मेजर रामास्वामी परमेश्वरन की जयंती: 'ऑपरेशन पवन' के हीरो की वीरगाथा, सीने में गोली लगने के बाद भी आतंकी को मार गिराया

By पल्लवी कुमारी | Updated: September 13, 2019 09:29 IST2019-09-13T09:29:52+5:302019-09-13T09:29:52+5:30

मेजर रामास्वामी 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों के साहस और बलिदान से प्रेरित होकर भारतीय सेना में आये थे। मेजर रामास्वामी के सैन्य जीवन की शुरुआत भारतीय थल सेना की सबसे विख्यात 15 महार रेजिमेंट में कमिशंड ऑफिसर के तौर पर हुई थी।

Major Ramaswamy Parameswaran PVC histoy Operation Pawan Sri Lanka 1987 IPKF | मेजर रामास्वामी परमेश्वरन की जयंती: 'ऑपरेशन पवन' के हीरो की वीरगाथा, सीने में गोली लगने के बाद भी आतंकी को मार गिराया

मेजर रामास्वामी परमेश्वरन की जयंती: 'ऑपरेशन पवन' के हीरो की वीरगाथा, सीने में गोली लगने के बाद भी आतंकी को मार गिराया

Highlights25 नवंबर 1987 को श्रीलंका में आतंकियों से सीधी मुठभेड़ के दौरान 46 वर्षीय मेजर रामास्‍वामी परमेस्वरन शहीद हो गये थे।साथियों के बीच 'पेरी साहब' के नाम से मशहूर मेजर रामास्‍वामी ने मिजोरम और त्रिपुरा में जंग के दौरान अपने युद्ध कौशल और अदम्‍य साहस का अभूतपूर्व परिचय दिया था।

श्रीलंका के जाफना के गांव में इंडिया की पीस टीम और टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के आतंकियों के बीच एनकाउंटर चल रहा था। आतंकियों ने पूरे इलाके में बारूदी सुरंग बिछाई थी। भारत के इस शांति अभियान का नेतृत्व मेजर रामास्‍वामी कर रहे थे। जब मेजर रामास्‍वामी आतंकियों की ओर भाग रहे थे तभी एक गोली पहले उनके बांये हाथ पर लगी और दूसरी गोली सीने पर। सीने और हाथ पर गोली लगने के बाद भी बेखौफ मेजर रामास्‍वामी आतंकी पर झपटा मारकर उसका राइफल छीना और उसे मार गिराया। बेसुध हालात में भी रामास्वामी ने अपने टीम का मार्गदर्शन किया और उनकी टीम ने छह आतंकियों को मार गिराया।

ये घटना है 25 नवंबर 1987 की। जिस दिन श्रीलंका में आतंकियों से सीधी मुठभेड़ के दौरान 46 वर्षीय मेजर रामास्‍वामी परमेस्वरन शहीद हो गये थे। मेजर रामास्‍वामी को  'ऑपरेशन पवन' का हीरो कहा जाता है। उनकी इस शहादत को नमम करते वीरता के सम्मान में मरणोपरांत उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। मेजर रामास्वामी परमेश्वरन का जन्म 13 सितंबर, 1946 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। रामास्‍वामी ने स्कूली पढ़ाई साउथ इंडियन एजुकेशन सोसायटी हाई स्कूल, मुंबई से 1963 में की। 1968 में एसआईईएस कॉलेज से विज्ञान में ग्रैजुएशन किया।

रामास्‍वामी के सैन्य जीवन की शुरुआत सेना में कमीशंड अधिकारी के रूप में 16 जनवरी 1972 को 15 महार रेजिमेंट से हुई। अपने साथियों के बीच 'पेरी साहब' के नाम से मशहूर मेजर रामास्‍वामी ने मिजोरम और त्रिपुरा में जंग के दौरान अपने युद्ध कौशल और अदम्‍य साहस का अभूतपूर्व परिचय दिया था।

