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सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करता 'मिट्टी' संस्थान

By अनुभा जैन | Updated: January 23, 2024 16:24 IST

मिट्टी संस्थान विकलांगता अधिकारों और विकलांग लोगों की जरूरतों के बारे में जागरूकता पैदा करता है। मिट्टी शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक चुनौतियों वाले लोगों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता और सम्मान की दिशा में काम करने वाला संस्थान है। 

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ठळक मुद्देमिट्टी, एक गैर-लाभकारी संगठन विकलांग लोगों को स्थायी आजीविका प्रदान करता हैमिट्टी लोगों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता बनाने में काम करता हैआज इन सभी के साथ संगठन में दुनियाभर में कार्यरत 285 से अधिक दिव्यांग लोग शामिल हैं

बेंगलुरु: मिट्टी, एक गैर-लाभकारी संगठन, एक समावेशी स्थान है जो विकलांग लोगों को स्थायी आजीविका प्रदान करता है। मिट्टी एक ऐसी जगह है जहां अनुकूलनशीलता का निर्माण होता है और क्षमताओं व काबिलियत के आधार पर दिव्यांगों को नौकरी दी जाती है।

समावेशन के दृष्टिकोण के साथ, यह संस्थान विकलांगता अधिकारों और विकलांग लोगों की जरूरतों के बारे में जागरूकता पैदा करता है। मिट्टी शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक चुनौतियों वाले लोगों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता और सम्मान की दिशा में काम करने वाला संस्थान है। 

बोलने और सुनने में अक्षम दो बच्चों की सिंगल मदर लक्ष्मी, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हिमांशु,  मिट्टी कैफे की प्रबंधक कीर्ति शुरुआत में रेंगते हुए आईं, क्योंकि वह अपनी व्हीलचेयर का खर्च नहीं उठा सकती थीं। लेकिन, आज इन सभी के साथ संगठन में दुनियाभर में कार्यरत 285 से अधिक दिव्यांग लोग शामिल हैं जो मिट्टी कैफे में वेटर, कैशियर, रसोई सहायक व संगठन के विविध कार्यों के माध्यम से अपने व परिवार का भरण-पोषण कर आर्थिक रूप से आज स्वतंत्र हैं।

"विचारधारा और धर्म में मतभेद होने के बावजूद मनुष्य मिट्टी से आते हैं और आखिरकार मिट्टी में ही मिल जाते हैं।" इसी विचारधारा के आधार पर मिट्टी की संस्थापक और सीईओ, कोलकाता की 31 वर्षीय अलीना आलम ने 2017 में इस अनूठी पहल की शुरुआत की। शुरुआत में मिट्टी कैफे का पहला आउटलेट शून्य पूंजी के साथ कर्नाटक के हुबली में एक शेड में शुरू किया गया था। उनके पहले कैफे में अधिकांश चीजें लोगों द्वारा दान की गई थीं और सेकेंड हैंड थीं।

2023 में दिल्ली, 2021 में कोलकाता में अपनी उपस्थिति स्थापित करने के बाद, आज मिट्टी के गार्डन सिटी, बेंगलुरु सहित पांच शहरों में 42 आउटलेट हैं। मिट्टी कैफे का उद्घाटन भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी किया गया जिसका उद्घाटन भारत के मुख्य न्यायाधीश ने किया था।

संगठन शुरू करने के पीछे के विचार के बारे में लोकमत से बात करते हुए, अलीना ने कहा, "मैं एक दिव्यांग परिवार के सदस्य के साथ बड़ी हुई, मेरी दादी, मैने उनमें जो कुछ देखा वह उनकी क्षमता थी। 23 साल की छोटी उम्र में, जीवन बदलने वाली जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ की डॉक्यूमेंट्री 'नीरोज गेस्ट्स' जो विदर्भ में किसानों की आत्महत्या पर आधारित थी, उसने मेरे जीवन के प्रति नजरिये को बदल दिया।" 

"मिट्टी संस्थान शुरू करने से पहले, अलीना स्वेच्छा से उन संगठनों से जुड़ी, जो समावेशन क्षेत्र में काम करते थे। जहां अलीना को यह एहसास हुआ कि समस्या यह नहीं है कि लोग विकलांग हैं। अलीना ने यह महसूस किया कि समस्या लोगों की धारणा में है जो विकलांग लोगों में क्षमताओं और काबिलियत देखना बंद कर देते हैं। अलीना ने कहा, "मैं इस धारणा को बदलना चाहती थी। भोजन से ही मैने शुरुआत की, क्योंकि हमारे द्वारा परोसे जाने वाला भोजन समावेशन के बारे में जागरूकता पैदा करने का एक माध्यम बना। साथ ही यह इन विकलांग वयस्कों के लिए आजीविका का अवसर भी पैदा करता है।"

अलीना ने घर-घर जाकर लोगों से समावेशन के आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा। मिट्टी ने अभी तक 4000 से अधिक विकलांग लोगों और उपेक्षित गरीब समुदायों के लोगों को कौशल और प्रशिक्षण प्रदान किया है। स्थापना के बाद से अब तक कैफे ने 11 मिलियन से अधिक भोजन और पेय पदार्थ परोसे हैं। मिट्टी इन दिव्यांग जरूरतमंद लोगों को प्रशिक्षण देने के साथ स्टाइपंड, भोजन, आवास और परिवहन सुविधा भी प्रदान करती है। नौकरी पर रखने के बाद इन प्रशिक्षुओं को आउटलेट में नौकरी मिल जाती है।

कैफे के अलावा, मिट्टी गिफ्ट वर्टिकल की दिशा में भी कार्यरत है जो इन विकलांग लोगों की जादुई क्षमताओं द्वारा क्यूरेट और हाथ से पैक किए जाते हैं और विश्व स्तर पर भेजे जाते हैं। जिन लोगों को कभी जरूरतमंद माना जाता था, वे जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं और इसी सोच के साथ मिट्टी गरीबों को पौष्टिक 'करुणा भोज' भी देती है। अब तक मिट्टी ने कमजोर वर्ग को 6 मिलियन करुणा भोजन मुफ्त में परोसा है।

मिट्टी विशेष आवश्यकता वाले लोगों और समाज द्वारा अस्वीकार किए गए लोगों के लिए नई आशा और आत्म-मूल्य की भावना ला रही है। आज ये लोग सम्मान के साथ काम कर रहे हैं और खुद को सशक्त बना रहे हैं। मिट्टी एक समावेशी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देती है और उसमें विश्वास रखती है जो लाखों लोगों की जिंदगियां बदल रहा है।

अंत में अलीना आलम ने लोकमत मीडिया से कहा, "हर कोई बदलाव ला सकता है। करुणा और साहस किसी भी समस्या को खत्म करने के हथियार हैं। बेहतरी के लिए, एक समुदाय के रूप में हमें  यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को गले लगाना चाहिए। विकास केवल समावेशी हो सकता है अन्यथा यह विकास नहीं है। अवसर बनाएं और अपनाएं, सबको साथ लेकर चलें तभी दुनिया विकसित होगी।"

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