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महाराष्ट्र संकट: सुनवाई कल तक के लिए टली, सुप्रीम कोर्ट का आदेश- जिसके बल पर सरकार बनी राज्यपाल की वह चिट्ठी लेकर आओ

By रोहित कुमार पोरवाल | Updated: November 24, 2019 12:53 IST

महाराष्ट्र संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल तक के लिए टल गई है। शीर्ष अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा जिसके बल पर सरकार बनी है राज्यपाल की वह चिट्ठी लेकर आइए।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना की याचिका पर केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार, महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़नवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार को नोटिस जारी किया है।सर्वोच्च नयायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से राज्यपाल की उस चिट्ठी से संबंधित दस्तावेज अदालत में पेश करने के लिए कहा है जिनको साक्ष्य बनाकर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट  ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन निरस्त कर फड़नवीस की सरकार बनाने की सिफारिश करने वाले राज्यपाल के पत्रों को सोमवार सुबह अदालत में पेश करने का आदेश दिया है। छुट्टी के दिन विशेष सुनवाई में न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के महाराष्ट्र के राज्यपाल के निर्णय को चुनौती देने वाली शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस की याचिका पर रविवार को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किए। 

पीठ ने मुख्यमंत्री फड़नवीस और उप मुख्यमंत्री अजित पवार को भी नोटिस जारी किया है। उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पत्र पेश करने के लिए दो दिन का समय मांगने के मेहता के अनुरोध को अनसुना कर दिया। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और ए एम सिंघवी ने संयुक्त गठबंधन की तरफ से पेश होते हुए पीठ को बताया कि शक्ति परीक्षा आज ही कराया जाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि फड़नवीस के पास बहुमत है या नहीं।

उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद हुए शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस के गठबंधन के पास सदन में 288 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। सिब्बल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बिना राष्ट्रपति शासन हटाए जाने को अजीब बताया है। वहीं सिंघवी ने कहा कि यह ‘लोकतंत्र की हत्या’ है। भाजपा के दो विधायकों और कुछ निर्दलीय विधायकों की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह याचिका बंबई उच्च न्यायालय में दायर होनी चाहिए। 

सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल ने सत्तारूढ़ पार्टी को बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर तक का जो समय दिया है, उसका मतलब ‘‘कुछ और’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘ यह लोकतंत्र के साथ पूरी तरह से ‘धोखा और उसकी हत्या’ है कि सरकार बनाने की मंजूरी तब दे दी गई जब राकांपा के 41 विधायक उनके साथ नहीं हैं।’’ सिब्बल ने कहा, ‘‘ अगर देवेंद्र फड़नवीस के पास बहुमत साबित करने के लिए संख्या है तो उन्हें सदन में साबित करने दें वरना हमारे पास सरकार बनाने के लिए संख्या है।’’ 

सिंघवी ने कहा कि राकांपा के 41 विधायक शरद पवार के साथ हैं। वहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें दो राय नहीं है कि शक्ति परीक्षण बहुमत साबित करने का सबसे अच्छा तरीका है। रोहतगी ने कहा कि कैसे कोई राजनीतिक पार्टी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए अनुच्छेद 32 के तहत न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है। सिंघवी ने इस दौरान उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार की बर्खास्तगी जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि सदन में शक्ति परीक्षण ही सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने कर्नाटक मामले में न्यायालय के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शक्ति परीक्षण का आदेश दिया गया था और कोई गुप्त मतदान नहीं हुआ था। रोहतगी ने राकांपा की याचिका का विरोध किया। 

रोहतगी ने पीठ से कहा, ‘‘ तीनों पार्टियों को समय दिया गया था लेकिन उन्होंने सरकार नहीं बनाई, इसलिए फडणवीस को बहुमत साबित करने दें क्योंकि कोई जल्दबाजी नहीं है।’’ रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल का आदेश दायर नहीं किया गया और संयुक्त गठबंधन की याचिका बिना किसी दस्तावेज की है । उन्होंने कहा कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 361 के तहत कुछ कार्य स्वतंत्रता और छूट होती है जिसके तहत वह दावा करने वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चयनित कर सकते हैं। रोहतगी ने अपने तर्कों का समापन करते हुए कहा, ‘‘ सभी पार्टी को याचिका का जवाब देने के लिए कुछ समय मिलना चाहिए और हमें रविवार शांति से बिताने दें।’’ 

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