केवल केंद्र के पास ही गन्ने का न्यूनतम मूल्य तय करने का विशिष्ट अधिकार है: सुप्रीम कोर्ट
By भाषा | Published: April 23, 2020 05:45 AM2020-04-23T05:45:27+5:302020-04-23T05:45:27+5:30
पीठ ने यह भी कहा, ‘‘केन्द्र सरकार के पास ‘न्यूनतम मूल्य’ तय करने का अधिकार है। राज्य सरकार गन्ने का न्यूनतम मूल्य नहीं तय कर सकती।’’
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को व्यवस्था दी कि केवल केन्द्र के पास गन्ने का न्यूनतम मूल्य तय करने का विशिष्ट अधिकार है तथा राज्य सरकार केवल लाभकारी या परामर्शी मूल्य तय कर सकती है जो केन्द्र सरकार द्वारा तय मूल्य से अधिक होना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी कि जहां राज्य सरकार का ‘‘परामर्शी मूल्य’’ केन्द्र द्वारा तय किए गये ‘‘न्यूनतम मूल्य’’ से कम है वहां केन्द्र सरकार का मूल्य चलेगा।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने उप्र सहकारी गन्ना संघों के परिसंघ मामले में 2004 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को वैध ठहराया और कहा कि इस मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।
पीठ में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एम आर शाह एवं न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि सातवें अनुच्छेद की प्रविष्टि 33 एवं 34 सूची तीन के जरिये केन्द्र एवं राज्य, दोनों सरकारों के पास गन्ने का मूल्य तय करने का अधिकार है।
पीठ ने यह भी कहा, ‘‘केन्द्र सरकार के पास ‘न्यूनतम मूल्य’ तय करने का अधिकार है। राज्य सरकार गन्ने का न्यूनतम मूल्य नहीं तय कर सकती।’’
उच्चतम न्यायालय ने अपने 79 पृष्ठों का यह फैसला इस मुद्दे पर दिया है कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार के पास गन्ने की खरीद और बिक्री का मूल्य तय करने का अधिकार है और क्या तय किया गया मूल्य केन्द्र द्वारा तय किये गये मूल्य से अलग हो सकता है। उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर मतांतर होने के कारण इस मुद्दे को 2012 में बड़ी पीठ के पास भेज दिया था।