जयंती विशेष: जब हिंदू मुंशी प्रेमचंद से हो गए थे नाराज, पढ़ें उनके जीवन के कुछ सबसे रोचक प्रसंग
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 31, 2019 07:19 AM2019-07-31T07:19:43+5:302019-07-31T08:22:12+5:30
प्रेमचंद के नॉवेल गोदान, गबन, निर्मला और सेवा सदन इत्यादि हिन्दी में आधुनिक उपन्यास के शाहकार माने जाते हैं। कथा क्षेत्र में भी प्रेमचंद की दर्जनों कहानियाँ भारतीय साहित्य की क्लासिक कहानियों में शुमार की जाती हैं।
आज (31 जुलाई) को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती है। इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था। उनके चाचा ने उनका नाम नवाब राय रखा था। प्रेमचंद शुरू में नवाब राय नाम से ही लिखते थे। उनके कहानी संग्रह सोज-ए-वतन पर ब्रिटिश हुकूमत ने प्रतिबंध लगा दिया तो उन्होंने प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू किया।
प्रेमचंद के नॉवेल गोदान, गबन, निर्मला और सेवा सदन इत्यादि हिन्दी में आधुनिक उपन्यास के शाहकार माने जाते हैं। कथा क्षेत्र में भी प्रेमचंद की दर्जनों कहानियाँ भारतीय साहित्य की क्लासिक कहानियों में शुमार की जाती हैं। उन्होंने हंस, माधुरी और जागरण जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। प्रेमचंद का आठ अक्टूबर 1936 को महज 56 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
प्रेमचंद के साहित्य और वैचारिक लेखों की अक्सर चर्चा होती है लेकिन उनके निजी जीवन के बारे में कम बात होती है। प्रेमचंद अपने निजी जीवन में कैसे व्यक्ति थे इसकी सबसे प्रमाणिक और मर्मस्पर्शी जानकारी उनकी पत्नी शिवरानी देवी की लिखी किताब "प्रेमचंद: घर में" से मिलती है। हम उसी किताब से सात ऐसे प्रसंग पेश कर रहे हैं जो कथा-सम्राट के निजी चरित्र और विभिन्न विषयों पर विचार स्पष्ट करते हैं। ये सारे किस्से शिवरानी देवी की किताब से हूबहू प्रेमरानी देवी के शब्दों में ही प्रस्तुत कर रहे हैं।
1- शिक्षा विभाग के डिप्टी इंस्पेक्टर प्रेमचंद
"जाड़े के दिन थे। स्कूल का इन्सपेक्टर मुआयना करने आया था। एक रोज़ तो इन्सपेक्टर के साथ रहकर आपने स्कूल दिखा दिया। दूसरे रोज़ लड़कों को गेंद खिलाना था। उस दिन आप नहीं गये। छुट्टी होने पर आप घल चले आये। आरामकुर्सी पर लेटे दरवाज़े पर आप अख़बार पढ़ रहे थे। सामने ही से इन्सपेक्टर अपनी मोटर पर जा रहा था। वह आशा करता था कि उठकर सलाम करेंगे। लेकिन आप उठे भी नहीं। इस पर कुछ दूर जाने के बाद इन्सपेक्टर ने गाड़ी रोककर अपने अर्दली को भेजा।
अर्दली जब आया, तो आप गये।
"कहिए क्या है?"
इन्सपेक्टर- तुम बड़े मगरूर हो। तुम्हारा अफ़सर दरवाज़े से निकल जाता है। उठकर सलाम भी नहीं करते।
"मैं जब स्कूल में रहता हूं, तब नौकर हूँ। बाद में मैं भी अपने घर का बादशाह हूँ। यह आपने अच्छा नहीं किया। इस पर मुझे अधिकार है कि आप पर मैं केस चलाऊँ।"इन्सपेक्टर चला गया। आपने अपने मित्रों से राय ली कि इस पर केस चलाना चाहिए। मित्रों ने सलाह दी, जाने दीजिए। आप भी उसे मग़रूर कह सकते थे। हटाइए इस बात को। मगर इस बात की कुरेदन उन्हें बहुत दिनों तक रही।"
2- गाय की हत्या
जब मैं गोरखपुर में थी, तो मेरे गाय थी। वह गाय एक दिन कलक्टर के हाते में चली गई। कलक्टर ने कहला भेजा कि अपनी गाय ले जाएँ, नहीं तो मैं गोली मार दूँगा। आपको ख़बर भी न होने पाई, ढाई-तीन सौ के लगभग लड़के नौकरों के साथ पहुँचे।
जब मैंने शोरगुल बहुत सुना और दरवाज़े पर देखती हूँ कि कोई आदमी नहीं है तो मैं आपके कमरे में गई। मैंने क्या देखा- आप शान्ति से लिख रहे थे।
'आप तो यहाँ बैठे हैं। हाते में कोई भी आदमी नहीं है।'
'अच्छा'
जाड़े के दिन थे। एक कुर्ता और स्लीपर पहने बाहर निकले। कलक्टर के बँगले की तरफ़ गये। वहाँ जाकर पूछा- आख़िर तुम लोग यहाँ क्यों आये?
आदमियों ने कहा- साहब के हाते में गाय आ गई है। उसने गोली मारने को कहा है।
'तुम लोगों को कैसे ख़बर हुई?'
'साहब, आदमी गया था। वही यह सह कह रहा था।'
'जर अर्दली गया तो मुझसे बताना चाहिए था।'
'आपसे इसलिए नहीं कहा कि हमीं कौन कम थे।'
'मगर साहब को जब गोली ही मारनी थी तो मुझे बुलाने की क्या ज़रूरत थी। यह तो साहब की बात बिल्कुल बच्चों की-सी है। गाय को गोली मारना और मुझे दिखाकर!'
लड़के- बग़ैर गाय लिये हम नहीं जाएंगे।
आप बोले- अगर साहब ने गोली मार दी?
लड़के- गोली मार देना आसान नहीं है। यहाँ खून की नद बह जाएगी। एक मुसलमान गोली मार देता है तो खून की नदियाँ बहती हैं।
'फौजवाले तो रोज़ गाय-बछड़े मार-मारकर खाते हैं, तब तुम लोग कहाँ सोते रहते हो? यह तो ग़लती है कि मुसलमानों की एक कुर्बानी पर सैकड़ों हिन्दू-मुसलमान मरते-मारते हैं। गाय तुम्हारे लिए जितनी ज़रूरी है, मुसलमानों के लिए भी उतनी ज़रूरी है। चलो। अभी तुम्हारी गाय लेकर आता हूँ।'
'साहब के पास जाकर आप बोले- आपने मुझे क्यों याद किया?'
'तुम्हारी गाय मेरे हाते में आई। मैं उसे गोली मार देता। हम अंग्रेज हैं।''
'साहब, आपको गोली मारनी थी तो मुझे क्यों बुलाया? आप जो चाहे सो करते। या आप मेरे खड़े रहते गोली मारते।'
'हाँ, हम अंग्रेज हैं, कलक्टर हैं। हमारे पास ताकत है। हम गोली मार सकता है।'
'आप अँग्रेज़ हैं। कलक्टर हैं। सब कुछ हैं पर पब्लिक भी तो कोई चीज़ है।'