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राज्यसभा में मोदी सरकार ने कहा- 'मृत्युदंड' बरकरार रखने के पक्ष में 13 राज्य

By भाषा | Updated: July 26, 2019 20:50 IST

रेड्डी ने कहा कि 14 राज्यों और पांच केन्द्र शासित प्रदेशों ने अपनी राय दी है और एक राज्य को छोड़कर 90 प्रतिशत राज्यों का सुझाव मृत्युदंड को बरकरार रखने के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी दुर्लभतम मामलों में मृत्युदंड को बरकरार रखने पर सहमति जताते हुए दुर्लभतम मामलों को परिभाषित करने के लिए अपने एक निर्णय में पांच सूत्री फार्मूला निर्धारित किया था।

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राज्यसभा में शुक्रवार को केन्द्र सरकार ने कहा कि 13 राज्य मृत्युदंड को बरकरार रखने के पक्ष में हैं। हालांकि उच्च सदन में इस विषय पर विभिन्न दलों के सदस्यों ने परस्पर विरोधी विचार व्यक्त किए। उच्च सदन में कांग्रेस सदस्य प्रदीप टम्टा के निजी विधेयक ‘‘मृत्युदंड उत्सादन विधेयक, 2016’’ पर चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने इस मुद्दे पर केन्द्र का रुख रखते हुए यह बात कही।

उन्होंने कहा कि मृत्युदंड के बारे में विधि आयोग ने इस विषय पर अगस्त 2015 में अपनी सिफारिशें दी थीं और कहा था कि आतंकवाद तथा देश के खिलाफ युद्ध जैसे दुर्लभतम अपराधों में इस सजा को बरकरार रखा लाना चाहिये। आयोग ने बाकी अपराधों में इसे समाप्त करने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि चूंकि यह विषय समवर्ती सूची में आता है इसलिए केन्द्र ने विधि आयोग की इस सिफारिश पर राज्य सरकारों की राय जानने के लिए 13 अक्तूबर 2015 को एक पत्र लिखा और इस बारे में उन्हें तीन-चार बार स्मरण पत्र भेजकर उनकी राय मंगवायी।

रेड्डी ने कहा कि 14 राज्यों और पांच केन्द्र शासित प्रदेशों ने अपनी राय दी है और एक राज्य को छोड़कर 90 प्रतिशत राज्यों का सुझाव मृत्युदंड को बरकरार रखने के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी दुर्लभतम मामलों में मृत्युदंड को बरकरार रखने पर सहमति जताते हुए दुर्लभतम मामलों को परिभाषित करने के लिए अपने एक निर्णय में पांच सूत्री फार्मूला निर्धारित किया था।

रेड्डी ने ध्यान दिलाया कि निर्भया मामले के बाद पूरे देश में ऐसे मामलों में मृत्युदंड देने की मांग उठी थी। इसी सप्ताह उच्च सदन में पोस्को कानून में संशोधन कर बच्चों के साथ यौन अपराध के गंभीर मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि बच्चियों की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या जैसे अपराधों को लेकर महिला संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल और आम जनमानस आंदोलित हैं और चाहते हैं कि अपराधियों को तत्काल फांसी या कोई कठोर दंड मिले।

उन्होंने कहा कि एक आदर्श समाज में ही ऐसे दंड को पूरी तरह समाप्त करने की परिकल्पना की जा सकती है लेकिन मौजूदा स्थिति में इस विषय पर आम राय बनाने तक ऐसे कठोर दंड का होना जरूरी है नहीं तो अव्यवस्था पैदा होगी। रेड्डी ने कहा फैसले में गलती होने की स्थिति में व्यक्ति उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में जा सकता है और राज्यपाल तथा अंत में राष्ट्रपति से क्षमादान की मांग कर सकता है। राज्यपाल एवं राष्ट्रपति को मृत्युदंड की सजा को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने का अधिकार है।

उन्होंने कांग्रेस सदस्य टम्टा से अपना निजी विधेयक वापस लेने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह एक ऐसा विषय है जिस पर समाज के विभिन्न वर्गों एवं राज्यों के बीच सहमति बनाने के लिए व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता है। उनके इस अनुरोध के बाद टम्टा ने सदन की अनुमति से अपना विधेयक वापस ले लिया।

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