हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा: केंद्र के अलग-अलग रुख अपनाने से सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा- हलफनामे से पहले हो जाना चाहिए था विचार विमर्श
By भाषा | Published: May 10, 2022 02:43 PM2022-05-10T14:43:57+5:302022-05-10T14:45:49+5:30
केंद्र ने सोमवार को न्यायालय से कहा था कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और इस संबंध में कोई भी निर्णय राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा।
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्य स्तर पर हिंदुओं समेत अन्य अल्पसंख्यकों की पहचान से जुड़े मामले का समाधान किए जाने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि मामले में अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं होगा।
इससे पहले, केंद्र ने सोमवार को न्यायालय से कहा था कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और इस संबंध में कोई भी निर्णय राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने मंगलवार को कहा कि ये ऐसे मामले हैं, जिनके समाधान की जरूरत है और हर चीज पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह नहीं समझ आ रहा कि भारत संघ यह तय नहीं कर पा रहा कि उसे क्या करना है। ये सब विचार पहले ही दिए जाने थे। इससे अनिश्चितता पैदा होती है और हमारे विचार किए जाने से पहले चीजें सार्वजनिक मंच पर आ जाती हैं। इससे एक और समस्या खड़ी होती है।’’
सुनवाई शुरू होने पर एक कनिष्ठ वकील ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई बाद में करने का अनुरोध किया कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता किसी अन्य अदालत में व्यस्त हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने केंद्र द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे का जिक्र किया।
इसके बाद पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यदि केंद्र राज्यों से विचार-विमर्श करना चाहता है तो हमें फैसला करना होगा। यह कहना समाधान नहीं हो सकता कि सब कुछ इतना जटिल है, हम ऐसा करेंगे। भारत सरकार यह जवाब नहीं दे सकती। आप निर्णय लीजिए कि आप क्या करना चाहते हैं। यदि आप उनसे विचार-विमर्श करना चाहते हैं तो कीजिए। आपको ऐसा करने से रोक कौन रहा है?’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘इन मामलों के समाधान की आवश्यकता है। अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं होगा। यदि विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है तो हलफनामा दाखिल करने से पहले ही यह काम हो जाना चाहिए था। सॉलिसिटर जनरल को आने दीजिए।’’
मामले पर कुछ देर बार दोबारा सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत ने पूर्व में केंद्र को उस याचिका का जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के आदेश देने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 की धारा-2 सी के तहत छह समुदायों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘रिट याचिका में शामिल प्रश्न के पूरे देश में दूरगामी प्रभाव हैं और इसलिए हितधारकों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बिना लिया गया कोई भी फैसला देश के लिए एक अनापेक्षित जटिलता पैदा कर सकता है।’’
हलफनामे के मुताबिक, ‘‘अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है, लेकिन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले रुख को राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा।’’
मंत्रालय ने कहा कि इससे सुनिश्चित होगा कि केंद्र सरकार इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे के संबंध में भविष्य में किसी भी अनापेक्षित जटिलताओं को दूर करने के लिए कई सामाजिक, तार्किक और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष एक सुविचारित दृष्टिकोण रखने में सक्षम हो पाएगी।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने पूर्व में शीर्ष अदालत को बताया था कि राज्य सरकारें संबंधित राज्य के भीतर हिंदुओं सहित किसी भी धार्मिक या भाषाई समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं।