राजद्रोह कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचा गैर सरकारी संगठन

By भाषा | Published: July 16, 2021 04:39 PM2021-07-16T16:39:47+5:302021-07-16T16:39:47+5:30

NGO reached the Supreme Court against the sedition law | राजद्रोह कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचा गैर सरकारी संगठन

राजद्रोह कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचा गैर सरकारी संगठन

नयी दिल्ली, 16 जुलाई राजद्रोह कानून के ‘‘घोर दुरुपयोग’’ पर उच्चतम न्यायालय द्वारा चिंता जताने के एक दिन बाद एक गैर सरकारी संगठन ने शुक्रवार को शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इस आधार पर इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी कि यह ‘‘विसंगत’’ है और ‘‘भारत जैसे स्वतंत्र लोकतंत्र में इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो गई है।’’

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि राजद्रोह राजनीतिक अपराध था, जिसे मूलत: ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान राजनीतिक विद्रोह को कुचलने के लिए लागू किया गया था।

इसने कहा कि इस तरह के ‘‘दमनकारी’’ प्रवृत्ति वाले कानून का स्वतंत्र भारत में कोई स्थान नहीं है।

कानून के खिलाफ बृहस्पतिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने भी शीर्ष अदालत का रुख किया।

प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने बृहस्पतिवार को इसके दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की और केंद्र से कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए महात्मा गांधी जैसे लोगों को ‘‘चुप’’ कराने में ब्रिटेन द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कानून को वह खत्म क्यों नहीं करता।

भादंसं की धारा 124-ए (राजद्रोह) गैर जमानती कानून है जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ किसी भी नफरत या मानहानि वाले भाषण या अभिव्यक्ति को आपराधिक दंड निर्धारित करता है। इसके तहत अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने अपनी याचिका में कहा, ‘‘यह प्रावधान विसंगत है और भारत जैसे स्वतंत्र देश में इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है।’’

इसने कहा, ‘‘इस परिप्रेक्ष्य में राजद्रोह को राजनीतिक अपराध बताया गया है जिसे मूलत: ब्रिटेन के उपनिवेशों को नियंत्रित करने और राजशाही के खिलाफ विद्रोह को रोकने के लिए लागू किया गया था। इस तरह के दमनकारी चरित्र वाले कानून का स्वतंत्र भारत में कोई स्थान नहीं है।’’

याचिका में कहा गया, ‘‘भादंसं में राजद्रोह का कानून 1870 में लागू किया गया ताकि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से असहमति जताने को आपराधिक बनाया जा सके और खासकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचला जा सके।’’

उच्चतम न्यायालय बृहस्पतिवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया तथा एक पूर्व मेजर जनरल की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था जिन्होंने कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी थी और कहा कि उनकी मुख्य चिंता ‘‘कानून के दुरुपयोग’’ को लेकर है।

शौरी ने अपनी याचिका में कानून को ‘‘असंवैधानिक’’ घोषित करने की अपील की थी।

कानून के तहत तीन वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक का दंड दिया जा सकता है और इसमें जुर्माना लगाए जाने का भी प्रावधान है।

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Web Title: NGO reached the Supreme Court against the sedition law

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