंकड़े आधारित मॉडल’ का उपयोग करने के लिए अपनी सहमति जतायी है जो उन्हें उनकी सड़कों को सुरक्षित बनाने तथा ‘ट्रॉमा केयर’ में सुधार करने में मदद करेगा।

सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा भारत में नीति निर्माण और कार्यान्वयन में गुणवत्तापूर्ण आंकड़ों की कमी को एक प्रमुख बाधा बताएजाने के बीच इस मॉडल को आधिकारिक तौर पर विश्व बैंक के वित्त पोषण के साथ सड़क और परिवहन मंत्रालय द्वारा अपनाया गया है।

आईआईटी की टीम ने राज्य सरकारों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी और अंततः यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली मौत को शून्य करने के लक्ष्य तक पहुंचने की दिशा में एक रोडमैप विकसित करने में उनकी मदद की जा सके।

आईआईटी मद्रास के इंजीनियरिंग डिजाइन विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश बालासुब्रमण्यम के अनुसार, शुरू में परियोजना को प्रायोगिक आधार पर छह राज्यों में शुरू किया गया था, जहां सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु दर सबसे अधिक थी। उन्होंने बताया कि इन छह राज्यों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं।

बालासुब्रमण्यम ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हालांकि, भारत में 27 राज्य और पांच केंद्र शासित प्रदेश एकीकृत सड़क दुर्घटना डेटाबेस (आईआरएडी) को लागू करने के विभिन्न चरणों में हैं। कम से कम 11 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश ने पहले ही इसका उपयोग करके ‘लाइव’ डेटा संग्रह शुरू कर दिया है।’’

परियोजना के तहत, एक मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया गया है जो पुलिसकर्मियों को फोटो और वीडियो के साथ सड़क दुर्घटना के बारे में विवरण दर्ज करने में सक्षम बनाता है, जिसके बाद घटना के लिए एक विशिष्ट ‘आईडी’ का निर्माण होता है।

इसके बाद, लोक निर्माण विभाग या स्थानीय निकाय के इंजीनियर को उनके मोबाइल फोन पर एक अलर्ट प्राप्त होगा। वह दुर्घटना स्थल का दौरा कर उसकी जांच करेंगे और आवश्यक विवरण, जैसे कि सड़क का डिजाइन आदि उसमें अपलोड करेंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार एकत्र किए गए आंकड़ों का आईआईटी-मद्रास में एक टीम द्वारा विश्लेषण किया जाएगा जो सुझाव देगा कि क्या सड़क डिजाइन में सुधारात्मक उपाय किए जाने की आवश्यकता है। सड़क सुरक्षा सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, आंकड़ों के आधार पर एक अच्छी रणनीति विकसित करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए, समस्या के हल के लिए केवल मुद्दों की पहचान ही नहीं बल्कि स्थानीय परिस्थितियों में टिकाऊ परिवर्तनों को भी लागू करना होगा ।’’

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिसंबर 2020 में जारी वैश्विक स्वास्थ्य अनुमानों में ‘गुणवत्ता के मुद्दों’ के कारण सड़क यातायात से होने वाली मौतों पर भारत के आधिकारिक आंकड़ों को ‘अनुपयोगी’ या ‘अनुपलब्ध’ के रूप में वर्गीकृत किया है।

आईआईटी दिल्ली के एक हालिया अध्ययन में कहा गया था कि भारत में चोट के आंकड़े अविश्वसनीय हैं और इसमें निहित पूर्वाग्रह हैं जिनमें मामले दर्ज किए जाते हैं। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह भी बताया है कि सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों पर सरकारी आंकड़े पूरे नहीं हैं क्योंकि पुलिस विभागों की रिपोर्टिंग प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण है, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, जहां बहुत से मामलों की खबर नहीं हो पाती है और पुलिस में जनता का पर्याप्त विश्वास नहीं है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार, भारत का 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना तभी पूरा होगा जब देश भर में माल और लोगों की आवाजाही समय पर और सुरक्षित होंगी।

उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर देश में हर साल 1,55,000 लोगों की सड़क हादसों में मौत होती है।

सड़क और परिवहन मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि यह परियोजना देश के हर हिस्से से दुर्घटना संबंधी आंकड़ों को एकत्र करने में मदद करेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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