संसद में पेश हुए मोदी सरकार के 'आपराधिक पहचान विधेयक' को विपक्ष ने बताया 'असंवैधानिक'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 28, 2022 08:21 PM2022-03-28T20:21:35+5:302022-03-28T20:28:25+5:30

संसद में 'आपराधिक पहचान विधेयक' का विरोध करते हुए इसे "किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन" बताया है। केंद्र के प्रस्तावित कानून में दोषी, गिरफ्तार या हिरासत में लिये गये व्यक्ति के उंगलियों के निशान, हथेली के निशान, पैरों के निशान, फोटो, आईरिस, रेटिना स्कैन, जैविक नमूने, हस्ताक्षर, लिखावट सहित अन्य तरीकों उसकी पहचान को 75 साल तक सहेजने का प्रावधान है।

Opposition calls Modi government's Criminal Identification Bill introduced in Parliament "unconstitutional" | संसद में पेश हुए मोदी सरकार के 'आपराधिक पहचान विधेयक' को विपक्ष ने बताया 'असंवैधानिक'

संसद में पेश हुए मोदी सरकार के 'आपराधिक पहचान विधेयक' को विपक्ष ने बताया 'असंवैधानिक'

Highlightsकांग्रेस और तृणमूल सहित कई विपक्षी दलों ने लोकसभा में इस विधेयक का जमकर विरोध किया मनीष तिवारी ने कहा, विधेयक संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन हैकेरल के सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने कहा, यह विधेयक व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है

दिल्ली: केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों की कड़ी आपत्तियों के बीच सोमवार को संसद में उस विधेयक को पेश किया जिसमें आपराधिक मामलों में पहचान और जांच के उद्देश्य से रिकॉर्ड को बायोमेट्रिक डेटा के जरिये दोषियों और अन्य अपराधी व्यक्तियों की पहचान को सहजे कर रखे जाने का प्रावधान है।

इस विधेयक को लोकसभा में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने 'द क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) बिल, 2022' के नाम से पेश किया। यदि बिल संसद से पारित हो जाता है तो यह विधेयक 'कैदियों की पहचान अधिनियम' 1920 की जगह लेगा।

संसद में केंद्र ने प्रस्तावित कानून का बचाव करते हुए कहा, "1920 के अधिनियम में पहचान के लिए एक मजिस्ट्रेट के सामने दोषी और गैर-दोषी अपराधी व्यक्तियों की तस्वीरों, उंगलियों के निशान और पैरों के निशान लेने की अनुमति देता है। जबकि विकसित देशों में अपराधियों के पहचान के लिए उपयोग की जा रही बायोमेट्रिक डेटा तकनीक विश्वसनीय परिणाम दे रही हैं और दुनिया भर में उसे मान्यता प्राप्त हैं। 1920 का अधिनियम शरीर की पहचान के लिए बायोमेट्रिक डेटा लेने के लिए इजाजत नहीं देता है क्योंकि इस कई तकनीक का उस समय विकास ही नहीं हुआ था।"

वहीं कांग्रेस और तृणमूल सहित कई विपक्षी दलों ने लोकसभा में केंद्र सरकार के इस विधेयक का विरोध करते हुए इसे "किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन" बताया है।

संसद में विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मनीष तिवारी ने कहा, "बिल में 'बायोमेट्रिक नमूने और उनके विश्लेषण' जैसे शब्द नार्को विश्लेषण और ब्रेन मैपिंग की ओर इशारा कर रहे हैं और यह स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का उल्लंघन है।"

मनीष तिवारी ने विधेयक में डेटा कलेक्शन की तारीख से 75 साल तक बायोमेट्रिक नमूने को सहेज कर रखने की बात को उठाते हुए कहा, "यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में निहित भूल जाने के अधिकार का उल्लंघन है।"

मनीष तिवारी के अलावा केरल के सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने भी सरकार के इस विधेयक का मुखर विरोध किया। उन्होंने कहा, "अगर नागरिक अधिकारों की सुरक्षा या किसी अन्य तरह की मांग के लिए मुझे धरना देते समय गिरफ्तार किया गया है और अगर मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई तो क्या उस वक्त भी मेरा डीएनए सेंपल लिया जाएगा। आखिर यह विधेयक है क्या? यह विधेयक स्पष्ट तौर से किसी भी व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।"

केंद्र की ओर से प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि दोषी, गिरफ्तार या हिरासत में लिये गये व्यक्ति के उंगलियों के निशान, हथेली के निशान, पैरों के निशान, फोटो, आईरिस, रेटिना स्कैन, जैविक नमूने, हस्ताक्षर, लिखावट सहित अन्य तरीकों उसकी पहचना को केंद्र या राज्य सरकारें अपने रिकॉर्ड में सहेजकर 75 साल के लिए रख सकती हैं।

इसके अलावा यह विधेयक मजिस्ट्रेट को शक्ति प्रदान करता है कि वो किसी भी व्यक्ति को जांच के उद्देश्य से बायोमेट्रिक नमूने देने का आदेश दे सकता है और यदि व्यक्ति द्वारा इसका विरोध किया जाता है तो उस पर भारतीय दंड संहिता के तहत आरोप भी तय हो सकता है। 

Web Title: Opposition calls Modi government's Criminal Identification Bill introduced in Parliament "unconstitutional"

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे