झारखंड में पहली बार महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी

By भाषा | Updated: September 1, 2021 20:57 IST2021-09-01T20:57:31+5:302021-09-01T20:57:31+5:30

Notice issued for the first time in Jharkhand for prosecuting contempt of court against Advocate General | झारखंड में पहली बार महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी

झारखंड में पहली बार महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी

झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के इतिहास में पहली बार राज्य के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना के संबंध में स्वत: संज्ञान लेते हुए मुकदमा चलाने के लिए बुधवार को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। अदालत ने झारखंड के साहिबगंज की महिला थाना प्रभारी रूपा तिर्की की मौत के मामले की सुनवाई के दौरान अदालत का कथित रूप से ‘‘अपमान एवं अवमानना’’ करने के मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना का मुकदमा प्रारंभ किया है और इस सिलसिले में महाधिवक्ता राजीव रंजन और अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार के खिलाफ नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने बुधवार को इस मामले में फैसला सुनाते हुए रंजन एवं कुमार के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी करने के निर्देश दिये। अदालत ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार के दोनों वरिष्ठतम विधिक अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब बिहार एवं झारखंड में किसी पदस्थापित महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना का मुकदमा चलाने का नोटिस जारी किया है। इससे पहले रूपा तिर्की की मौत के मामले की अदालत में सुनवाई की पिछली तारीख पर कथित रूप से ‘मर्यादा के प्रतिकूल व्यवहार’ करने को लेकर राज्य सरकार के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के खिलाफ अवमानना का मामला चलाने का अनुरोध करते हुए तिर्की के पिता ने याचिका दायर की थी। पीठ ने बृहस्पतिवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान तिर्की के पिता की याचिका को मुख्य रूप से इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसमें महाधिवक्ता एवं अपर महाधिवक्ता के नाम नहीं हैं, लेकिन इसके तुरंत बाद अदालत ने मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए दोनों अधिकारियों के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी करने के आदेश दिए। झारखंड के पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उनकी जानकारी में झारखंड एवं बिहार में यह अब तक का पहला मामला है, जिसमें अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पदस्थापित महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना का मुकदमा चलाने का नोटिस जारी किया है। उन्होंने बताया कि अदालत ने अपने आदेश में दो टूक कहा है, ‘‘राज्य के सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी महाधिवक्ता ने मामले की सुनवाई के दौरान अजीब माहौल बना दिया। अपने शब्दों से अदालत की गरिमा को तार-तार कर दिया। इतना ही नहीं अदालत को इस तरह अपमानित किया जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है।’’ अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘महाधिवक्ता एवं अपर महाधिवक्ता ने न सिर्फ इस पीठ की छवि को कलंकित करने का काम किया बल्कि उन्होंने न्यायपालिका की गरिमा को भी धूमिल करने का काम किया जो वास्तव में न्याय का मंदिर होता है।’’ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एवं दिल्ली के स्थित वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप राय ने ‘पीटीआई- भाषा’ से कहा, ‘‘देश में यह अपनी तरह का एकमात्र मामला होगा। इस तरह का एक मामला मेघालय में भी कुछ वर्षों पहले सामने आया था लेकिन वहां महाधिवक्ता ने न्यायालय से माफी मांग कर मामले को तत्काल समाप्त कर दिया था।’’ उन्होंने एक सवाल के जवाब में बताया कि अदालत की अवमानना के 1971 के अधिनियम के तहत यदि महाधिवक्ता एवं अपर महाधिवक्ता को इस मामले में दोषी पाया जाता है तो उन्हें छह माह तक की कैद की सजा एवं दो हजार रुपये जुर्माना हो सकता है, लेकिन ऐसे मामलों में अधिकतर बीच का रास्ता अपनाया जाता है और अदालत में माफीनामा पेश कर इसे न्यायपालिका के सम्मान के हित में समाप्त कर दिया जाता है। इससे पूर्व मंगलवार को न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी कर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्य के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता की पैरवी करते हुए कहा था कि ‘‘प्रार्थी का आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है। आवेदन में महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता का नाम नहीं लिखा गया है, जो कि उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार उचित नहीं है। वहीं, किसी भी आपराधिक अवमानना मामले में महाधिवक्ता की सहमति जरूरी है, लेकिन इस मामले में महाधिवक्ता पर ही आरोप है, इसलिए अब अदालत के पास सिर्फ स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना चलाने का ही विकल्प बचता’’ है, दिवंगत रूपा तिर्की के मामले की पिछली सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता रंजन ने न्यायमूर्ति एस के द्विवेदी से कहा था कि उन्हें अब इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। महाधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि 11 अगस्त को मामले की सुनवाई समाप्त होने के बाद प्रार्थी के अधिवक्ता का माइक्रोफोन ऑन रह गया था और वह अपने मुवक्किल से कह रहे थे कि इस मामले का फैसला उनके पक्ष में आना तय है और इस मामले की सीबीआई जांच दो सौ प्रतिशत तय है। उन्होंने दलील दी कि जब प्रार्थी के वकील इस तरह का दावा कर रहे हैं, तो पीठ से आग्रह होगा कि वह इस मामले की सुनवाई नहीं करें। अदालत ने महाधिवक्ता से कहा था कि जो बात आप कह रहें हैं उसे शपथपत्र के माध्यम से अदालत में पेश करें, लेकिन महाधिवक्ता ने शपथपत्र दाखिल करने से इनकार कर दिया और कहा कि उनका मौखिक बयान ही पर्याप्त है। इसके बाद पीठ ने महाधिवक्ता के बयान को रिकॉर्ड करते हुए इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया। इस दौरान पीठ ने कहा कि एक आम आदमी भी अदालत पर सवाल खड़ा करे तो यह न्यायपालिका के गरिमा के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा था कि जब यह सवाल उठ गया है तो मुख्य न्यायाधीश को ही निर्धारित करना चाहिए कि इस मामले की सुनवाई किस पीठ में होगी। मुख्य न्यायाधीश डा रवि रंजन ने इस मामले को सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति एस के द्विवेदी की पीठ में ही दोबारा भेजा है। रूपा तिर्की के पिता देवानंद उरांव ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। उनका कहना है कि रूपा तिर्की ने आत्महत्या नहीं की है, बल्कि उनकी हत्या की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस इसे प्रेम प्रसंग का मामला बता कर आत्महत्या का रंग दे रही है, उनकी बेटी की मौत के बाद जिस परिस्थिति में शव मिला था उससे प्रतीत होता है कि वह आत्महत्या नहीं है। अदालत को बताया गया कि साहिबगंज में पंकज मिश्रा नामक व्यक्ति संदेह के घेरे में है जो राजनीतिक रसूख वाला है । माना जाता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी उसकी बहुत निकटता है। प्रार्थी देवानंद के अधिवक्ता ने अदालत में पंकज मिश्रा के फोन कॉल की जानकारी पेश करते हुए कहा था कि पुलिस उपायुक्त, अधीक्षक और पुलिस उपाधीक्षक के साथ उसकी लगातार बात हुई है। अदालत को बताया गया था कि रूपा तिर्की कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच कर रही थी और इसी कारण उनकी हत्या की साजिश रची गई और जिसमें पंकज मिश्रा और कुछ पुलिस वाले शामिल हैं।सुनवाई के दौरान झारखंड उच्च न्यायालय वकील संघ की अध्यक्ष ऋतु कुमार ने कहा था कि महाधिवक्ता ने अदालत में जो व्यवहार किया, यदि उसके बावजूद उनके खिलाफ अवमानना का मामला नहीं चलता है, तो कोई भी कनिष्ठ अधिवक्ता अदालत में ऐसा व्यवहार कर सकता है और ऐसे में एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी।

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Web Title: Notice issued for the first time in Jharkhand for prosecuting contempt of court against Advocate General

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