एनआईए ने कोर्ट में दाखिल किये आरोप पत्र में कहा, "पीएफआई देश के खिलाफ 'युद्ध छेड़ने' की योजना पर काम कर रही थी"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 19, 2023 10:44 AM2023-03-19T10:44:07+5:302023-03-19T10:49:56+5:30
एनआईए ने पूर्व पीएफआई सदस्य और सरकारी गवाह के बयान के आधार पर दावा किया है कि प्रतिबंधित पीएफआई भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह इस्लामिक शासन स्थापित करने की गुप्त योजना पर काम कर रही थी।

फाइल फोटो
दिल्ली: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) देश के खिलाफ व्यापक युद्ध छेड़ने की तैयारी में थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पूर्व पीएफआई सदस्य और सरकारी गवाह के बयान के आधार पर दावा किया है कि प्रतिबंधित पीएफआई के सदस्यों को यह सिखाया जाता था कि जब पाकिस्तान से ओर से पैदा की जाने वाली अशांति के दमन में भारतीय सेना उत्तरी क्षेत्र में व्यस्त होगी तो पीएफआई के कार्यकर्ता दक्षिण भारत पर कब्जा करेंगे और फिर उत्तर भारत की ओर बढ़ेंगे।
एनआईए ने दिल्ली की अदालत में दायर पीएफआई के गिरफ्तार सदस्यों के संबंध में पेश किये गये आरोप पत्र में इस दावे का उल्लेख करते हुए बताया है कि जांच एजेंसी को इस बात की जानकारी कभी पीएफआई की कोर टीम के सदस्य रहे और मौजूदा समय में सरकारी गवाह बने शख्स ने मजिस्ट्रेट के रिकॉर्ड किए गए बयान में इस बात का दावा किया है।
एनआईए की ओर से दायर किये आरोप पत्र में कहा गया है कि पीएफआई देश को अस्थिर करने, आतंकी साजिश रचने और देश को विभाजित करने के उद्देश्य से आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त थी। जांच एजेंसी की ओर से यह आरोप पत्र पीएफआई के 19 कोर टीम के सदस्यों के खिलाफ दायर की गई है। जिसमें बताया गया है कि पीएफआई सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन की आड़ में एक ऐसा प्रशिक्षित और गुप्त बल तैयार करने की फिराक में था, जिसका लक्ष्य 2047 तक भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना करने का था।
एनआईए की ओर से कोर्ट में दायर किये गये आरोप पत्र में पीएफआई के अध्यक्ष ओएमए सलाम, उपाध्यक्ष ईएम अब्दुल रहमान, राष्ट्रीय सचिव वीपी नज़रुद्दीन और एनईसी के राष्ट्रीय महासचिव अनीस अहमद समेत कुल 19 लोगों के नाम शामिल हैं।
एनआईए ने पिछले साल देशभर में पीएफआई से जुड़े 39 ठिकानों पर छापेमारी की थी और इसके कई पदाधिकारियों को गिरफ्तार किया था। जिनमें से 19 लोगों को आरोपी बनाया। इन 19 आरोपियों में 12 राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद (एनईसी) के सदस्य, संस्थापक सदस्य और पीएफआई के वरिष्ठ नेता शामिल थे। एनआईसी पीएफआई की ओर से शीर्ष निर्णय लेने वाली विंग है।
एनआईए के जांच अधिकारी की ओर से पेश की गई चार्जशीट में कहा गया है कि सरकारी गवाहों से पूछताछ और इकबालिया बयान से पता चला है कि पीएफआई ने सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने और उसकी जगह पर इस्लामिक शासन स्थापित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए बेहद गंभीर रणनीति बनाई थी।
आरोप पत्र में सरकारी गवाह के हवाले से स्पष्ट कहा गया है कि पीएफआई द्वारा आयोजित थरबियत सेशन में कहा गया था कि पाकिस्तान से किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में जब भारतीय सेना उत्तरी क्षेत्र में व्यस्त होगी तो पीएफआई के प्रशिक्षित लड़ाके दक्षिण भारत पर कब्जा करेंगे और फिर उत्तर भारत की बढ़ेंगे। यह भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंकने के साजिश रच रहे थे।
आरोप पत्र में बताया गया है कि पीएफआई गुप्त रूप से पुरुष लड़ाकों की भर्ती कर रहा था और उनके जरिये वो केंद्र सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एक ऐसी 'सेना' तैयार कर रहा था, जो युद्ध में कुशल हो। पीएफआई इसके लिए देशभर में हथियार प्रशिक्षण कैंप का भी आयोजित कर रहा था। उनकी नियोजित रणनीति के तहत उन संगठनों के महत्वपूर्ण नेताओं को चिह्नित करना था, जो हिंदू संगठनों सहित पीएफआई की विचारधारा के खिलाफ थे। पीएफआई विभिन्न समुदायों के बीच सांप्रदायिक खाई पैदा करने के लिए प्रोफाइलिंग लोगों की लिस्ट तैयार कर रहा था, जिन्हें वो अपने हिट स्क्वॉड के जरिये कत्ल करना चाहता था।
एनआईए को पीएफआई की जांच के दौरान उसके आधिकारिक यूट्यूब से ऐसे वीडियो मिले हैं, जो सरकारी नीतियों की गलत व्याख्या करके पूरे लोकतंत्र, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ नफरत पैदा करने, लोगों को केंद्र सरकार के खिलाफ भड़काने और एक धर्म विशेष के खिलाफ अन्य धर्म के लोगों को हिंसा के लिए उकसा रहे थे।