मध्यप्रदेश चुनाव: चुनावी लहरें बन पाएंगी सुनामी? इतिहास के आईने में राज्य के चुनावी गुड़ा-गणित

By शिवअनुराग पटैरया | Published: November 28, 2018 07:47 AM2018-11-28T07:47:18+5:302018-11-28T07:47:18+5:30

1993 में राज्य में 60.17 फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया था। उस समय अभिभाजित मध्यप्रदेश में 320 विधानसभा क्षेत्र हुआ करते थे तब कांग्रेस ने 174 और भाजपा ने 116 स्थानों पर जीत दर्ज कराई थी।

Madhya Pradesh assembly Election: The voter will decide his mind today | मध्यप्रदेश चुनाव: चुनावी लहरें बन पाएंगी सुनामी? इतिहास के आईने में राज्य के चुनावी गुड़ा-गणित

मध्यप्रदेश चुनाव: चुनावी लहरें बन पाएंगी सुनामी? इतिहास के आईने में राज्य के चुनावी गुड़ा-गणित

मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए आज होने जा रहे मतदान में मतदाता परिवर्तन की लहरों पर सवार होकर सत्ता पक्ष के लिए सुनामी लाएगा या फिर यथास्थिति को स्वीकार करेगा।  यह एक बड़ा सवाल है।  मध्यप्रदेश में बीते पखवाड़े पर चले चुनाव अभियान के बाद एक बात साफ सामने होकर आ गई कि यह चुनाव पिछले कई चुनावों से भिन्न है। 

मध्यप्रदेश के 230 विधानसभा क्षेत्रों के लिए खड़े हुए 2899 प्रत्याशियों में से मतदाताओं को अपने मन का प्रत्याशी चुनना है।  राज्य में 2018 के लिए हो रहे इस चुनाव में कुल 5 करोड़ 3 लाख 94 हजार 86 मतदाता हैं।  प्रदेश के अब तक के चुनावी अभियान का सच रहा है कि जब भी मतदाताओं ने बढ़ चढ़कर मतदान किया तो मत पेटियों और ईवीएम से सत्तापक्ष के लिए सुनामी ही निकली है।  1993 में राज्य में 60. 17 फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया था।  

उस समय अभिभाजित मध्यप्रदेश में 320 विधानसभा क्षेत्र हुआ करते थे तब कांग्रेस ने 174 और भाजपा ने 116 स्थानों पर जीत दर्ज कराई थी।  वहीं तीसरे दल के तौर पर बसपा ने 11 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी।  जबकि उसके पूर्व हुए 1990 के विधानसभा चुनाव में कुल 54.21 फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया था।  इस तरह 1990 की तुलना में 1993 के चुनाव में लगभग 6 फीसदी मत ज्यादा पड़े थे।

 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 220, कांग्रेस 56 और बसपा को दो स्थानों पर जीत मिली थी।  कुछ इसी तरह ही 2003 के विधानसभा चुनाव में 1998 की तुलना में 7 फीसदी ज्यादा मतदान हुआ था।  इसी का नतीजा यह हुआ था कि उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने भारी जीत दर्ज कराई थी।  

1998 में कुल 60.21 फीसदी मतदान हुआ था जबकि 2003 में कुल मतदान का यह आंकडा 67. 41 तक पहुंच गया था।  इसके बाद के हुए 2008 और 2013 के चुनाव में मतदान के प्रतिशत में दो-तीन फीसदी की ही बढ़ोतरी हुई।  इसलिए कोई चौंकाने वाले नतीजे नहीं आए।  इस बार के विधानसभा चुनाव में मतदान पिछले बार के 72.69 फीसदी से कितना कम ज्यादा होता है इससे एक अनुमान लगाया जा सकेगा कि लोग परिवर्तन चाहते हैं या यथास्थिति। 

मध्यप्रदेश के इस बार के चुनाव में मतदाताओं ने एक अजब सी खामोशी ओढ़े रखी वे परिवर्तन की बात करते रहे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा किए गए कामों को भी गिनाते रहे।  वहीं पूरे चुनाव अभियान के दौरान मूलभूत मुद्दों के स्थान पर बहस के बिन्दु अंतिम दिनों में हिन्दू, मुसलमान, जातियों के समीकरण, मां-बाप और राजा महाराजा जैसे विश्लेषणों के इर्द गिर्द हो गए।  मूलभूत मुद्दों और समस्याओं के स्थान पर भावनात्मक, जातिगत और धार्मिक मुद्दे उठाने में राज्य के स्थानीय प्रचारकों की तुलना में बाहर से आए प्रचारकों ने बड़ी भूमिका अदा की। 

इंदौर में कांग्रेस नेता राजबब्बर ने किसी एक उदाहरण के साथ प्रधानमंत्री की मां का जिक्र किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जनसभाओं में इसे मुद्दा बना लिया।  इसके बाद कांग्रेस के एक और नेता बिलास मुत्तेमवार के द्वारा राजस्थान में प्रधानमंत्री के पिता को लेकर की गई एक टिप्पणी को प्रधानमंत्री ने पकड़ लिया और उन्होंने कहा कि जो लोग मुझसे नहीं जीत पा रहे हैं वे मेरे मां-बाप को गालियां दे रहे हैं।  

कुछ इसी तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे मुस्लिम मतदाताओं से 90 फीसदी मतदान कांग्रेस के पक्ष में करने की बात कह रहे हैं।  भाजपा ने इस वीडियो को भी एक बड़ा मुद्दा बना लिया और कहा कि कमलनाथ धार्मिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं। 

Web Title: Madhya Pradesh assembly Election: The voter will decide his mind today

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे