नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह के बाद चिकित्सकीय गर्भपात कराने की अनुमति, उच्च न्यायालय ने कहा-कम उम्र में मातृत्व का भार उठाने के लिए मजबूर किया गया तो...
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 20, 2022 09:08 PM2022-07-20T21:08:34+5:302022-07-20T21:09:21+5:30
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता को गर्भावस्था से गुजरने के लिए मजबूर करना उसकी आत्मा को पूरी तरह से झकझोर देगा और उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर और अपूरणीय क्षति होगी।
नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह के बाद चिकित्सकीय गर्भपात कराने की अनुमति देते हुए कहा है कि अगर उसे कम उम्र में मातृत्व का भार उठाने के लिए मजबूर किया गया तो उसका दुख और पीड़ा और बढ़ जाएगी।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता को गर्भावस्था से गुजरने के लिए मजबूर करना उसकी आत्मा को पूरी तरह से झकझोर देगा और उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर और अपूरणीय क्षति होगी। न्यायाधीश ने कहा कि अदालत उसके जीवन के अधिकार को और अधिक ठेस पहुंचाये जाने की कल्पना नहीं कर सकती है और अगर उसे मातृत्व के कठिन कर्तव्यों को निभाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे मानसिक और शारीरिक आघात से गुजरना होगा और यह अकल्पनीय है।
अदालत ने याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका को स्वीकार कर लिया और संबंधित अस्पताल को डीएनए परीक्षण के लिए भ्रूण को संरक्षित करने का निर्देश दिया, जिसकी घटना से संबंधित आपराधिक मामले में जरूरत होगी।
चिकित्सा बोर्ड ने 16 जुलाई की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि याचिकाकर्ता की उम्र लगभग 13 वर्ष और गर्भावस्था की अवधि 25 सप्ताह और छह दिन थी और कहा था कि 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था में, कानून केवल भ्रूण संबंधी असामान्यताओं के मामले में ही गर्भपात की अनुमति देता है।
अदालत ने 19 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘अगर उसे कम उम्र में मातृत्व का भार उठाने के लिए मजबूर किया गया तो उसका दुख और पीड़ा और बढ़ जाएगी।’’ अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि गर्भपात की प्रक्रिया के दौरान, चिकित्सा बोर्ड और चिकित्सकों को पता चलता है कि याचिकाकर्ता के जीवन को खतरा है, तो उनके पास गर्भपात की प्रक्रिया को रद्द करने का अधिकार होगा।