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नयी शिक्षा नीति गरीबी के खिलाफ लड़ाई का साधन: प्रधानमंत्री

By भाषा | Updated: August 15, 2021 19:53 IST

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नयी दिल्ली, 15 अगस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 21वीं सदी की जरूरत बताते हुए रविवार को कहा कि यह गरीबी के खिलाफ लड़ाई का एक साधन भी है।

आजादी की 75वीं सालगिरह पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह नीति क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई को प्रोत्साहित करती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कौशल और सामर्थ्‍य से भरे देश में कुछ कर गुजरने की भावना से भरे नौजवानों को तैयार करने में शिक्षा की बड़ी भूमिका होती है। उन्होंने कहा, ‘‘अब हमारे बच्‍चे न कौशल की कमी के कारण रूकेंगे और न ही भाषा की सीमा में बंधेंगे। दुर्भाग्‍य से हमारे देश में भाषा को लेकर एक बड़ा विभाजन पैदा हो गया है। भाषा की वजह से हमने देश की बहुत प्रतिभाओं को पिंजरे में बांध दिया है।’’

उन्होंने कहा कि मातृ-भाषा में पढ़े हुए लोग आगे आएंगे तो उनका आत्‍मविश्‍वास और बढ़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘आज देश के पास 21वीं सदी की जरूरतों को पूरा करने वाली नयी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ भी है। जब गरीब की बेटी और गरीब का बेटा मातृभाषा में पढ़कर पेशेवर बनेंगे तो उनके सामर्थ्य के साथ न्याय होगा। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को गरीबी के खिलाफ लड़ाई का मैं साधन मानता हूं।’’

मोदी ने कहा कि नयी राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति भी एक प्रकार से गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने का एक बहुत बड़ा शस्‍त्र बनकर काम आने वाला है। उन्होंने कहा, ‘‘गरीबी से जंग जीतने का आधार भी मातृ-भाषा की शिक्षा है, मातृ-भाषा की प्रतिष्‍ठा है, मातृ-भाषा का महात्‍मय है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘देश ने देखा है खेल के मैदान में... और हम अनुभव कर रहे हैं। भाषा रूकावट नहीं बनी और उसका परिणाम यह हुआ है कि युवा हमारे खिलाड़ी खेल भी रहे हैं और खिल भी रहे हैं। अब ऐसा ही जीवन के अन्‍य मैदानों में भी होगा।’’

शिक्षा में खेल के महत्व का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की एक और विशेष बात यह है कि इसमें खेलों को मुख्य पढ़ाई का हिस्सा बनाया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘जीवन को आगे बढ़ाने में जो भी प्रभावी माध्‍यम हैं, उनमें एक खेल भी हैं। जीवन में संपूर्णता के लिए खेल-कूद बहुत आवश्‍यक है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय था जब खेल-कूद को मुख्‍यधारा नहीं समझा जाता था और मां-बाप भी बच्‍चों से कहते थे कि खेलते ही रहोगे तो जीवन बर्बाद कर लोगे। उन्होंने कहा, ‘‘अब देश में फिटनेस को लेकर, खेलों को लेकर एक जागरूकता आई है। इस बार ओलंपिक में भी हमने देखा है, हमने अनुभव किया है। ये बदलाव हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ा बदलाव है। इसलिये आज देश में खेलों में प्रतिभा, प्रौद्योगिकी और पेशेवराना अंदाज लाने के लिए जो अभियान चल रहा है। इस दशक में हमें उसे और तेज और व्‍यापक करना है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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