सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसलाः नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं, राम जन्मभूमि विवाद पर होगा क्या असर?
By आदित्य द्विवेदी | Published: September 27, 2018 03:15 PM2018-09-27T15:15:02+5:302018-09-27T17:49:24+5:30
Supreme Court on 1994 Ismail Faruqui verdict : अयोध्या में रामजन्मभूमि टाइटल विवाद पर 29 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होगी।
नई दिल्ली, 27 सितंबरःसुप्रीम कोर्ट ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं माना है। तीन जजों की बेंच में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने संयुक्त रूप से फैसला सुनाते हुए 1994 के इस्माइल फारूकी फैसले को बरकरार रखा है। उन्होंने 24 साल पुराने फैसले को बड़ी बेंच के सामने भेजने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इस्माइल फारूकी के फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत नहीं है।
जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सभी धर्म और धार्मिक स्थानों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए। हालांकि बेंच में मौजूद तीसरे जस्टिस अब्दुल नजीर ने अलग राय रखते हुए मामला बड़ी बेंच को भेजे जाने का फैसला सुनाया। ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या इस फैसले का असर राम जन्मभूमि विवाद पर होगा?
राम जन्मभूमि विवाद पर असर नहीं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद पर नहीं पड़ेगा। अगर यह मामला बड़ी बेंच के पास भेजा जाता तो मुख्य मामले की सुनवाई टल सकती थी। मुख्य विवाद जमीन के मालिकाना हक को लेकर है। एक पक्ष को ये साबित करना है कि बाबर के सेनापति मीर बाकी ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई। दूसरे पक्ष को ये साबित करना है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई। मुख्य मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू होगी।
Ayodhya land dispute case will not be referred to a larger bench: Justice Bhushan on behalf of him and CJI Dipak Misra #SupremeCourtpic.twitter.com/bAQQlOxfcE
— ANI (@ANI) September 27, 2018
1994 का फैसला बरकरार
1994 में इस्माइल फारूकी के फैसले में कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं। यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है। मुस्लिम पक्षों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। मुस्लिम पक्षकारों ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए मामला बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग की थी। लेकिन इस मांग को खारिज कर दिया गया। इसके बाद 1994 के फैसले की स्थिति बरकरार है।
जानें टाइटल विवाद से जुड़ी जरूरी बातेंः-
- 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया। इस मामले में आपराधिक और दीवानी मुकदमे दर्ज किए गए।
- 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। इस फैसले में विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने को कहा गया। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
- हाई कोर्ट के इस फैसले से तीनों पक्षों ने असंतुष्टि जाहिर की थी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। फिलहाल टाइटल विवाद सुप्रीम कोर्ट में पेंडिग है।