 श्रीलंका कैसे पहुंचे मेजर रामास्‍वामी 

29 जुलाई 1987 को भारत और श्रीलंका के बीच एक अनुबंध हुआ, जिसके मुताबिक भारत की इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) का श्रीलंका जाना तय हुआ। जहां वह तमिल उग्रवादियों का सामना करते हुए वहां शांति बनाने का काम करें। इसी अनुबंध के तहत शांति सेना के तौर पर 8 महार बटालियन से मेजर रामास्वामी परमेश्‍वरन भी श्रीलंका पहुंचे थे।  शांति सेना के तौर पर श्रीलंका में भारतीय सेना द्वारा की जाने वाली कार्रवाई को 'ऑपरेशन पवन' का नाम दिया गया था। 8 महार ही वह पहली बटालियन थी जिसे 1987 में श्रीलंका भेजा गया था। 30 जुलाई 1987 को श्रीलंका पहुंचने के बाद भारतीय सेना के इस दल को जाफना पेनिनसुला में तैनात किया गया था। तैनाती के दौरान भारतीय सेना का टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के साथ कई बार मुकाबला हुआ।

मेजर रामास्‍वामी ऑपरेशन पवन के कैसे बने हीरो 

ये बात  24 नवम्बर 1987 की है। जब मेजर रामास्‍वामी वाली बटालियन को सूचना मिली कि जाफना के कंतारोताई के एक गांव के घर में भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद पहुंचाये जा रहे थे। मेजर रामास्‍वामी की टीम को वहां की तलाशी अभियान की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिस गांव में हथियार और गोलाबारूद उतारा गया था, वह एलटीटीई का मजबूत गढ़ था।  मेजर रामास्वामी ने अपनी टीम के साथ उस घर की पहचान कर उसे चारों तरफ से घेर लिया। जिसके बाद उन्होंने तय किया कि तलाशी 25 नवम्बर की सुबह ली जायेगी।

अगले दिन जब वे तलाशी लेना शुरू किया तो एलटीटीई के उग्रवादियों ने उन पर हमला कर दिया। हमले की परवाह किए बगैर मेजर परमेश्वरन और करीब 30 सैनिकों की उनकी टीम घर की तलाशी के लिए आगे बढ़ी। घर की तलाशी ली गई लेकिन वहां कुछ बरामद नहीं हुआ। तभी मंदिर के बगीचे से रामास्वामी की टीम पर गोलियों की बौछार होने लगी। दुश्मन की अचानक गोलाबारी से रामास्वामी की टीम का एक जवान शहीद हो गया और एक घायल हो गया था। एलटीटीई के काडरों ने उस इलाके में बारूदी सुरंग भी बिछा दी थी जिससे उस इलाके में सैनिक का जाना मुश्किल हो गया था। मेजर रामास्‍वामी ने इसके बाद रेंगते हुये अपने टीम के 10 लोगों के साथ नारियल की झाड़ी की ओर बढ़े जहां से एलटीटीई के उग्रवादियों की ओर से घात लगाकर फायरिंग की जा रही थी। अपनी टीम के बाकी के 20 लोगों को उन्होंने आतंकियों पर फायरिंग कर ध्यान भटकाने के लिए लगाया।

इस फायरिंग के दौरान आतंकी की राइफल से निकली एक गोली पहले मेजर रामास्‍वामी के बायें हाथ में लगी। जिसके बाद अगली गोली उनके सीने में लगी। इसके बाद भी बेखौफ रामास्वामी ने अपने पास खड़े आतंकी का हथियार झपटा और उसे मार गिराया। सीने और हाथ में गोली लगने की वजह से मेजर रामास्‍वामी निढाल हो चुके थे, लेकिन इसके बाद भी वह टीम के मार्गदर्शन करते रहे और देखते-ही-देखते मेजर रामास्‍वामी की टीम ने छह आंतकियों को मार गिराया। लेकिन इसी दिन 25 नवम्बर को भारत ने अपने इस वीर सपूत को खो दिया।

सेना में क्यों आये थे रामास्‍वामी

मेजर रामास्वामी 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों के साहस और बलिदान से प्रेरित होकर भारतीय सेना में आये थे। सैनिकों को साहस को देखने के बाद ही रामास्वामी ने 1971 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी जॉइन किया था। 16 जून 1972 में वह वहां से पास हुए। इसके बाद भारतीय थल सेना की सबसे विख्यात 15 महार रेजिमेंट में वह कमिशंड ऑफिसर के तौर पर नियुक्त हुए।
 

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