हिंदुस्तान की मिट्टी की तासीर नफरत के बीज गहरे तक नहीं उतरने देती: मुनव्वर राणा

By भाषा | Published: December 3, 2018 12:15 AM2018-12-03T00:15:21+5:302018-12-03T00:15:21+5:30

munawwar rana shayari on hindu-muslim politics | हिंदुस्तान की मिट्टी की तासीर नफरत के बीज गहरे तक नहीं उतरने देती: मुनव्वर राणा

हिंदुस्तान की मिट्टी की तासीर नफरत के बीज गहरे तक नहीं उतरने देती: मुनव्वर राणा

हिंदुस्तान की मिट्टी की तासीर कुछ ऐसी है कि वह नफरत के बीज को गहरे तक नहीं उतरने देती है. मुल्क में मंदिर-मस्जिद का सियासी शोर बढ़ने के बीच मशहूर शायर मुनव्वर राना ने ताजा हालात पर यह टिप्पणी की है. उन्होंने उम्मीद जतायी कि ऐसे हालात हमेशा नहीं रहेंगे. साहित्य अकादमी से पुरस्कृत शायर राना ने कहा कि मुल्क में आज फिर मंदिर-मस्जिद के नाम पर सियासी शोर शुरू हो गया है. जाहिर है कि एक शायर की हैसियत से मुझे इन हालात पर एक आम आदमी के मुकाबले कहीं ज्यादा तकलीफ होती है.

शायर के गम को एक आम शख्स के गम के मुकाबले 10 से गुणा करना पड़ता है. लेकिन उम्मीद है कि ऐसे हालात हमेशा नहीं रहेंगे. उन्होंने कहा कि अभी तक तो यही देखा है कि इस मुल्क की मिट्टी ने नफरत के बीज को बहुत गहराई तक नहीं जाने दिया है. सियासी उलट-पुलट में यह खत्म हो जाएगा. अगर नहीं भी होता है तो भी यह मुल्क पाकिस्तान नहीं बनेगा, मगर हिंदुस्तान में कई हिंदुस्तान बन जाएंगे.

नफरतों का कारोबार कभी कम कभी ज्यादा उन्होंने एक सवाल पर एक शेर कहा, ''शकर (मधुमेह) फिरकापरस्ती की तरह रहती है नस्लों तक, यह बीमारी करेले और जामुन से नहीं जाती.'' नफरतों का कारोबार भी वैसा ही है. बजाहिर है कि यह नफरत कभी कम हो जाती है तो कभी ज्यादा, लेकिन अगर हद से ज्यादा बढ़ गई तो बंटवारे से कम पर नहीं छोड़ती. आजादी के फौरन बाद हुए हिन्दुस्तान के बंटवारे के वक्तभी नफरतें चरम पर थीं.

मुहल्लें खत्म हुए तो मोहब्बतें भी खत्म हो गई राना ने मुल्क के ताजा हालात पर एक शेर भी कहा, ''सियासत बांधती है पांव में जब मजहबी घुंघरू, मेरे जैसे तो फिर घर से निकलना छोड़ देते हैं.''उन्होंने कहा कि अगर उन्हें वक्त में पीछे जाकर कुछ बदलने का मौका मिले तो वह सामाजिक व्यवस्था को पहले जैसा करना पसंद करेंगे. जैसा कि 50-60 साल पहले मुहल्ले होते थे, कॉलोनियां नहीं. उन मुहल्लों में समाज के हर धर्म, वर्ग और तबके के लोग साथ रहते थे. आज कालोनियां बनाकर समाज को बांट दिया गया तो मुहब्बतें भी खत्म हो गईं.

आज हालात ये हैं कि एक मुल्क और शहर में रहकर जो लोग एक-दूसरे के त्यौहारों के बारे में नहीं जानते तो एक-दूसरे का गम कैसे जान पाएंगे. मरने से पहले पूरा हिंंदुस्तान देखना है कैंसर से जूझ रहे राना ने अपनी आखिरी ख्वाहिश के बारे में अर्सा पहले पूछे गए सवाल का जवाब दोहराते हुए कहा, ''मरने से पहले हम असल में पूरा-पूरा हिंदुस्तान देखना चाहते हैं. वह हिन्दुस्तान जो हमारे बाप, दादा की आंखों में बसा था. मगर यह ख्वाहिश कहां पूरी होगी. हर ख्वाहिश वैसे भी किसी की पूरी नहीं होती.''

Web Title: munawwar rana shayari on hindu-muslim politics

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