mahakumbh 2025: ढाई हजार साल पुरानी पीपे पुल की कहानी?, जानिए इतिहास 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 20, 2025 12:20 IST2025-01-20T12:19:19+5:302025-01-20T12:20:04+5:30

mahakumbh 2025 pipa ka pul: पुलों के निर्माण में 2,200 से अधिक काले तैरते लोहे के कैप्सूलनुमा पीपों का इस्तेमाल किया गया है।

mahakumbh 2025 pipa ka pul Mahakumbh barrel bridges made two and a half thousand years old Persian technology connecting Sangam Akharas prayaraj up | mahakumbh 2025: ढाई हजार साल पुरानी पीपे पुल की कहानी?, जानिए इतिहास 

file photo

Highlightsप्रत्येक पीपे का वजन पांच टन है और यह इतना ही भार सह सकता है। पुल महाकुंभ का अभिन्न अंग हैं, जो विशाल भीड़ की आवाजाही के लिए जरूरी है।फारसी राजा ज़ेरेक्सेस प्रथम ने यूनान पर आक्रमण किया था।

महाकुंभ नगरः महाकुंभ में संगम और 4,000 हेक्टेयर में फैले ‘अखाड़ा’ क्षेत्र के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं ढाई हजार साल पुरानी फारसी तकनीक से प्रेरित पीपे के पुल। तीस पुलों के निर्माण के लिए जरूरी पीपे बनाने के वास्ते 1,000 से अधिक लोगों ने एक वर्ष से अधिक समय तक प्रतिदिन कम से कम 10 घंटे काम किया। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयोजन में वाहनों, तीर्थयात्रियों, साधुओं और श्रमिकों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए पुलों के निर्माण में 2,200 से अधिक काले तैरते लोहे के कैप्सूलनुमा पीपों का इस्तेमाल किया गया है।

इसमें प्रत्येक पीपे का वजन पांच टन है और यह इतना ही भार सह सकता है। महाकुंभ नगर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि ये पुल संगम और अखाड़ा क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया, ‘‘ये पुल महाकुंभ का अभिन्न अंग हैं, जो विशाल भीड़ की आवाजाही के लिए जरूरी है।

हालांकि इनकी निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है ताकि चौबीसों घंटे भक्तों की सुचारू आवाजाही और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। हमने प्रत्येक पुल पर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं और एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र के माध्यम से फुटेज की लगातार निगरानी की जाती है।’’ पीपे के पुल पहली बार 480 ईसा पूर्व में तब बनाए गए थे जब फारसी राजा ज़ेरेक्सेस प्रथम ने यूनान पर आक्रमण किया था।

चीन में झोउ राजवंश ने भी 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में इन पुलों का इस्तेमाल किया था। भारत में इस प्रकार का पहला पुल अक्टूबर 1874 में हावड़ा और कोलकाता के बीच हुगली नदी पर बनाया गया था। ब्रिटेन के इंजीनियर सर ब्रैडफोर्ड लेस्ली द्वारा डिजाइन किये गए इस पुल में लकड़ी के पीपे लगाए गए थे। एक चक्रवात के कारण क्षतिग्रस्त होने के कारण अंततः 1943 में इसे ध्वस्त कर दिया गया था और इसके स्थान पर रवींद्र सेतु का निर्माण किया गया, जिसे अब हावड़ा ब्रिज के नाम से जाना जाता है। 

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