हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक दर्जा: सुप्रीम कोर्ट की फटकार और जुर्माने के बावजूद केंद्र नहीं दाखिल कर रहा हलफनामा, कल मामले की सुनवाई

By विशाल कुमार | Published: March 27, 2022 08:55 AM2022-03-27T08:55:17+5:302022-03-27T08:57:36+5:30

साल 2002 में टीएमए पाई मामले में तय दिशानिर्देशों के तहत राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने और कम संख्या में मौजूद स्थानों पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले की कल सुनवाई है लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अभी तक जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है।

minority-tag-hindus-supreme-court-hearing-govt-counter-affidavit | हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक दर्जा: सुप्रीम कोर्ट की फटकार और जुर्माने के बावजूद केंद्र नहीं दाखिल कर रहा हलफनामा, कल मामले की सुनवाई

हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक दर्जा: सुप्रीम कोर्ट की फटकार और जुर्माने के बावजूद केंद्र नहीं दाखिल कर रहा हलफनामा, कल मामले की सुनवाई

Highlights7 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा के लिए केंद्र को चार और सप्ताह दिए थे।31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट 7,500 रुपये का जुर्माना लगाया और इसे चार सप्ताह का एक और मौका दिया।याचिका 2002 के टीएमए पाई मामले में सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले पर आधारित है।

नई दिल्ली: साल 2002 में टीएमए पाई मामले में तय दिशानिर्देशों के तहत राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने और कम संख्या में मौजूद स्थानों पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले की कल सुनवाई है लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अभी तक जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 7 जनवरी को जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने अगस्त 2020 में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए केंद्र को आखिरी अवसर के रूप में चार और सप्ताह दिए थे।

चूंकि केंद्र इसके बाद भी कोई जवाब दाखिल करने में विफल रहा, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने 31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में जमा करने के लिए उस पर 7,500 रुपये का जुर्माना लगाया और इसे चार सप्ताह का एक और मौका दिया।

अपना रुख साफ न करने पर सरकार से नाराजगी जताते हुए पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि 28 अगस्त, 2020 को हमने आपको नोटिस जारी किया था। 

पीठ ने कहा था कि 12 अक्टूबर, 2020 को हमने जवाबी हलफनामा दाखिल करने का समय दिया। उसके बाद, कितने अवसर चले गए?…यह उचित नहीं है। आपको अपना रुख साफ करना होगा।

नटराज ने एक और अवसर की मांग करते हुए जवाब दिया था निश्चित तौर पर हम स्टैंड लेंगे। यह लगभग तैयार है। केवल कोविड -19 के कारण हम इस पर हस्ताक्षर नहीं करा सके।

लेकिन जहां 28 मार्च को फिर से मामले की सुनवाई है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा तैयार की गई एक कार्यालय रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया गया है। 

जबकि 31 जनवरी के आदेश में सभी तीन प्रतिवादियों गृह मंत्रालय (एमएचए), कानून और न्याय मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय- को सूचित किया गया था।

25 मार्च को तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के वकील ने आज तक न तो जवाबी हलफनामा दाखिल किया है और न ही सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में 7,500 रुपये जमा करने का सबूत दिया है। आगे कहा गया कि गृह मंत्रालय के सचिव की ओर से किसी ने वकालतनामा तक दाखिल नहीं किया था।

रिपोर्ट में गृह मंत्रालय के इस मामले को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के शिक्षा एवं कानून मंत्रालय के साथ मामलों को देखने के अनुरोध की जानकारी दी गई है।

उपाध्याय की याचिका 2002 के टीएमए पाई मामले में सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 30 के प्रयोजनों के लिए, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को राज्य-वार माना जाना चाहिए।

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