मध्य प्रदेश के कटनी जिले में एक जगह है विलायत कला। वहां एक शख्स रहते हैं वीरेंद्र तिवारी। पेशे से किसान हैं और सामाजिक जीवन में आरएसएस से जुड़े हुए हैं। 10 दिसंबर को उन्होंने अपनी बेटी विभा तिवारी की शादी की जो इलाके में चर्चा का केंद्र बन गई। कुछ लोगों ने वीरेंद्र तिवारी के प्रयासों की तारीफ की तो वहीं आलोचकों की भी कमी नहीं रही। ये शादी कई मायनो में अहम थी। इस रोचक परिणय पर वीरेंद्र तिवारी ने हमसे विस्तार से बात की...
शादी का कार्ड 'आधार' की थीम पर
'मेरे दिमाग में ये था कि कुछ अलग करना है, जो समाज की भलाई के लिए हो। क्यों ना इसकी शुरुआत घर की छोटी-छोटी चीजों से की जाए।' वीरेंद्र तिवारी बड़े गर्व के साथ कहते हैं। उन्होंने बताया कि अमूमन शादी का कार्ड छपवाने में 40-50 रुपये लग जाते हैं और उसमें काम की सूचनाएं गिनी-चुनी ही होती हैं। मेरे दिगाम में आया कि क्यों ना आधार कार्ड के फॉर्मेट में ही शादी का कार्ड छपवाया जाए। इससे खर्च भी कम लगेगा और समाज में एक अच्छा संदेश भी जाएगा।
स्लोगन लिखा- 'दहेज मुक्त भारत अभियान'
वीरेंद्र तिवारी ने बताया कि मैंने बेटी की शादी में शगुन के नाम पर सिर्फ 1 रुपये दिए हैं। वर पक्ष ने बिना किसी आपत्ति के इसे स्वीकर कर लिया। तिवारी भावुक होते हुए कहते हैं कि भले ही मेरे इस तरह के कदमों का समाज में लोगों ने उपहास उड़ाया हो लेकिन मेरी बच्चे इस पर गर्व करते हैं। वीरेंद्र तिवारी ने शादी के कार्ड पर भी 'दहेज मुक्त भारत अभियान' लिखकर एक जरूरी संदेश दिया।
कार्ड में बेटियों के नाम लिखने से नाराज हो गए लोग
आमतौर पर शादी के कार्ड में स्वागताकांक्षी कॉलम में परिवार के संभ्रांत लोगों का उनके पदों के साथ विवरण होता है। मसलन- राम बहादुर (आईपीएस), विशंभर (वरिष्ठ पत्रकार), राहुल देव (पार्षद) लेकिन विभा और सृजनेश की शादी के कार्ड पर एक बहुत ही रोचक बात दिखाई देती है। कार्ड में सबसे नीचे स्वागताकांक्षी कॉलम में शुरुआती नाम बेटियों के ही दिखाई देते हैं। वीरेंद्र बताते हैं, 'शादी के कार्ड में बेटियों के नाम देखकर कई लोग नाराज हो गए और शादी में भी नहीं आए।'
फूलों की जगह मखाने की माला
आजकल ऐसा माहौल बन गया है कि मिडिल क्लास की साधारण शादी में भी डीजे, सजावट, आतिशबाजी के नाम पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है। वीरेंद्र तिवारी ने इस भी तोड़ निकाला। उन्होंने रात की बजाए दिन की शादी रखी। सजावट का तमाम खर्च वहीं से कम हो गए। डीजे, आतिशबाजी जैसे मदों में भी कोई रकम खर्च नहीं की। यहां तक की फूलों की जगह मखाने की माला का इस्तेमाल किया। वीरेंद्र का कहना है कि फूलों की माला मुर्झाने के बाद किसी काम नहीं आता जबकि मखाना को बाद में भी खाया जा सकता है।
कोई मेहमान नहीं, सब मेजबान!
सोचिए आप किसी शादी में जाएं और वहां खाने से पहले आपसे खाना परोसने का निवेदन किया जाए! विभा तिवारी की शादी में कुछ ऐसा ही नजारा था। चाहे वो पास के बाजार का हरिया नाई हो या कैबिनेट दर्जा प्राप्त नेत्री पद्मा शुक्ला। सभी ने मेजबान की भूमिका निभाई। वीरेंद्र बताते हैं कि खाने के लिए बुफे सिस्टम नहीं रखा गया था। करीब 2 हजार लोगों पंगत में बैठकर खाना खाया। इस अनोखी शादी में किसी तरह का कोई 'व्यवहार' भी नहीं लिखा गया। हालांकि कुछ लोग फिर भी नहीं माने और बंद लिफाफे पकड़ा ही गए।