Madras High Court: कोई भी जाति मंदिर के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती?, मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा- पूजा और प्रबंधन सभी भक्त करें
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 5, 2025 15:42 IST2025-03-05T15:35:25+5:302025-03-05T15:42:22+5:30
मंदिरों को इन विभाजनकारी प्रवृत्ति को पोषित करने और समाजिक अशांति पैदा करने की कोशिश करते हैं।

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चेन्नईः मद्रास उच्च न्यायालय ने अहम फैसला किया है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार एक महत्वपूर्ण फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि कोई भी जाति किसी मंदिर के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती है। पूजा और प्रबंधन सभी भक्तों द्वारा किया जा सकता है। इसमें यह भी कहा गया कि किसी विशेष जाति द्वारा मंदिर का प्रशासन करना कोई धार्मिक प्रथा नहीं है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षित किया जा सकता है। अदालत ने याचिकाकर्ता सी गणेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती ने कहा कि हालांकि जाति के नाम पर खुद को पहचानने वाले सामाजिक समूह पारंपरिक पूजा प्रथाओं को जारी रखने के हकदार हो सकते हैं, लेकिन एक जाति अपने आप में एक संरक्षित 'धार्मिक संप्रदाय' नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जातिगत भेदभाव में विश्वास करने वाले लोग धार्मिक संप्रदाय की आड़ में अपनी घृणा और असमानता को छिपाने की कोशिश करते हैं।
मंदिरों को इन विभाजनकारी प्रवृत्ति को पोषित करने और समाजिक अशांति पैदा करने की कोशिश करते हैं। धर्म की आड़ अपनी दुकान को चलाते हैं। सहायक आयुक्त, हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग को अरुलमिघु पोंकालिअम्मन मंदिर को अरुलमिघु मरिअम्मन, अंगलम्मन और पेरुमल मंदिरों और अरुलमिघु पोंकालिअम्मन मंदिर वाले मंदिरों के समूह से अलग करने का निर्देश दिया गया था।