पटनाः लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने का आह्वान करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राह उतनी भी आसन नहीं है। विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति और केंद्र सरकार के खिलाफ मुद्दे क्या होंगे?
विशेषकर कांग्रेस को कमतर रूप से पेश करते हुए अगर विपक्षी एकता की बात की जाती हो तो यह अपने आप में बड़ी चुनौती है। कारण कि भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी करना हर राज्य में विविध विचारधारा वाले राजनीतिक दलों को एकजुट करना मुश्किल काम है। विपक्षी एकता का सुर छेड़ रहे नीतीश को अपनी पहली ही कोशिश में बड़ा झटका लगा है।
दरअसल, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर जिस तरह भाजपा से लड़ाई की तैयारी चाहते हैं, उसमें जदयू की सहमति नहीं है। जदयू ने साफ शब्दों में इसमें असहमति जताई है। केसीआर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों को एकसाथ लाना चाहते हैं। 5 दिन में केसीआर के प्रस्ताव को जदयू ने खारिज कर दिया।
अर्थात कांग्रेस को भी केसीआर अलग ही रखना चाहते हैं। जो कहीं न कहीं थर्ड फ्रंट की ओर इशारा देता है। लेकिन जदयू ने जैसे पहले भी मेन फ्रंट की बात की उसी तरह जदयू की ओर से केसी त्यागी ने साफ शब्दों में कहा कि कांग्रेस और वामदलों के बिना भाजपा को हराने का उद्देश्य अधूरा रहेगा। यह बयान केसीआर की सोच से विपरीत है।
हालांकि, जदयू ने यह भी संकेत दिया है कि वह राव को भी सभी विपक्षी दलों के साथ लाने की पहल करेगा। बिहार के बाहर कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जिन्हें एक मंच पर लाना नीतीश कुमार के लिए टेढी खीर साबित हो सकती है। नीतीश जिस विपक्षी एकता को चाहते हैं, उसमें सबसे पहली चुनौती ही कांग्रेस है।
कांग्रेस हर राज्य में भाजपा के मुकाबले और क्षेत्रीय दलों के मुकाबले प्रभावशाली तरीके से मौजूद है। कांग्रेस हर राज्य में क्षेत्रीय दलों को ज्यादा तरजीह देकर उन्हें बेहतर जगह देगी, यह फिलहाल तो नहीं लगता। भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल करना है।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरे विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर आना ही होगा। इसमें विभिन्न प्रदेशों के क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ कांग्रेस और वामदलों को भी शामिल करना होगा। विभिन्न दलों को आपसी मतभेद भुलाकर साथ मिलकर चुनाव लड़ना होगा। जो शायद ही संभव हो।