Lok Sabha polls 2024: “ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाए”, पूर्णिया लोकसभा सीट पर होता रहा है दिलचस्प मुकाबला

By एस पी सिन्हा | Published: March 11, 2024 03:34 PM2024-03-11T15:34:07+5:302024-03-11T15:34:07+5:30

पूर्णिया जिले का इतिहास गौरवशाली रहा है। पूर्णिया एक ऐसा जिला है जो नेपाल और देश के नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से सीधे तौर पर जुड़ता है। वहीं, बिहार के कोसी और मिथिलांचल के क्षेत्र को यह सीधे जोड़ता है। 

Lok Sabha polls 2024 know about the Purina lok sabha Seat | Lok Sabha polls 2024: “ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाए”, पूर्णिया लोकसभा सीट पर होता रहा है दिलचस्प मुकाबला

Lok Sabha polls 2024: “ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाए”, पूर्णिया लोकसभा सीट पर होता रहा है दिलचस्प मुकाबला

Highlightsबिहार के सबसे पुराने जिलों में से एक पूर्णिया जिला हैपूर्णिया, 1770 में ब्रिटिश साम्राज्य के दौर में ही जिला बना थाहां राजपूत और ब्राह्मण वोटर की भूमिका भी बड़ी रही है

पटना:बिहार के सबसे पुराने जिलों में से एक पूर्णिया जिला है। पूर्णिया, 1770 में ब्रिटिश साम्राज्य के दौर में ही जिला बना था। पूर्णिया जिले का इतिहास गौरवशाली रहा है। पूर्णिया एक ऐसा जिला है जो नेपाल और देश के नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से सीधे तौर पर जुड़ता है। वहीं, बिहार के कोसी और मिथिलांचल के क्षेत्र को यह सीधे जोड़ता है। 

एक वक्त ऐसा भी था कि पूर्णिया से लेकर नेपाल तक डकैतों का आतंक फैला हुआ था। सी. रॉय चौधरी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ पूर्णिया में लिखते हैं कि पूर्णिया इलाके में डकैत गैंग्स बहुत सक्रिय थे और यहां की जलवायु भी बहुत खराब थी। यह डकैत गैंग्स नेपाल के मोरंग से पूर्णिया के बीच डकैती को अंजाम देते थे। इस वजह से इस इलाके का नाम बहुत ही खराब हो गया था।

जानकार बताते हैं कि सरकारी अधिकारी इन इलाकों में पोस्टिंग नहीं लेना चाहते थे। पी. सी. रॉय चौधरी लिखते हैं कि जिन अधिकारियों की यहां पोस्टिंग होती थी वो अपने आप को बदकिस्मत मानते थे और अपनी पोस्टिंग या तबादले को सजा के तौर पर लेते थे। यही वजह थी कि पूर्णिया को लेकर एक कहावत मशहूर थी- “ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाए” अर्थात अगर आप मरना चाहते हैं तो पूर्णिया चले जाइए, आपको जहर खाने की जरूरत नहीं। 

पूर्णिया जिले में कुल 7 विधानसभा सीटें हैं। जिसमें से केवल 6 विधानसभा सीट ही पूर्णिया लोकसभा मे पड़ता है। इसका अमौर और बायसी किशनगंज लोकसभा का हिस्सा है। जबकि कटिहार का कोढ़ा विधानसभा पूर्णिया में जुड़ा हुआ है। सीमांचल का यह सीट एमवाय समीकरण का केंद्र माना जाता है। यहां यादव और अल्पसंख्यक आबादी के हाथ में पूरी तरह से राजनीति को बदलने की ताकत है। वहीं यहां एससी-एसटी और ओबीसी मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं। वह यहां निर्णायक भूमिका में रहते हैं। 

यहां राजपूत और ब्राह्मण वोटर की भूमिका भी बड़ी रही है। यहां हिंदू मतदाता 60 और अल्पसंख्यक मतदाताओं का प्रतिशत 40 है। यह सबसे पुरानी लोकसभा सीटों में यहां से पहले सांसद के रूप में फणि गोपाल सेन रहे हैं। 1977 में कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी। हालांकि 1980 में फिर कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा किया। वही 1989 में यह सीट जनता दल के हिस्से चली गई। 1996 में यहां से पप्पू यादव सांसद बने। उसके बाद 2004 और 2009 में भाजपा के उदय सिंह यहां से सांसद बने। 

2014 में यहां से संतोष कुशवाहा जदयू से सांसद बने और फिर 2019 में भी संतोष कुशवाहा ने एक बार फिर जीत दर्ज की है। ऐसे मं इस बार जब भाजपा अकेले इस सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। जदयू और राजद के साथ कांग्रेस गठबंधन में यहां से अभी तक ऐसा लग रहा है कि चुनाव लड़ेगी तो वहीं दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी यहां से अपनी पार्टी के उम्मीदवार के साथ चुनाव मैदान में होंगे तो यहां का मुकाबला बेहद महत्वपूर्ण होगा। इसमें वर्तमान में 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। उनमें से 8,49,036 पुरुष मतदाता हैं। 

महिला मतदाताओं की संख्या 9,16,226 हैं। थर्ड जेंडर के मतदाता 50 हैं। 2019 में कुल मतदाताओं की संख्या 11,53,940 थी। जिनमें से कुल पुरुष मतदाता 5,74,694 और महिला मतदाता 5,78,456 थीं। 2019 में कुल मतदान प्रतिशत 65.37 फीसदी था। जदयू के संतोष कुमार वोटों 6,32,924 से जीत हासिल की। 

वहीं, पूर्णिया से भाजपा के टिकट से दो बार जीत चुके पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह भी पूर्णिया से अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने अभी तक खुलकर पता नहीं बोला है, लेकिन पप्पू सिंह इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर पूर्णिया से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। 

दरअसल, वर्ष 2019 के चुनाव में भी पप्पू सिंह कांग्रेस के टिकट पर पूर्णिया से चुनाव लड़े थे, जिसमें उनकी हार हुई थी। इस बार अभी से ही मामला काफी दिलचस्प दिखने लगा है। टिकट और दावेदारी को लेकर घमासान शुरू हो गया है। अब देखना है कि बिहार के इस अति महत्वपूर्ण सीट से एनडीए और इंडिया गठबंधन किनको अपना उम्मीदवार बनाता है। 

Web Title: Lok Sabha polls 2024 know about the Purina lok sabha Seat

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