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बिहार उपचुनाव के परिणाम से सीएम नीतीश को लगा गहरा झटका, महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्‍वी यादव का बढ़ा कद  

By एस पी सिन्हा | Updated: October 25, 2019 06:05 IST

उपचुनाव में राजद ने जदयू की चार में से दो सीटें छीन ली हैं और एक सीट पर कड़ी टक्कर दी है. जबकि जदयू से एक सीट भाजपा के बागी ने भी झपट ली है. इस तरह से उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि बिहार में नीतीश चाचा पर भतीजा तेजस्वी भारी पड़ गया है. 

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ठळक मुद्देबिहार विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सत्ताधारी दल के लिए खासा चिंताजनक साबित हुआ है. बिहार में पांच सीटों पर हुए इस उपचुनाव में जनता ने जदयू-भाजपा के साथ ही परिवारवाद को भी नकार दिया है. बिहार में एक लोकसभा एवं पांच विधानसभा सीटों के उपचुनाव के परिणाम यही बता रहे हैं.

बिहार विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सत्ताधारी दल के लिए खासा चिंताजनक साबित हुआ है. बिहार में पांच सीटों पर हुए इस उपचुनाव में जनता ने जदयू-भाजपा के साथ ही परिवारवाद को भी नकार दिया है. बिहार में एक लोकसभा एवं पांच विधानसभा सीटों के उपचुनाव के परिणाम यही बता रहे हैं. इस उपचुनाव में सत्‍ताधारी राजग के घटक दल जदयू को बड़ा धक्‍का लगा है, साथ ही महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्‍वी यादव का कद बढ़ा है.  

इस उपचुनाव में राजद ने जदयू की चार में से दो सीटें छीन ली हैं और एक सीट पर कड़ी टक्कर दी है. जबकि जदयू से एक सीट भाजपा के बागी ने भी झपट ली है. इस तरह से उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि बिहार में नीतीश चाचा पर भतीजा तेजस्वी भारी पड़ गया है. 

बेलहर विधानसभा सीट से जदयू के गिरधारी यादव विधायक थे और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बांका से चुने गए. उनके लोकसभा जाने के बाद बेलहर सीट पर उपचुनाव हुआ तो उन्होंने अपने भाई को यहां से टिकट दिला दिया. हालांकि जदयू के कार्यकर्ता इससे नाराज रहे जिसका असर चुनाव परिणाम पर भी पड़ा और यहां से राजद के रामदेव यादव ने 22 हजार से अधिक मतों से बड़ी जीत दर्ज की. 

जदयू के लिए ये भी सेटबैक रहा कि उसे भाजपा के कैडर वोट का समर्थन नहीं मिला. वहीं, राजद के प्रत्याशी जफर आलम ने यहां जदयू के अरुण यादव को बड़ी मात दी है. ये जीत इसलिए भी अहम है कि निषाद वोटों में  सेंधमारी के लिए महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी ने दिनेश निषाद को मैदान में उतारा था. 

उन्होंने करीब 20 हजार से अधिक वोट भी हासिल किए. वहीं, राजद के जफर आलम ने करीब 15 हजार मतों से जीत हासिल की. जाहिर है अगर निषाद फैक्टर भी राजद के पक्ष में गया होता तो राजद की ये जीत और बड़ी होती.

वहीं, नाथनगर विधानसभा सीट पर राजद की राबिया खातून और जदयू के लक्ष्मीकांत मंडल के बीच कडा मुकाबला रहा. खबर लिखे जाने तक जदयू प्रत्याशी आगे चल रहे थे. जबकि मतगणना के दौरान कई बार राजद प्रत्याशी ने उन पर बढ़त बनाई. ये आंकड़ा तब का है जब  महागठबंधन से नाराज जीतनराम मांझी ने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से अजय राय को भी खडा किया था और उन्होंने राजद के वोटबैंक में सेंधमारी भी की. जबकि जदयू के लिए सीवान की दरौंदा सीट भी बडा सेटबैक रही. 

यहां पार्टी के प्रत्याशी अजय सिंह हार गए हैं. अजय सिंह की भाजपा के बागी उम्मीदवार कर्णजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह से करीब 15 हजार से अधिक वोटों से हार हुई. ऐसे में यह जाहिर है कि भाजपा के बागी उम्मीदवार का इतने बड़े अंतर से जीतना अपने आप में जदयू की खिसकती जमीन का एक बडा उदाहरण है. इस तरह से बेलहर सीट से जदयू सांसद गिरधारी यादव के भाई लालधारी यादव को हार का सामना करना पड़ा है तो वहीं दरौंदा सीट से भी जदयू सांसद कविता सिंह के पति को हार का सामना करना पड़ा है.

इस तरह से उपचुनाव में तार-तार दिखी विपक्षी एकता के बीच राजद के पैर जमे रहे. जबकि महागठबंधन के घटक दल एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकते नजर आए. गत लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की हार के बाद से राजद नेता तेजस्‍वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए जाते रहे थे. 

'हम' सुप्रीमो जीतनराम मांझी ने तो उनके नेतृत्‍व व अनुभव पर अनुभव पर सीधा सवाल खड़ा किया. कांग्रेस ने भी उन्‍हें अगले विधानसभा चुनाव में विपक्ष का नेता तथा मुख्‍यमंत्री चेहरा मानने से इनकार कर दिया. गत लोकसभा चुनाव में हार के बाद खुद तेजस्‍वी भी मुख्‍यधारा की राजनीति से लंबे समय तक कटे रहे, जिस कारण उनके विपक्ष के नेता होने पर सवाल खड़े किए जाते रहे थे. 

ऐसे हालात में इस उपचुनाव में तेजस्‍वी को अपनी पहचान बनाने की चुनौती थी. लोकसभा चुनाव की हार के दाग भी गहरे थे. तेजस्‍वी के नेतृत्‍व में राजद ने केवल सीटें जीतीं, बल्कि जदयू की सिटिंग सीटें भी झटकीं. राजद के खाते में आईं सिमरी बख्तियारपुर व बेलहर की सीटें पहले जदयू के पास थीं. 

सिमरी बख्तियारपुर में 'वीआइपी' तथा नाथनगर में 'हम' के प्रत्‍या‍शियों की हार ने तेजस्‍वी को दोहरा लाभ यह दिया कि इन दोनों छोटे दलों के मुखिया कमजोर होंगे. कांग्रेस भी किशनगंज में हार चुकी है. इससे महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्‍वी पर उठाए जा रहे सवाल फिलहाल बंद होंगे.

किशनगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस की हार के भी गहरे निहितार्थ हैं. कांग्रेस परंपरागत सीट रहे किशनगंज में एआईएमआईएम की जीत के साथ बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री हुई है. वहां एआईएमआईएम प्रत्‍याशी कमरुल होदा ने भाजपा की स्‍वीटी सिंह को भी हराया है. 

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एनडीए में बीते दिनों गिरिराज सिंह सहित अनेक भाजपा नेता मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के बयानबाजी पर उतर आए थे. उन्‍होंने नीतीश कुमार को 'छोटा भाई' बनने तक की बात कही थी. ऐसे बयानों के खिलाफ जदयू ने भी स्‍टैंड लिया था. जदयू के राष्‍ट्रीय महासचिव केसी त्‍यागी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह से हस्‍तक्षेप की मांग की थी. 

बात बिगड़ने के पहले अमित शाह ने हस्‍तक्षेप भी किया. उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि आगामी विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में ही लड़ा जाएगा. इस वाद-विवाद व तनाव का असर वोटिंग पर पड़ा होगा. अमित शाह ने स्‍टैंड लिया, लेकिन देर हो चुकी थी.

उधर, समस्‍तीपुर लोकसभा सीट पर एलजेपी प्रत्‍याशी ने जीत दर्ज कर एनडीए का खाता खोला. समस्‍तीपुर लोकसभा सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी के रामचंद्र पासवान के निधन के बाद उनके बेटे प्रिंस पासवान को पार्टी ने उम्‍मीदवार बनाया था. 

इस बीच, अपनी हार पर प्रतिक्रिया देते हुए जदयू नेता व मंत्री जयकुमार सिंह ने कहा कि यह जनता की तरफ से संकेत है. इस चुनाव परिणाम की समीक्षा की जाएगी. वहीं, लोजपा संसदीय दल के नेता चिराग पासवान ने माना कि उपचुनाव में तेजस्‍वी की जीत हुई है, लेकिन उन्‍होंने यी भी कहा कि यह क्षणिक जीत है, वे 2020 के विधानसभा चुनाव में इसकी आशा न करें.  उधर, राजद के विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा कि आने वाले समय में बिहार में जदयू का पूरी तरह सफाया हो जाएगा. 

वहीं, दरौंदा में जदयू की हार के बाद अब भाजपा का एक धड़ा मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ फिर मुखर हो गया है. भाजपा विधान पार्षद टुन्‍नाजी पांडेय ने नीतीश कुमार को हार की जिम्‍मेदारी लेते हुए इस्‍तीफा कर मांग कर दी है.

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